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Sheikh Shahzad Usmani

Tragedy Crime Thriller

3  

Sheikh Shahzad Usmani

Tragedy Crime Thriller

प्रशान्त डे सुसाइड केस (कहानी)

प्रशान्त डे सुसाइड केस (कहानी)

3 mins
325


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राजन-इक़बाल सिरीज़ 

(सातवाँ मिशन)

'प्रशान्त डे सुसाइड केस'

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राजन और इक़बाल बहुत चर्चित हो चुके थे। बारह साल से लेकर बीस साल तक के छात्रों के सात मिशनों में से छह मिशन उन दोनों ने सफलतापूर्वक पूरे कर लिए थे। पूरी दुनिया में नोवेल कोरोना वाइरस के भयावह संक्रमण और सार्स- कोबिड-19 के प्रकोप से लॉकडाउन वग़ैरह के कारण सातवाँ मिशन अंतिम चरण पर अटका पड़ा हुआ था।

आज शहर की मशहूर सौन चिरैया होटल में राजन और इक़बाल की यह पाँचवीं गोपनीय मीटिंग थी अनलॉक-5 की बदौलत।

वेटर को छोटा सा ऑर्डर देने के बाद राजन इक़बाल से बोला, "मास्क यूँ ही लगाये रहना। हर बार मास्क और हेयरस्टाइल बदलते रहने से यहाँ हमें कोई पहचान नहीं सकेगा।... अब सुनो... सोशल मीडिया की स्टडी से मुझे यह लग रहा है कि प्रशान्त डे के दिलोदिमाग में आत्महत्या का फ़ितूर है! कुछ भी हो... सही रणनीति और पहुंच से हमें प्रशान्त डे की जान बचानी ही है!"

"अनलॉक-5 में लोग खुलकर अपनी आम ज़िन्दगी जीने लगे हैं गाइडलाइंस की धज्जियाँ उड़ाते हुए। मेरी जासूसी के अनुसार आज या कल प्रशान्त सुसाइड कर सकता है! ऐसा उसकी सोशल मीडिया पोस्ट्स का विश्लेषण करके मैंने भी जाना है!" राजन ने मोबाइल पर कुछ संदेश राजन को दिखाते हुए कहा।

"हद है नर्वसपन की! तुमने उसके पक्के दोस्तों से मिलकर उसकी आदतों, दिनचर्या और फ्लैट की जानकारी जुटाने का वादा किया था। क्या प्रोग्रेस है कबूतर!"

"आज बहुत दिनों बाद तुमने मुझे कबूतर कोडनेम से पुकारा गिरगिट! हा हा हा! प्रशान्त की कुछ सहेलियों से पुख़्ता जानकारी जुटा ली हैं इस कबूतर ने!" इक़बाल ने अपना चश्मा उतारते हुए राजन की आँखों में आँखें डालकर कहा।

"सहेलियाँ! उसका बाप तो सबसे यह कहता फ़िरता है कि उसका होनहार बेटा लड़कियों से बहुत दूर रहता है!" राजन ने चौंक कर कहा।

"जैसा कि पता चला है, वह कुछ खास स्टूडेंट्स के साथ कम्बाइन्ड स्टडी करता है। उनके एक वाट्सएप ग्रुप से जुड़कर मुझे बहुत सी जानकरियां मिलीं हैं।"

"शॉर्ट में बताओ इक़बाल। बाद में पूरा प्लान कहीं और डिस्कस करेंगे।"

" देखो, प्रशान्त डे की सबसे ख़ास दोस्त है -हितेक्षा। दोनों आपस में नोट्स शेयर करते भी देखे गये हैं। उसकी दूसरी किंतु अधिक ख़ूबसूरत फ्रैंड है - सलोनी, जो प्रशान्त की दीवानी है। लेकिन प्रशान्त को हितेक्षा अधिक पसंद है... वो भी दोस्ती के स्तर तक! वैसे राजन, वो है पक्का ब्रह्मचारी साधू सा!" इक़बाल ने चश्मा चढ़ाते हुए कहा, "उसकी तीसरी दोस्त है -विधि, जिसके उसके साथ पारिवारिक संबंध हैं और उसके घर जाती भी रहती है... यह मैं बड़ी मुश्किल से विधि की सहेली जाह्नवी से पता कर पाया हूँ।"

"मतलब कोई लड़का प्रशान्त का खास दोस्त नहीं है, यही समझूँ न!"

"था! एक था! दक्ष! बहुत ही टेलेंटेड और ऑलराउंडर! लेकिन प्रशान्त ने उससे दूरी तब से बढ़ा ली थी, जब उसे इस बात का सबूत मिल गया था कि दक्ष के एक टीचर के साथ समलैंगिक संबंध हैं।" इक़बाल ने कुछ गंभीर होकर बताया, "दक्ष से मुलाक़ात करने पर प्रशान्त की जो समस्याएं पता चलीं, वे वही थीं जिनका ज़िक्र विधि ने किया था!"

"अब सुनो इक़बाल! यहाँ से फ्री होते ही हमें प्रशान्त के फ़्लैट के अंदर पहुंचने या इर्दगिर्द रहने की कोशिश करना है। हितेक्षा से मैंने सारी योजना डिस्कस कर ली है।"

ऑर्डर लेने वाला वेटर दूर से उन दोनों के हावभाव देखकर भांँप गया था कि वे राजन और इक़बाल ही हैं।

उस वेटर ने काउंटर पर बैठी रिसेप्शनिस्ट से धीमे स्वर में कुछ कहा और ऑर्डर की थाली लेकर राजन-इक़बाल की टेबल पर गया और  सर्व करने लगा। उसने राजन के सामने उसकी मनपसंद डिश सबसे पहले जैसे ही रखी, राजन चौंक गया। वेटर के जाने के बाद वह इक़बाल से बोला, "हैलो कबूतर, लगता है यह वेटर मुझे पहचान गया है! ये सब ज़ल्दी खाओ-पियो और चलो यहाँ से!"

आधे घण्टे बाद अपनी मोटरसाइकिल से वे दोनों प्रशान्त डे की 'शहीद तात्याँ टोपे सोसाइटी'  की विंग-5 पर पहुँच चुके थे। टाइमिंग बिल्कुल सही थी। अपनी घड़ी पर समय देखते हुए इक़बाल ने अपनी गर्दन चारों तरफ़ घुमाकर गतिविधियों का जायज़ा लिया। मोटरसाइकिल स्टैंड पर खड़ी करते हुए वह राजन से बोला, "शाम के ठीक पाँच बजे हैं। प्रशान्त तकरीबन इसी समय नज़दीक़ की होटल से गुज़िया खाकर आता है। दीवाना है वहाँ की गुज़िया का!"

"एक दिन तो तुम दूध-जलेबी बता रहे थे न!"

"नहीं गिरगिट! दूध-जलेबी तो वह सुबह तब खाता है, जब कभी  दौड़ने या कसरत करने जाता है; रोज़ नहीं!

"बड़ी बारीक़ जानकारी जुटा लेते हो कबूतर... आइ मीन .. इक़बाल! प्रशान्त के यहाँ आने से पहले उसके फ़्लैट के आसपास अपना मोर्चा सँभाल लो। पिस्तौल और चाकू तो है न आज तुम्हारे पास!"

"पूरी किट में हूँ मिशन पर! ... ठीक है .. जाता हूँ... बेस्ट ऑफ़ लक!" इक़बाल और राजन ने एक-दूसरे को थम्स अप किया। 

राजन वायदे और योजना की मुताबिक़ वहीं हितेक्षा की प्रतीक्षा करने लगा। लेकिन वह तो पहले ही प्रशान्त के फ़्लैट पर पहुँच चुकी थी। उसने राजन को सांकेतिक रिंगटोन के साथ मिसकॉल दी और तुरंत ही राजन भी वहाँ पहुँच गया। हितेक्षा के पास उस फ़्लैट की एक डुप्लीकेट चाबी रहा करती थी। सो हितेक्षा और राजन फ़्लैट के अंदर पहुंच गये। दरवाज़ा विधिवत लॉक करने के बाद हितेक्षा प्रशान्त के बेडरूम में बेड के नीचे लेट गई। आज शुक्रवार था। इस रोज़ हितेक्षा प्रशान्त से मिलने नहीं आती थी। इसलिए उसे छिपना पड़ा राजन की गाइडलाइंस मुताबिक़। राजन ने सुसाइड संबंधित सामग्री व्यवस्था की जाँच-पड़ताल की।  माहौल देखकर उसे लगा कि सब कुछ सही टाइम पर हो रहा है। वह वाशरूम के अंदर दरवाज़े की ओट में छिप गया। हालाँकि रिस्क बहुत था, लेकिन हितेक्षा की बातों से उसे विश्वास था कि प्रशान्त वॉशरूम में नहीं जायेगा।

वैसा ही हुआ। प्रशान्त अन्दर आया। स्मार्ट फ़ोन पर कुछ मेसेज भेजे। डायरी में कुछ लिखा। उसकी साँसें गति पकड़ रहीं  थीं। उसके चेहरे से सब कुछ स्पष्ट बयाँ हो रहा था। कुछ देर वह आँखें मूंद कर बैठा  रहा। फ़िर एक झटके से उठ कर व्यवस्थित फंदे को लेकर बैड पर स्टूल रखकर चढ़ गया। उधर सुनसान टॉप फ़्लोर पर फ़्लैट की खिड़की के रौशनदान पर इक़बाल पोजीशन बनाये हुए था। फंदा गर्दन पर पहुंचा ही था कि इधर  राजन के इशारे पर हितेक्षा ने प्रशान्त को सँभाला और उधर इक़बाल ने फंदे और पंखे पर गोलियाँ चला दीं। प्रशान्त सीधे बिस्तर पर हितेक्षा के साथ गिर गया। विंग-5 में भगदड़ सी मच गई। कुछ लोग उस फ़्लैट पर फ़ुर्ती से पहुँचे और इक़बाल को दबोच कर पीटने लगे। तभी दरवाज़ा खोलकर राजन बाहर आया और गार्ड सहित कुछ लोगों को अंदर ले जाकर सारा घटनाक्रम समझा दिया। प्रशान्त डे फफक-फफक कर रो रहा था।

सातवें मिशन की क़ामयाबी पर इक़बाल अपनी सारी तक़लीफ़ें और पिटाई भूल कर राजन से लिपट गया। उधर हितेक्षा प्रशान्त को  सँभाल रही थी। कुछ ही पलों में पुलिस और सोसाइटी की कुछ ज़िम्मेदार महिलाएं भी वहाँ पहुँच गईं। पुलिस ने अपनी कार्यवाही शुरू की और राजन-इक़बाल दोनों की पूर्व रिपोर्ट अनुसार आवश्यक चर्चा के बाद प्रशान्त डे के घरवालों को सूचित किया गया और उसे चिकित्सक की देखरेख में रखा गया।

"प्रशान्त डे सुसाइड केस" एक मध्यमवर्गीय उच्च महत्वाकांक्षी छात्र की भ्रष्टाचार और नारी शोषण के ख़िलाफ़ लड़ाई में हार और प्रशासनिक दबाव न झेल पाने का केस था। राजन इक़बाल जासूस एजेंट्स की शहर के छात्रों के हित में यह अगली सफलता थी, अंतिम नहीं।



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