पापा
पापा
आज पापा का श्राद्ध था, भाभी का फोन आया था। सपरिवार निमंत्रण था। मेरा मन तो बिल्कुल नही था जाने का, पर अंशुल ने कहा बुलाया है तो जाना चाहिये।
मैं जब घर पहुॅंची तो लगभग सब काम हो चुका था। पचास लोगो का खाना था। भैया पूजा पाठ कर रहे थे। भाभी भी पूरे मनोयोग से काम कर रही थी। खाने में वह सभी चीजें बनी थी जो पापा को पसंद थी।
मेरा मन बहुत दुख रहा था। जिन पापा को जीते जी इन लोगों ने इतना दुख दिया था। वो आज इतना दिखावा क्यो कर रहे है। बस लोगो के लिये।
पापा कितने परेशान रहते थे। कई कई दिन भूखे रहते थे और आज यह सब।
दुखी मन से मैं भी पूजा वाली जगह पर बैठ गयी।