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Vrajesh Dave

Drama Romance

5.0  

Vrajesh Dave

Drama Romance

हिमस्पर्श 12

हिमस्पर्श 12

9 mins
586


“और मैं जीत,” युवक ने अपना नाम बताया और फिर आदेश दिया, ”वफ़ाई, अपना कैमरा ले लो अन्यथा मैं....” वह आस-पास कुछ खोजने लगा।

“श्रीमान जीत, मुझे मेरी सभी तस्वीरें भी चाहिए, तभी मैं मेरा कैमरा लूँगी।“

वफ़ाई ने जीत की आँखों में देखा, जीत ने भी वफ़ाई की आँखों में देखा। चारों आँखें क्रोधित थी।

“तुम्हें अपना कैमरा वापिस चाहिए अथवा मैं उसे भी रख लूँ ?” जीत ने पूछा।

“श्रीमान जीत, तुम्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि तस्वीरों के बिना कैमरा मृत होता है। कैमरे में कोई जीवन नहीं होता। खींची हुई तस्वीरें उसे जीवंत करती हैं। मेरी खींची तस्वीरें इस कैमरे की आत्मा है। तुमने उस आत्मा का वध किया है। अत: यह कैमरा एक शव के सिवा कुछ भी नहीं। तुमने इस कैमरे का वध किया है। तुम अपराधी हो, पापी हो, हत्यारे हो।“ वफ़ाई अपने नियंत्रण से बाहर थी।

“अपने शब्दों को सीमा में रखो, वफ़ाई। स्मरण रहे कि आप मेरे साम्राज्य में है।“ जीत ने कहा।

जीत के शब्दों ने आग में घी डाल दिया। वफ़ाई ने निश्चय कर लिया कि वह हार नहीं मानेगी और लड़ती रहेगी, ”श्रीमान जीत, मुझे भयभीत करने का प्रयास ना करें। मैं...”

“वफ़ाई, तुमने अपराध किया है और उसके लिए तुम्हें दंडित किया गया है। इस बात को स्वीकार लो।“

“क्या ? अपराध तो तुमने किया है अभी-अभी। जरा बताओ तो कौनसा अपराध किया है मैंने ?”

“अनेक हैं। प्रथम, चोरों की भांति तुम बिना मेरी अनुमति के मेरे घर में घुस गई हो। दूसरा, सीधे छत पर चली गई हो। तीसरा, तुमने मेरी तस्वीरें ली है। चौथा, तुम...’ जीत वफ़ाई के अपराध गिना रहा था, किन्तु वफ़ाई ने उसे रोका।

“ठीक है। मैं अपने सभी अपराध का स्वीकार करती हूँ। इसके लिए तुम जो चाहो वह दंड दो मुझे किन्तु मुझे मेरी सभी तस्वीरें चाहिए। वह सभी मुझे लौटा दो। मैं यहाँ से चली जाऊँगी, सदा के लिए।“

जीत मौन रहा, वफ़ाई को देखता रहा। वफ़ाई जीत के मुख के भाव पढ़ ना सकी। उसका मौन वफ़ाई के क्रोध को गति दे रहा था। उसके क्रोध का अग्नि ज्वाला बनकर फैलने ही वाला था कि अचानक वफ़ाई ने उसे नियंत्रित कर मैं यहाँ किसी अभियान पर हूँ। मुझे जीत के साथ लड़ाई नहीं करनी चाहिए किन्तु उसे युक्ति पूर्वक संभाल लेना चाहिए और उचित समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। लड़ाई से यह समस्या का समाधान नहीं होने वाला।

वफ़ाई ने स्वयं को शांत किया। मुझे कोई युक्ति करनी होगी, जीत को भी शांत करना होगा, उसे पिघलाना होगा। तभी काम बन पाएगा किन्तु जीत पिघलेगा कैसे ? क्या वह हिम है ? यदि वह हिम होता तो मैं उसे गर्मी से पिघला देती। किन्तु यहाँ तो गर्मी ने ही सब खेल .... ‘

‘वफ़ाई, यहाँ गर्मी से नहीं किन्तु स्नेह की ऊष्मा से काम होगा। अधिक तापमान हिम को वाष्प बना देता है। तुम्हें पिघले हुए हिम की आवश्यकता है, वाष्प की नहीं। यदि तुम किसी पुरुष को मारना चाहती हो तो उसे क्रोध से नहीं मार सकती, उसे अपने बल से परास्त नहीं कर सकती। अपने स्मित का प्रयोग करना होगा तुम्हें, वफ़ाई। स्मित अधिक विध्वंशक होता है। वह अचूक काम करता है।‘ओह... मैं सब समझ गई।‘

वफ़ाई ने जीत को भाव से भरा स्मित दिया, जीत से कैमरा लिया और उसे अपने गले में डाल दिया। “जीत, मैं लज्जित हूँ। मुझे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था। मुझे क्षमा कर दो। क्या हम मित्र बन सकते हैं ?” वफ़ाई ने जीत की तरफ मैत्री का हाथ बढ़ा दिया। जीत ने उपेक्षा से भरा स्मित किया।

‘हिम पिघल रहा है और यही समय है उस हिम पर प्रहार करने का। मुझे कुछ करना चाहिए।‘

वफ़ाई ने पुन: स्मित दिया और धरती पर गिरी वस्तुएं उठाने लगी। जीत कोने में खड़े-खड़े वफ़ाई को देखता रहा। वफ़ाई बिना जीत की सहायता के सफाई करने लगी। जीत ने वफ़ाई को रोका नहीं। दोनों मौन थे। दोनों एक दूसरे के भावों को समेट रहे थे।

जीत झूले के पास खड़ा हो गया और त्वरित से बदलते परिवेश को देखने लगा। वह वफ़ाई की प्रत्येक गतिविधि को ध्यान से देख रहा था। वफ़ाई, प्रत्येक वस्तु को उठाती थी और उसे योग्य स्थान ढूंढ कर वहाँ रख देती थी। वह इस छोटे से क्षेत्र में इधर उधर घूम रही थी, स्थिति को संभालने में लगी थी। सत्रह मिनट के पश्चात धरती साफ और स्वच्छ थी। केनवास चित्राधार पर अपने उचित स्थान पर था, रंगो की टिकिया अपनी अपनी कटोरी में थी। तूलिकायेँ भी अपने स्थान पर सुंदर रूप से सजा कर रखी थी। रंग, रंग की कटोरी, रंगों की टिकियाँ, पानी की कटोरी, सब सुंदर रूप से सजा दिया था वफ़ाई ने। बाकी सब वस्तुओं को भी वफ़ाई ने ढंग से सजा दिया था अत: वह मैदान सम्पूर्ण रूप से बदल गया था। किसी भी स्त्री का इस धरातल पर लंबे अंतराल के पश्चात प्रथम स्पर्श था, जीत के मन में भी। वह स्पर्श धरती के प्रत्येक कोने में, प्रत्येक कण में अभिव्यक्त हो रहा था, जीत की साँसों में भी।

धरती पर सूखा घास था, निर्जीव सा। पवन की लहर आई और उस घास को छू गई। घास आंदोलित हुआ, नाचने लगा। सूखा घास तरंगित हो गया।

‘ऐसा लंबे अंतराल के बाद हुआ है। क्या यह वफ़ाई के कारण हुआ है ? क्या ऐसा उसके आने से हुआ है ? अथवा क्या यह केवल एक भ्रम है ?’ जीत निष्कर्ष पर नहीं आ पाया। वफ़ाई ने काम पूरा किया और झूले पर जा बैठी,”जीत, थोड़ा पानी मिलेगा ?” उसके अधरों पर स्मित था।

जीत कक्ष में गया। वफ़ाई पानी की प्रतीक्षा करती रही किन्तु जीत लंबे समय तक पानी लेकर नहीं लौटा। वफ़ाई कुतूहलवश जीत के पीछे कक्ष में गई। जीत स्टील के प्याले को साफ कर रहा था जो लंबे समय से मलिन पड़ा था। “तुम उसे छोड़ दो, मैं करती हूँ।“ वफ़ाई ने जीत से प्याला लिया। वफ़ाई के शब्दों से जीत चौंक गया। पीछे हट गया।

वफ़ाई ने प्याला साफ किया और मिट्टी के घड़े से पानी भर लिया। पानी शीतल था। ‘इतना शीतल पानी इस मरुभूमि में ? यह तो विस्मय है। पानी अत्यंत शीतल है। जीत यही पानी पीता होगा क्या ?’

पानी का प्याला लेकर वफ़ाई कक्ष से बाहर आई, झूले पर बैठ गई और धीरे-धीरे झूलने लगी। जीत भी बाहर आ गया और झूले के समीप खड़ा हो गया। एक तरंग हवा में व्याप्त हो गई, जीत को छु गई। उस मधुर और ठंडी हवा से जीत को लगा कि वह मरुभूमि से कहीं दूर किसी हिम से घिरे पहाड़ पर है। वफ़ाई झूले पर धीरे-धीरे और लयबद्ध रूप से झूल रही थी। पैरों से झूले को गति में रख रही थी, एक हाथ झूले की शलाका पर था तो दूसरे हाथ में पानी का प्याला। वफ़ाई ने अभी भी पानी का एक भी घूंट नहीं पिया था। वफ़ाई मैदान को देख रही थी, जीत की वहाँ उपस्थिती को भूल कर।

किन्तु, जीत वफ़ाई नाम की इस लड़की के सान्निध्य को अनुभव कर रहा था। उसकी हवा अलग थी, उसकी साँसें भी अलग थी। वह वफ़ाई की उपस्थिती की उपेक्षा नहीं कर सका। वफ़ाई के होने की सुगंध जीत के मन एवं ह्रदय पर मीठा प्रहार कर रही थी। वफ़ाई प्रत्येक वस्तु को देखती रही, सब अपने स्थान पर थी। स्वयं से वह संतुष्ट हो गई। उसने जीत को देखा और उसे स्मित दिया। जीत नाम का हिम पिघल रहा था। वफ़ाई ने पानी पी लिया, “श्रीमान जीत, क्या हम बात कर सकते हैं ?” वफ़ाई ने पहल की। “तुम क्यूँ बात करना चाहती हो ?” जीत ने उपेक्षा से पूछा।

“मैं इस मरुभूमि में पाँच दिवस से हूँ और मैंने किसी को नहीं देखा, ना किसी को मिली और ना ही किसी से मैंने बात की है इन पाँच दिनों में। मैं किसी से बात करने के लिए उत्साहित हूँ। यदि तुम...”

“केवल पाँच दिवस ? तो क्या ? मैंने तो पाँच महीनों से किसी से बात नहीं की।“

”पाँच महीने ? जीत, यह तो बड़ी ही विचित्र बात है।“ वफ़ाई विस्मय से जीत को देखने लगी। जीत ने अर्ध मन से स्मित दिया। उसे वफ़ाई का यहाँ होना, वफ़ाई का बोलना और बातें करना भाने लगा था। वह भी वफ़ाई से बातें करना चाहता था किन्तु साहस नहीं कर पाया। वह मौन रहा, शांत रहा, “जीत, मेरा मानना है कि हमें एक दूसरे से बातें करनी चाहिए।“

“ठीक है, किन्तु क्या बात ....” जीत पिघल रहा था।

“चलो, एक दूसरे को जानने का प्रयास करते हैं।‘

“मैं तुम्हें जानता हूँ। तुम एक चोर हो...” जीत ने स्मित किया। वह पिघल चुका था।

“हाँ, चोर तो हूँ मैं। चोर नहीं, चोरनी कहते हैं इसे। किन्तु मैंने अभी तक कुछ भी नहीं चुराया है तुम्हारा।“

वफ़ाई की बात सुनकर जीत मन ही मन बोला,‘ तुम ने कुछ चुराया तो नहीं पर मेरा कुछ खोया जा रहा है।‘“जीत, मुझे खेद है। मैं मेरा अपराध....” वफ़ाई गंभीर हो गई।

“नहीं, नहीं। मैं तो बस यूँ ही... चलो छोड़ो।““धन्यवाद, जीत। क्या तुम अपना परिचय दे सकते हो ?” वफ़ाई झूले को छोड़ कर जीत के समीप आ गई।

वफ़ाई की निकटता से जीत सम्मोहित हो गया। “तो पहले तुम बताओ।“ जीत ने वफ़ाई का आह्वान किया।

वफ़ाई हँस पड़ी, जीत भी। दोनों के स्मित ने दोनों के बीच के तनाव को हटा दिया। वफ़ाई ने अपने बारे में सब कुछ बता दिया, नाम, स्थान, व्यवसाय, मरुभूमि में आने का कारण भी। वफ़ाई ने इन पाँच दिनों में मरुभूमि में उसके साथ जो जो हुआ वह भी बता दिया। जीत उसे पूरे भाव से, धैर्य से, शांति से सुनता रहा। मन ही मन विचारता रहा,’लड़कियां इतना अधिक बोलती क्यूँ है ? जरा सा पुछो और पूरी कथा सुना देती है। अपने अंदर का सब कुछ कह देती है, खाली हो जाती है किन्तु जब वह बोलती है तो कितना मनभावन लगता है। यह इसी तरह बोलती रहे और मैं जीवन भर सुनता ही रहूँ। जीवन भर ?’ जीत ‘जीवन भर’ शब्द पर आकर अटक गया, क्षुब्ध हो गया। विचारों में खो गया।

“श्रीमान, अब आपकी बारी है। कहो चलो अपने बारे में।“ वफ़ाई ने जीत को विचारों से जगाया। जीत अपना परिचय दे उससे पहले एक पंछी आ गया और केनवास के चित्र पर अपनी चोंच मारने लगा। वफ़ाई दौड़ी और उसे भगा दिया। वह कहीं उड़ गया।

वफ़ाई ने चित्र को देखा। वही चित्र जिसमें साड़ी पहने स्त्री के आकार में बादल था, गगन था, सूरज था। वफ़ाई ने गगन की तरफ देखा। स्त्री के आकार वाला बादल बिखर रहा था और त्वरा से अपना आकार बदल रहा था। गगन के बादल और केनवास पर चित्रित बादल के आकर भिन्न भिन्न हो गए थे जो कुछ क्षण पहले तक एक से थे। वफ़ाई ने जीत की तरफ उत्साह एवं आशा से देखा।

जीत ने भी चित्र को और गगन को देखा। उसने वफ़ाई की आँखों के शब्दों को पढ़ लिया। वह तूलिकाओं के पास गया, एक तूलिका उठाई और कुछ रंग भर दिये उस केनवास के चित्र पर। क्षण में ही चित्र बदल गया। पुन: गगन के बादल का आकार और केनवास का चित्र समान हो गया। एक समय पर दो गगन वहाँ थे, एक केनवास पर तो दूसरा मुक्त एवं वास्तविक गगन। वफ़ाई को आनंदाश्चर्य हुआ। उसने कैमरा खोला और अनेक तस्वीरें ली। जीत ने वफ़ाई को मंद क्रोध से देखा। जीत के अंदर पुन: कोई हिम जम गया। वफ़ाई ने उसे भाँप लिया किन्तु स्मित से टाल दिया।


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