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Prasun Upadhyay

Fantasy

1.0  

Prasun Upadhyay

Fantasy

"अनाम लड़की"

"अनाम लड़की"

4 mins
3.5K


सफेद सूट पहने देखा था; किसी मोड़ पर सड़क के किनारे खड़ी थी, शायद रोड क्रॉस करना था उसेI डेढ मिनिट तक रेड हुए सिग्नल की वजह से मैं उसे देख पा रहा था; लंबी कतार पीली टैक्सीयो की और मैं सड़क के इसपार..I ये कोलकाता की एक सुबह थीI

कंधे पर वाइट कलर का ही बैग, और कलाई पर सूट से मिलते हुए सफेद रंग सी रंग की घड़ीI थोड़ी देर पहले तक शायद सुबह उतनी प्यारी नही थी मेरे लिए, हर दिन की तरह एक समान सी थी; रोज़ कॉलेज के लिए जाना, भाग कर सिग्नल के पास पहुँचना, बस का इंतेज़ार करना और लोगों को आते जाते देखना…, कोई हंसता-खिलखिलता सा जोड़ा एक दूसरे से प्यार से ठिठोली करता हुआ, तो एक नवयुवती बैंक का अपना पहचान-पत्र गले मे पहने अपने ऑफिस के लिए जाते, तो दोस्तों का एक ग्रुप हाथों मे  नुक्कड़ वाली चाय लिए गपशप करता हुआ.

                       मुझे तो समझ नही आता कि कैसे उनकी बातें मोहन बागान से शुरू होकर किसी शौपिंग माल की सीढ़ियों से उतरते हुए, मेट्रो के स्टेशन पार करते  ऑफिस मे काम करते बॉस को बुरा भला कहते, अपनी पत्नी या गर्लफ़्रेंड की बातें करते, मैसेज पढ़ते, शाम को पॉलिटिक्स  चैट वो भी कॉफी के साथ, कभी थोड़ी पर चर्चा करते अचानक बातें बदलकर Tollywood की उस बड़ी आँखों वाली हीरोइन तक कहाँ से कहाँ पहुँच जाती हैंI

                        पर मैं ये उनकी बातों के साथ ये कहाँ पहुँच गया! क्यूकी क्यूंकि मेरी नज़रें तो अभी तक उसकी बड़ी आँखों पे ही ठहरी हुई थींI और कुछ तो था आज की सुबह मे जो बड़ी प्यारी सी लग रही थी I आज खास करके जबसे उसे मुस्कुराते देखा है, कानों हेडफोन लगाए हुए सबसे अलग नज़र आ रही थी वो, कमर से नीचे तक घनी सी जुल्फ़े, पतले से होंठ और किसी कहानी की परी जैसा उसका चेहरा, इतना तो यकीन के साथ कह सकता था मैं कि कभी ख्वाबों मे तो किसी को नही देखा पर अगर ड्रीम गर्ल होती मेरी, तो ऐसी ही होती या क्या पता अब यही हो आज के बादI                    

                  शायद अपना कोई पसंदीदा गाना सुन रही थीI कभी हिलते उसके होंठ, चेहरे पर आते जाते कई रंग, पर मैं क्यूँ तब से उसे एकटक निहारे जा रहा था; दिल तो कह रहा था भाग कर उसके पास पहुँचू और स्माइल करते हुए कहूँ नाम क्या है आपकाI तभी दूर से एक आवाज़ मुझ तक आयी, “ रौशन चल, सिग्नल ग्रीन हो गया”, और फिर सबकुछ पहले की तरह सामान्य हो गया मेरे लिएI हर दिन की भाँति..I और अबतक मेरा बंधु मेरा नाम चिल्लाते हुए मेरे पास तक आ चुका था और मैं था कि लगातार आज की सुबह को अपनी आँखों मे थामें आती जाती बसों और गाड़ियों की कतार के पार से उसको देखता ही जा रहा थाI तभी अचानक “तू कहाँ देखे जा रहा है, कोई है क्या?” मेरे दोस्त ने शरारत वाली हँसी के साथ पूछाI  इनकी तो आदत होती है ना, ऐसे मौके पर हाज़िरी लगाने आ ही जाते हैंI मैनें उसको कहा, “ तू चुप नही रह सकता? जब देखो तब तेरी वहीं बातें…Iपरेशन कर देता है तू” और हम साथ चल पड़े थेI मैं कहीं और दिमाग़ कहीं औरI मन मे एक तस्वीर सी बन गयी थीI उस सफेद सूट वाली लड़की कीI नाम तो पता नही था I पर माथे पे आती उसकी घनी जुल्फ़े… उफ्फ! सारी खूबसूरती तो अगर कहीं थी तो वहीं ठहर सी गयी थीI पर ये मेरे दोस्त को कौन समझाए कि अभी मेरा कुछ सुनने का मन नही कर रहा थाI बस उसकी हँसी, हिलते होंठ और बड़ी सी आँखों पर मैं अटक सा गया था और दोस्त की  हर बात पे मैं बस ह्म्म, हाँ, नहीं, ठीक है, कहता जा रहा थाI

                     आज पूरे क्लास  में हो के भी मैं उसी ट्रैफिक मे फँसा था या कहूँ हवा मे उड़ते हुए उन घने बालों में I वक़्त तो गुज़र रहा था पर मेरी लाइफ उसी रेड सिग्नल पे रुकी थीI उसकी हँसी, उसका चेहरा, उसकी आँखें.., मेरी प्रैक्टिकल क्लास ख़त्म हो गयीI कैंटीन की चाय ठंडी हो गयीI कई लेक्चर निकल गये, ना दोस्तों की बातें मुझे हंसा पाई और ना ही मेरे बंधु की लेग पुल्लिंगI फटाफट सारे काम निपटा कर मैं घर लौट रहा थाI नोट्स ठीक से बनाए या नही पता नही; अपनी प्रैक्टिकल कॉपी जमा की भी थी मैने… ये भी याद नहीI कुछ याद है तो बस उसका चेहरा जो सबसे अलग थाI उसकी आँखे जिनमे मैं खुद को देखना चाहता थाI जल्दी थी सोने कीI इसलिए नही कि मेरे सपनों मे वो लड़की आएगी बल्कि जल्दी थी सुबह उस सिग्नल पे दौड़ के जाने कीI उसका नाम जानने की और फिर से उसे देखने की........मेरी ड्रीम गर्ल वो "अनाम लड़की"I

 


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