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Nirlajj Stuti

Others

1.2  

Nirlajj Stuti

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निकम्मे की ज़िद

निकम्मे की ज़िद

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नाथ एक हारा हुआ, 28 बरस का नौजवान था और जैसा कि अक्सर होता है, माँ के अलावा सभी ने नकार दिया। मोबाइल की दुनिया में इतना मग्न कि अपनी हार पे अॉंसू बहाने का समय ही न मिला। 20,000 की नॉकरी काफ़ी थी ज़िंदगी गुजारने के लिए। कॉलेज के बाद जुनून था हाई प्रेशर कंपनी में काम करने का। एक ही साल में अक्ल ठिकाने आ गयी। इधर उधर से मुँह मार पा ली ये 9 से 5 की जन्नत। आठ घंटे बैठ दो घंटे का काम करो, फालतू की मीटिंगो में मुस्कुराते चहरे के साथ बैठ जाओ और मीटिंग खत्म होने तक तरक्की के भूखें नॉकरो को आपस में भिड़ते देखो। अंत में अपनी पहली वाली मुस्कान को ओढ़ वापस अपनी कुर्सी पे बैठ जाओ। आओ, मुस्कुराओ, मेल पढ़ो, मेल डालो जाओ और 1 तारीक की तनख्वाह पाओ।

गॉंव की जमीन को रिश्तेदारों के हवाले छोड़, नाथ और उसकी बूढ़ी माँ अपना जीवन व्यापन कर। मॉं उसके निकम्मेपन को जितना भी कोसे, नाथ अपनी ज़िंदगी से संतुष्ट था। समय ने करवट ली और ग्रहों ने दिशा बदली। आफिस ब्रेक में नाथ अपने साथियो के साथ चाय की चुस्की लेता हुआ कंपनी के मालिको पर व्यंगो के बाण से प्रहार कर रहा था। इतने में उसकी नज़र एक कचरा बीनते हुए बालक पर गयी। सबकी नज़रे चुरा बड़ी चपलता से कचरा बीन रहा था। लुका छिपी का खेल कुछ देर चला की आखिर गार्ड ने दबोच लिया। बालक को पुलिस की धमकी दे घुड़कियाँ देने लगा। नाथ को जाने क्या सूझी, वो गार्ड को हाथ में एक नोट थमा बालक को छुड़ा लाया। "इतनी उम्र में चोरी चकारी। स्कूल क्यों नहीं जाता ?" बालक ने कहा "छोटे को पढ़ने का जज़्बा था, उसे के लिए कर रहा हूँ " नाथ का ये सुनते ही दिल पसीज गया। खुद से ही बुदबुदाया, " एक मैं हूँ, जो सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं कर रहा और एक वो, जो कुछ न होते हुए भी सब कुछ।" करुणा की धारा में बहते हुए नाथ ने नॉकरी छोड़ समाज सुधारक बननेे का निश्चय लिया।

मॉं का नाथ का फैसला सुनने पर गुस्सा होना अपेक्षित था। "दुनिया से दूर हो पूरी जवानी काट दी। क्या था इस पल में जो तू इतना मायूस हो चला। आज ही तेरी आंख क्यों खूली। ये सामाज तो इनपे बहुत सालो से जुर्म ढा रहा था। नही ! मुझे मंजूर नही देश और समाज के खोखले उसूलो के नाम पे एक और पुत्र की आहुति देना।"

नाथ के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था। कुछ सोया हुआ था जो जाग उठा। नाथ के सामने भैया का वो किस्सा आ गया। वो उससे तीन साल बड़ा था। स्कूल से बस्ता टांगे वे दोनों साथ आते थे। एक दिन एक छोटे लड़का लड़की की जोड़ी पर पे तीन युवक जोरो से हो हल्ला करते हुए हमला कर रहे थे। भैया नाथ को अपना बस्ता थमा चल पड़ा उनसे लड़ने और कूद गया सबसे खूँख़ार दिखने वाले जवान पे। थोड़ी देर में वे उन बालको को छोड़ भाई पे पिल पड़े। नतग दूर खड़ा चिल्लाता रहा। अगर समय पे पुलिस वाले दखलन्दनज़ी नहीं देते तो न जाने भाई का क्या हाल बनाते। डर और गुस्से की भावना से ओतप्रोत नाथ भाई को यथार्थवाद का ज्ञान दे ने लगा, "क्या जरूरत थी हीरो बनने की।" भाई मेरी बातों को अनसुना कर आसमान को मुस्कान ओढ़े ताकता रहा।

अॉफिस से छुट्टी ले सुबह उठा हूँ। बहुत हल्का और सुलझा हुआ महसूस कर रहा हूँ। कल तक वो निकम्मा, आलसी, अधीर और बेठिकाना था। आज जैसे उसके सूरज का उदय हुआ हो। नाथ की सच्ची सेवा भावना और कार्य क्षमता देख और भी लोग साथ जुड़ने लगे। नाथ की ख्याति चारो तरफ फैल रही थी। एक दिन मजदूरों की बस्ती में नाथ के भाषण का आयोजन हुआ। "भाइयों, कब तक जानवरों की माफिक ज़िंदगी गुज़ारोगे। समय है,"

इतने में एक श्रोता चिल्लाया "बंद करो ये दिखावा और ढोंग, हम अपनी ज़िंदगी से खुश है। हमे सुकून से रहने दो।" " तुम्हारी इसी सोच की वजह के कारण हमारा देश गरीबी और भुखमरी की ज़ंजीर में बंध बदनाम हो रहा है।" नाथ ने जवाब दिया। " सेठ, तुम्हे क्या लगता है। दो चार भाषण दे और गली गली चंदा मांग अनाज बॉंट तुम हम पर अहसान कर रहे हो ? हम पे तो नहीं पर खुद पे जरूर अहसान कर रहे हो। अपनी असफलताओ को छिपाने आते हो। हमे छोटा और कमज़ोर समझ, मदद करने के बहाने खुद को बड़ा महसूस करते हो। नहीं चाहिए तुम्हारी ये भीख। हम सक्षम है खुद की मदद करने में। जाओ अपना काम करो और हमे भी करने दो।" मजदूर की इस बात का ज़वाब नाथ न दे सका। भीड़ छंट चुकी थी। नाथ मंच से उतर खुद को टटोलने में व्यस्त हो गया। उसे उसके सारा जीवन आधारहीन नज़र आने लगा। उधड़े हुए मन और नैराश्य का दामन थाम वो बस्ती घूमने लगा। तमन्नाओ का ढेर है ऊंचा। सिरहाने खड़ी मंजिल, तुझे पाने का सफर है लंबा। दांए से बाँए, बाँए से दांए। इन टेढ़े मेढ़े रास्तो पे सफर कर टूट गया हूँ। दूरी है कि कम होती नही, थकान है कि मिटती नही, नींद है कि अब आती नही। न कुछ कर गुजरने का जुनून, न दुनिया बदलने की तमन्ना, चाहत है तो बस इस तार्रुन्नम भरे संगीत में ढलते हुए सूरज से आबरू होने की। बस्ती के बच्चो का शोर, गृहणियों की चहचहाट, और जुआरियो की गोश्त, नाथ चेहरे पे तंज भरी मुस्कान बिखेर देती हैं।


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