हार से हार
हार से हार
उसकी हिम्मत जवाब दे गयी थी और आँखों के सामने जैसे अँधेरा सा छा गया था ।
आँख खुली तो अपने आपको हॉस्पिटल में पाया। चारों तरफ नज़र घुमा उसने फिर अपनी आँखें मूंद ली। कमरे में पिन ड्राप साइलेंस था ।
पूरी लिस्ट को उसने चाट डाला था पर फिर भी तृप्ति का नाम उसे कहीं भी नहीं मिला ।
कॉम्पटीशन के ज़माने में सीट मिलना, स्वर्ग मिलने के समान था।
पाँच में से यह तीसरा रिजल्ट था और इसमें भी नंबर नहीं ।
“सुनो…” इशारे से उसने अपनी पत्नी को पास बुलाया।
“......” उसकी सूजी हुई आँखें ही बोल रही थी ।
“ तृप्ति ठीक है ?” उसने जानना चाहा।
“......” आँसूओ का बाँध टूट पड़ा।
“ बुलाओ उसे ।” किसी अनहोनी की आशंका से उसने अपनी पूरी ताकत से कहा ।
“पापा….! “ इतनी देर से रोक कर रखे हुए आँसुओ को पापा के गले से लिपट कर तृप्ति ने बहा दिए ।
“ बेटा, आय एम रियली वेरी सॉरी , तुझे समझाते समझाते देख , मैं खुद ही धैर्य खो बैठा। “ अपने हाथ को देखते हुए वह शर्मिंदा था कि क्यों अपने हाथ की नस काट ली?
“पापा, डोंट वरी, दो रिजल्ट अभी भी आने बाकी हैं । “ तृप्ति ने आस नहीं छोड़ी थी।
“बेटा, किसी भी हार से ,कभी हार मत मानना।“ तृप्ति से कहे उसके शब्द ही आज उसके कानों में गूँज रहे थे।