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माँ तेरी अमर कहानी

माँ तेरी अमर कहानी

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एक लड़का था। उसे स्कूल की किताबों के साथ-साथ बाहर की किताबों से बहुत लगाव था। वह किस्से-कहानियों को बड़े चाव से पढता था। 'सुमन सौरभ' नाम की एक पत्रिका आती थी। हर महीने। बारह रुपये में। वह उसको खरीदने के लिए अपने पूरे महीने के जेब खर्च को बचा कर रखता था। वह भी उसके गऱीब माँ-बाप बड़ी मुश्किल से उसे दे पाते थे। वह उसके लिए सिर्फ एक पत्रिका नहीं बल्की एक सच्चे दोस्त की तरह थी। उसने कहीं तो पढ़ रखा था कि अगर जीवन में अच्छे दोस्त न हों तो अच्छी किताबों और पत्रिकाओं को अपना दोस्त बना लेना चाहिए। इस लिए वह उन सब को दोस्त मानता था। जिसमें 'सुमन सौरभ' पत्रिका उसकी खास दोस्त बन गई थी। वह पत्रिका किशोरों के लिए थी। उस वक्त वह बारह साल का था। उस पत्रिका में छपी कहानियां, चुटकुले, देश-दुनियां, जानकारी की बांते आदि उस का मन मोह लेती थीं। वह पत्रिका को पढ़ने के बाद अपने सीने से लगाता था और फिर सिरहाने रख कर सो जाता था।
एक समय की बात है। उसके लड़के के गरीब माँ-बाप अपनी हाड़-तोड़ मेहनत के बावजूद उसे जेब खर्च ना दे पाये। उसकी फेवरिट पत्रिका बाज़ार की दुकान में आ चुकी थी। पर उस को खरीदने के लिए उस के पास पैसे न थे। वह स्कूल से आते-जाते वक्त उस पत्रिका को देखते रहता था, उसे न खरीद पाने का गम में बहुत उदास रहता था।
उसका मुरझाया हुआ चेहरा देख कर एक रोज उसकी मां वजह पूछी। जानकर उस की मां को बहुत दुख हुआ कि वह अपने बेटे को एक पत्रिका खरीदने के लिए बारह रुपये नहीं दे सकती।
लड़के को पता था कि मां के पास पैसे नहीं है। वह चुप था। फिर भी उसकी मां बोली, 'रुक देखती हूं' मां कह कर चली गई। लड़का बैठा रहा। लगभग आधे घंटे बाद मां वापस आई और लड़के के हाथ में बारह रुपये रख दिए। यह देख लड़के के खुशी का ठिकाना न रहा। वह तुरंत बाज़ार की तरफ भागा।
रात को उसने सोते वक्त मां से पूछा, 'मां तुम्हारे पास तो पैसे नहीं थे, फिर पैसे कंहा से आये?'
इस पर मां बताया की वह अपनी सहेली से उधार ले कर आई है जो वह बाद में लौटा देगी।
घर में खाने के लिए पैसे नहीं है और मां मेरे लिए उधार मांग कर ले आई, जानकर उस की आंखे नम हो गईं। मां के प्यार के आगे वह पत्रिका कुछ नहीं थी।
बड़ा हो कर उसने मां के कदमों में तो दौलत के ढेर लगा दिए फिर भी उसे हमेशा एक बात का अफसोस होता रहा कि वह इतना सब कुछ करने के बाद भी, मां का वह उस वक्त का बारह रुपये न लौटा सका... क्यूंकि गुज़रा हुआ वक्त लौट कर नहीं आता।


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