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mona kapoor

Inspirational

4.8  

mona kapoor

Inspirational

बदलाव

बदलाव

3 mins
499


देखो तो ज़रा ! कैसे छोटे छोटे कपड़े पहन कर घूमती है, घर में बड़ा भाई है..माँ-बाप है कोई समझाता क्यों नहीं इसको, सही कहते हैं कि माँ बाप ही बढ़ावा देते हैं फिर ज़रा सी कोई ऊँच-नीच हो जाए तो लगते हैं शोर मचाने।

गली से अपनी मम्मी सुशीला के साथ जाती हुई श्रेया को देखकर फुसफुसाते हुई औरतों ने जैसे ही उन्हें पास आते देखा तो मानो मुँह में मिश्री सी मिठास घुल गयी व धीरे धीरे सब अपने घर की ओर निकल पड़ी लेकिन मिसेज शर्मा सुशीला जी का हाथ पकड़ते हुए कहने लगी।

अरे, “सुशीला बहनजी क्या हाल चाल है...और श्रेया बेटा कैसी चल रही हैं पढ़ाई ? बड़ी हो गयी हमारी श्रेया बेटा हमारे सामने जब यहां आयी थी तब इतनी सी ही तो थी कहते हुए मिसेज शर्मा हँसने लगी लेकिन उनकी व्यग्यंपूर्ण हँसी उनके मन व चेहरे के भावों के बीच आपसी तालमेल बिठा पाने में असमर्थता प्रकट कर रही थी। हाल-चाल से संबंधित बातचीत करके जैसे ही सुशीला जी आगे बढ़ने ही वाली थी मिसेज शर्मा तपाक से बोली-

”बहनजी, बुरा न मानना तो एक बात कहूं अब हमारी श्रेया बड़ी हो गई है वो हमारी बेटी है इसीलिए बड़ा ही बुरा लगता है जब वो इतने छोटे छोटे कपड़े पहनकर बाहर निकलती हैं, अरे लड़की जात है ऐसे कपड़ो में जिसकी नजर न जाए उसकी भी जाएगी, अब मेरा बेटा भी बड़ा हो रहा है.. इसीलिए ज़रा ध्यान रखा करो, अभी समय रहते संभाल लोगी तो सही रहेगा लेकिन जब और बड़ी होगी तब तक समय हाथ से निकल जाएगा, फिर नहीं सुनेगी यह तुम्हारी, और कल को कोई ऊँच-नीच हो गई तो कौन जिम्मेदार होगा। फिर कही ऐसा न हो कि कभी पछताने का मौका भी न मिले।” लगभग एक से दौ मिनट में मिसेज शर्मा ने मानो अपनी सारी भड़ास निकाल ली हो।

“सही कहा आपने इसमें बुरा क्या मानना.. हँसते हुए सुशीला मिसेज शर्मा को बोली। वैसे बहनजी श्रेया के कपड़ों में क्या बुराई है एक साधारण सी जीन्स व टीशर्ट ही तो पहनी हुई है बस फर्क इतना है कि यह ज़रा सी ऊंची है, अब जिसने गंदी नज़रों से देखना है उसने तो सलवार सूट में भी देख लेना है ना, तो इसके लिए चिंता करना बेकार।“

वैसे भी समाज बदल रहा है, लोगों की सोच बदल रही है और आप कहां यह संकीर्ण सोच के साथ जी रही हैं, बदलिए खुद को आज कल तो “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि पढ़ लिख कर बेटियां अपने देश का नाम रौशन करे और इनके पहनावे से इनके चरित्र का स्वनिर्माण करना शायद उचित नहीं है लेकिन इतना ज़रूर कहूंगी कि जब हम “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”अभियान की नई राह पर निकल पड़े हैं तो इसमें एक और नया बदलाव जो कि हमारे द्वारा लाना बहुत ही ज्यादा जरूरी है कि “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ व अपने बेटों को भी सिखाओ”,ताकि वो भी लड़कियों की इज़्जत करना सीखें।

कहते हुए सुशीला जी आगे बढ़ी लेकिन अचानक से पीछे मुड़कर बोली कि अरे ! मिसेज शर्मा जी, आपके बेटे का गाल कैसा है अब, कल उसे दूसरे मोहल्ले में किसी लड़की को छेड़ने पर जोरदार तमाचा खाते हुए देखा था।”

यह सारी बातें सुनकर मिसेज शर्मा जी की आँखे शर्म से झुक गयी।


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