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स्कूल से साथ समझौता

स्कूल से साथ समझौता

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आज अंतिम दिन है। आज के बाद स्कूल में ताला लग जाएगा। बचे हुए बच्चे पास के स्कूलों में डाल दिए जाएंगे या फिर सड़कों पर नजर आएंगे। टीचर की जहां तक बात है उन्हें किसी और स्कूल में एडजस्ट किया जाएगा। आप चिंता क्यों करते हैं सर? सर आपको बस स्कूल ही तो बदलने के लिए कहा जा रहा है। कोई दुनिया थोड़े ही रूक गई। ऐसे हजारों स्कूल बंद हो गए। लेकिन क्या दुनिया रूकी? रूकी क्या?
स्कूल का गलियारा, कमरे, मैदान सब सूने नजर आ रहे थे। मास्टर नगीना बाबू की आंखों के सामने सन् 1986 याद आने लगा जब पहली बार इस स्कूल में दाखिल हुए तो उस वक्त तकरीबन 2200 बच्चे पढ़ा करते थे। टीचर भी डेढ़ सौ के आस पास थे। शिफ्ट में स्कूल चला करता था। प्रिंसिपल ऑफिस में हमेशा दाखिले के लिए बड़े छोटे हर किस्म हर आकार, हैसियत के लोग बैठे मिल जाया करते। ऐसे में नगीना बाबू ने इस स्कूल में ज्वाइन किया था। क्लास के सेक्शन भी ई और एफ, जी एच तक थीं। ठसा-ठस भरी क्लास में पढ़ाने के आनंद का स्वाद आज भी नगीना बाबू के जबान पर है। 
धीरे-धीरे लोहा सिंह, राय साहब, रिज़वी बाबू सब सेवानिवृत्त होते रहे और कुछ तो इस दुनिया से भी मुक्त हो गए। लेकिन नगीना बाबू अभी इसी स्कूल में हैं। बल्कि थे। थे ही कहना चाहिए क्योंकि नगीना बाबू को अब दूसरे स्कूल में एडजस्ट करने की बात चल रही थी। प्रिंसिपल भी आए गए। लेकिन जो सबका संबंध मिश्र जी से रहा वह किसी और से नहीं हो पाया। मिश्र जी के साथ तो गाय खरीदने, पाल दिलाने, घर में शादी ब्याह सब कुछ साझा होता रहा। धीरे-धीरे नगीना बाबू के बच्चे भी बड़े होकर शहर छोड़ गए। रह गए तो मिश्र जी और नगीना बाबू। नई प्रिंसिपल ने तो एक-एक कर टीचर के साथ ऐसा बरताव किया कि आपस में फूट डाल दी। न नगीना बाबू खुश थे और न घनश्याम पांडे। 
स्कूल का वह पल भी नगीना बाबू की आंखा में बरबस घूमने लगता है जब नई प्रिन्सिपल ने स्कूल में कम होते बच्चों की ओर से आंखें मूंद ली थीं। कम हो रहे हैं तो हों क्या फर्क पड़ता है। हमें तो हमारी सैलरी हर माह आ ही रही है। इन्होंने जितना नुकसान स्कूल को पहुंचाया उतना तो मेघराज बाबू ने भी नहीं पहुंचाया। कम से कम मेघराज बाबू का मिश्र जी के साथ जो भी तना तनी थी वह प्रोफेशनल थी। उससे आपसी रिश्तों में कभी आंच तक नहीं आने दी। यह अलग बात है कि मेघराज बाबू मिश्र जी से कोर्ट में सिनियरीटी लिस्ट के बाबत केस हार गए और अंत में मिश्र जी तकरीबन बीस साल तक स्कूल को ऐसे चलाया जैसे उन्हें घर में कुछ करने को था ही नहीं। हर वक्त स्कूल की चिंता। स्कूल को कैसे जिला और राज्य स्तर पर पहचान बनाई जाए इसी चिंता में मिश्र जी रिटायर हुए। उनके बाद आईं प्रिंसिपल की कार्य सूची में स्कूल के कल्याण की जगह और कुछ ही थीं। इसी एजेंडे पर वो काम करती रहीं। और उसी का परिणाम है कि आज स्कूल बंद होने के कगार पर है। 
नगीना बाबू को उनकी पतोहू ने जगाया। 
‘स्कूल नहीं जाना है का?’
‘देखिए नौ बज गया।’
‘माथा तो आपका जल रहा है। बुखार लगता है।’ 
‘आपसे मिलने मिसिर जी आएं हैं। बोल बतिया लिजिए।’
मिश्र जी पास में बैठे नगीना बाबू से बात करने की कोशिश की कि देखिए जो भी हो स्कूल तो बंद हो जाएगा। सब दिन एक से नहीं होते नगीना बाबू। आपकी नौकरी अभी पांच साल की बची है। उसे ठीक से निभाइए। 
लेकिन नगीना बाबू अड़े रहे कि 
‘मैं ऐसी महिला के साथ अब और काम नहीं कर सकता।’
‘आख़िर मैं भी वाइस प्रिंसिपल हूं कुछ तो मेरी भी राय ली जाए। वो जो भी निर्णय लेती है खुद ही तय कर सिर्फ सुनाती है।’
‘मिश्र जी आप बहुत भोले हैं। आपका समय जा चुका। आप तो अपनी पॉकेट से भी खर्च कर दिया करते थे। एक वो है हमेशा स्कूल को नींबू की तरह निचोड़ रही है। सब को सेट कर रखा है।’ 
वो तमाम कंपनियों और निजी संस्थानों से बात कर सब कुछ फिक्स कर चुकी है। सुना तो यह भी जा रहा है कि उसने स्कूल के मैदान को उनके लिए खुल दिया है, उस जगह पर एक प्राइवेट कंपनी स्टेडियम बनाने वाली है। जहां इसी स्कूल के बच्चे दाखिल नहीं हो सकते। 
यह कैसा खेल-खेल रही हैं पता ही नहीं चलता। मैंने तय कर लिया है कि मैं वीआरएस ले लूंगा। 
काफी समझाने के बाद भी नगीना बाबू नहीं माने। 
आज अंतिम दिन है। नगीना बाबू उदास हैं। उनकी आंखें मिश्र जी, रिज़वी साहब, लोहा सिंह को याद कर रही है। 
प्रिंसिपल मैडम आईं और फरमान जारी कीं कि जिसे नए स्कूल में नहीं जाना उसके साथ हम कुछ नहीं कर सकते। वो आजाद है निर्णय लेने में। वैसे जो साथ हैं उन्हें किसी और स्कूल में शिफ्ट कर दिया जाएगा। अब क्या कहें जिन्हें मौजूदा हवा के साथ बहना नहीं आता। 
वो लगातार बोले जा रही थीं। नगीना बाबू बस सुन रहे थे। सुन रहे थे या सुनने का नाटक कर रहे थे। पता नहीं लेकिन उन्हें आया जब मिश्र जी के सामने अपने ही शिक्षक के खिलाफ बच्चे से यौण शोषण का आरोप लगायी और जेल जाने की नौबत आ गई तब भी मिश्र जी आपने शिक्षक के साथ खड़े थे। वो लगातार यही कह रहे थे कि जो भी हो जेल नहीं जाएगा हमारा स्टॉफ। मैं पहले तफ्शील करूंगा फिर निर्णय लूंगा। आखि़रकर जेल जाने से उस शाम वो बच गए। लेकिन मिश्र जी ने इस मामले को यूं हवा में उड़ने नहीं दिया। 
नगीना बाबू खामोश बैठे यही सोच रहे थे कि वो भी क्या दिन थे जब इस स्कूल में ज्वाइन किया था। बच्चों की कमी न थी। एक क्लास से दूसरी कक्षा में जाने में समय भी लगा करता था। लेकिन एक आज का दिन है बच्चों की राह तकते-तकते सांझ हो जाती है। बच्चों को देखे हफ्ते भी गुजर जाते हैं। 
अब पिछले हफ्ते की बात लीजिए सुबह से शाम हो गई। न तो क्लास में गया और न ही कुछ पढ़ाया ही। अब इन्हें पढ़ाएं भी तो क्या? काम दो तो करते नहीं हैं। आज जो आए वो कल नदारद। करें भी तो क्या? अपनी नौकरी बचानी मुश्किल हो रही है। 
‘बाबू जी कुछ खा क्यों नहीं लेते?’ सुबह से बिना नहाए धोए चौंकी पर पड़े हैं। ज्यादा देर खाली पेट रहेंगे तो...’ नगीना बाबू की बढ़की पतोहू ने उन्हें जगाया। तब जा कर उठे और मुंह हाथ धो कर वापस आए। आज का अखबार उठाए तो मुंह कसैला सा हो गया। पहले ही पन्ने पर सिंगल कॉलम की खबर लगी थी ‘ 1935 में स्थापित शहर के पुराने स्कूल में लगा ताला।’ आगे खबर थी, ‘मालूम हो कि शहर ही नहीं जिले का सबसे पुराना स्कूल आखिकार निजी हाथों में सौंप दिया गया। आज से इस स्कूल में महंगी और खर्चीली शिक्षा दी जाएगी। जो बच्चे स्कूल में बचे थे उन्हें पास के सरकारी स्कूल में एडजस्ट किया गया। साथ ही ख़बर तो यह भी है कि इस स्कूल के सबसे पुराने शिक्षक नगीना सिंह भूख हड़ताल पर। स्कूल को निजी हाथों में सौंपने के खिलाफ धरने पर।’ 
नगीना बाबू को मिश्र जी ने काफी समझाया कि धरणा, भूख-हड़ताल से क्या हासिल होगा। क्या आपके भूख हड़ताल पर चले जाने से सरकार अपने इरादे बदल लेंगी? लेकिन नगीना बाबू तो थे भी जिद्दी से बैठ गए भूख हड़ताल पर। 
रोज दिन कोई न केई अधिकारी, नेता, कंपनी के एजेंट उन्हें मनाने आते रहे। शिक्षा विभाग उन्हें शहर के बेहतर स्थापित सरकारी स्कूल में स्थानांतरण का प्रस्ताव दे चुकी थी जिसे उन्होंने सुनते ही नकार दिया। नकार और स्वीकार के खेल तकरीबन दो हप्ते चले। इस बीच उन्हें पुलिस अस्पताल भी भर्ती कर चुकी थी। मगर उनके हठ आगे किसी की भी एक न चली। अंतिम बाण शायद उनके अंदर घर कर गई। 
‘आपको इस स्कूल के एकेडमिक हेड बनाने की फैसला कंपनी कर रही है। हम चाहते हैं कि आपके लंबे अनुभव का लाभ कंपनी और स्कूल को मिले।’ कंपनी के सीइओ ने बड़ी तसल्ली से और ठोसता के साथ कहा था। अब नगीना बाबू की सांस तेज चलने लगी। कुछ बोल नहीं पाए। ऐसी स्थिति को कंपनियों के पैरोकार और हेड अच्छी तरह से भांप लेते हैं। सो वही हुआ जो कंपनी चाहती थी। सीइओ ने यह भी कहा कि ‘अभी आपकी जितनी सैलरी है उसका तिगुना कंपनी ने देना निश्चित किया है।’ 
नगीना बाबू के पास ही बैठी उनकी बढ़की पतोहू अंगुलियों पर गिनने लगी। गिनते-गिनते उसकी आंखों में एक चमक दौड़ गई। नगीना बाबू ने न न की जो रट लगा रखी थी। उससे सीइओ को भी खीझ हो रही थी। लेकिन मरता क्या नहीं करता। चुप बैठी नगीना बाबू की ओर देख रही थीं। पतोहू ने झिझकते हुए लेकिन विश्वास के साथ कहा ‘ आप कल तक इंतजार कीजिए हम बाबूजी से बात करते हैं।’ 
‘या या यू मस्ट टेक योर टाईम। वी वील वेट।’ 
‘वी डोंट वांट टू लूज सच ए डिवोटेट पर्सन लाइक नगीना जी’ और सीइओ बोल कर चलीं गईं। 


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