तो खिले चमन
तो खिले चमन
तो खिले चमन
दो कदम मिल के चलें,
सरहदो पे हम।
तो खिले चमन,
तो खिले चमन।।
तेरी नादानियों को,
भुला पाए हम।
देंगे इतना प्यार तुझे,
जिन्दगी होगी कम।।
किनारे रख जो पाए,
नफरतों का रंग।
तो खिले चमन,
तो खिले चमन।।
नफरतों की ये हवा,
सरहदों से दूर हो।
आओ ऐसा कर्म करें,
जिस पर खुद गुरूर हो।।
जिस दिन होगा ,
पुरा ये सपन।
तो खिले चमन,
तो खिले चमन।।
जंग में कौन किसको,
जीत पाया हैं।
सिकंदर ना संग कुछ,
ले जा पाया हैं।।
कुछ ना होगा हासिल,
जान ले जो हम।
तो खिले चमन,
ते खिले चमन।।
उजड़े हुए गुलशन को,
आजा तू सजा लें।
एक बार दोस्ती का,
हाथ तू बढ़ा दें।।
फैल जाए महकी हवा,
मुस्कुरा दें वतन।
तो खिले चमन,
तो खिले चमन।।
चलता रहें दुर तलक,
दोस्ती का कारवाँ।
हो ये जमीं अपनी,
अपना हो ये आसमाँ।।
जाने कब होगा ,
"अनमोल"ये मिलन।
तो खिले चमन ,
तो खिले चमन।।
अनमोल तिवारी "कान्हा"