वड़वानल - 48
वड़वानल - 48
सरदार पटेल के कमरे में फ़ोन की घण्टी बजी। आज़ाद का फोन था। ‘‘मुम्बई के नौसैनिकों द्वारा किये गए विद्रोह के बारे में पता चला ना ?’’ सरदार ने पूछा।
‘‘सुबह के अख़बार में इस बारे में पढ़ा। बी.बी.सी. के सुबह के समाचार भी सुने। आज सुबह परिस्थिति कैसी है ?’’ आज़ाद ने पूछा।
‘‘अभी कुछ ही देर पहले सैनिकों का एक बड़ा मोर्चा फोर्ट भाग में निकला था। मोर्चे में दो हज़ार से ज़्यादा सैनिक थे। इस विद्रोह को लगभग सभी जहाज़ों और ‘बेसेस’ ने समर्थन दिया है। ये सैनिक गुटों–गुटों में फोर्ट बैरेक्स में इकट्ठे हो रहे हैं। यहाँ जमा हो चुके सैनिकों की संख्या करीब बीस हज़ार होगी।’’ सरदार पटेल ने जानकारी दी।
‘मतलब, परिस्थिति गम्भीर है। सैनिक किस हद तक हिंसक हुए हैं ?’’ आज़ाद ने पूछा।
‘‘अभी तक तो सैनिक अहिंसक मार्ग पर ही चल रहे हैं मगर यदि उन्होंने हिंसक मार्ग का अनुसरण किया तो फिर हालात बिगड़ जाएँगे।’’ सरदार पटेल ने स्पष्ट किया और पूछा, ‘‘इस हालत में कांग्रेस का स्पष्ट सिद्धान्त क्या है? हमारी भूमिका कैसी होनी चाहिए ?’’
आज़ाद ने पलभर को सोचा और बोले, ‘‘फिलहाल तटस्थ रहिए। कल मैं कमाण्डर इन चीफ़ एचिनलेक से सम्पर्क करूँगा और कांग्रेस के अन्य नेताओं से भी सम्पर्क करके कांग्रेस की भूमिका के बारे में आपको सूचित करूँगा।
आज़ाद ने फ़ोन रख दिया और बेचैनी से वे चक्कर लगाने लगे।
‘मुम्बई के सैनिक हिंसा पर उतारू हो जाएँ इससे पहले ही कुछ न कुछ करना ही होगा, कोई रास्ता निकालना ही चाहिए।’ वे सोच रहे थे।
‘सरकार की क्या भूमिका है इसका पता लगना चाहिए। इस संघर्ष को जनता का समर्थन मिलेगा ?’ उन्होंने अपने आप से पूछा।
‘बिलकुल मिलेगा’, उनके दूसरे मन ने गवाही दी, ‘‘क्योंकि करीब–करीब नब्बे साल बाद सैनिक स्वतन्त्रता के लिए सुलग उठे हैं। उनका साथ देने से आज़ादी की आस अवश्य ही पूरी हो जाएगी। सामान्य जनता तो क्या, बल्कि यदि कांग्रेस ने विरोध किया तो भी समाजवादी गुट बिलकुल समर्थन देगा।’ इस विचार से वे अस्वस्थ हो गए। उन्होंने फ़ौरन कमाण्डर इन चीफ़ के ऑफ़िस से फोन मिलाया।
''Secretary to Commander in Chief speaking.'' सेक्रेटरी की आवाज़ आई।
‘‘मैं मौलाना अबुल कलाम आज़ाद। मुझे कमाण्डर इन चीफ़ से मिलना है।’’
‘‘किस बारे में ?’’
‘‘सैनिकों के विद्रोह के बारे में।’’
‘‘ठीक है, मैं कमाण्डर इन चीफ़ से पूछता हूँ।’’
एचिनलेक को आज़ाद की इच्छा के बारे में पता लगा तो वे मन ही मन खुश हो गए। वे इसी की राह देख रहे थे।
‘यदि कांग्रेस को दूर रखा जाए तो पूरी समस्या चुटकियों में हल हो जाएगी।’ वे पुटपुटाए। ‘आज़ाद को थोड़ा लटकाकर रखेंगे ’। उन्होंने मन ही मन निश्चय किया और सेक्रेटरी से कहा, ‘‘कल सुबह दस बजे का समय दो।’’
आज़ाद बेचैन हो गए।
आज़ाद के घर का फ़ोन घनघनाया, पटेल बोल रहे थे।
‘‘यदि सैनिकों ने समर्थन माँगा तो हमारी भूमिका क्या होगी ?’’ पटेल पूछ रहे थे। ‘‘अरुणा आसफ अली उनसे मिलने वाली हैं। शायद वे नेतृत्व भी करें। यदि ऐसा हुआ तो... नहीं, उन्हें दूर रखना ही होगा।’’ सरदार पटेल की बेचैनी उनकी बातों में प्रकट हो रही थी।
‘‘अरुणा आसफ अली से मैं बात करता हूँ। कल सुबह मैं लॉर्ड एचिनलेक से मिलकर चर्चा करने वाला हूँ। मेरा यह विचार है कि सैनिक काम पर लौट जाएँ, कांग्रेस से बिना पूछे, उस पर विश्वास न करते हुए, यह विद्रोह किया गया है। आप भी यही भूमिका अपनाएँ,’’ आज़ाद ने सुझाव दिया।
‘‘यदि सरकार सैनिकों को काम पर वापस न ले तो ?’’ सरदार पटेल ने सन्देह प्रकट किया।
‘‘ऐसा नहीं होगा’’ आज़ाद ने आत्मविश्वास से कहा, ‘‘यदि ऐसा कुछ हुआ तो हम उचित कदम उठाएँगे।’’
‘‘मगर अरुणा आसफ अली...’’ पटेल का सन्देह।
‘‘मैं सम्पर्क करता हूँ। मुझे यकीन है कि वे मेरी बात मान लेंगी।’’ आज़ाद ने आश्वासन देते हुए फ़ोन रख दिया।
लन्डन में हाउस ऑफ कॉमन्स और हाउस ऑफ लॉर्ड्स की सभा हो रही थी। दोनों सभागृहों के सदस्यों को हिन्दुस्तान की घटनाओं की थोड़ी–बहुत जानकारी मिल चुकी थी। उनके मन में एक ही सन्देह था, ‘क्या इंग्लैंड हिन्दुस्तान में अपनी सत्ता बनाए रख सकेगा ?’
दोनों सभागृहों में सदस्यों ने सरकार से कई प्रश्न पूछे इन सभी प्रश्नों का रुख एक ही ओर था, ‘‘सरकार इस विद्रोह को दबाने के लिए क्या कार्रवाई करने जा रही है ?’’
सेक्रेटरी ऑफ स्टेट्स फॉर इण्डिया लॉर्ड पेथिक लॉरेन्स ने उपलब्ध जानकारी के आधार पर सभा को बताया, ‘‘सरकार परिस्थिति पर पूरी नज़र रखे हुए है। इस प्रकार के विद्रोह पहले भी हिन्दुस्तानी नौदलों में हो चुके हैं। जितने आत्मविश्वास से सरकार ने पहले के विद्रोहों को कुचल दिया था, उतने ही आत्मविश्वास से यह विद्रोह भी दबा दिया जाएगा। सरकार हिन्दुस्तान की आज़ादी पर विचार–विनिमय करने के लिए और सविस्तर चर्चा करने के लिए तीन मन्त्रियों का एक मण्डल भेजने वाली है। इस मण्डल को 'His Majesty the king' ने मान्यता दी है। सर स्टॅफर्ड क्रिप्स, फर्स्ट लॉर्ड ए.बी. अलेक्जांडर और मैं, पेथिक लॉरेन्स, इस मण्डल के सदस्य होंगे।’’
हिन्दुस्तान को आज़ादी देने के बारे में विस्तृत योजना बनाने के लिए कैबिनेट मिशन हिन्दुस्तान आने वाला है, मिशन के सदस्यों की नियुक्तियाँ हो गई हैं – यह सूचना लॉर्ड एचिनलेक को प्राप्त हुई और वे खुश हो गए।
‘अब कांग्रेस और मुस्लिम लीग को इस विद्रोह से दूर रखना मुश्किल नहीं है। उनके लिए यह मिशन एक ‘लालच’ है, ’ वे पुटपुटाए।
‘फिर कम्युनिस्टों का क्या ?’’ उन्होंने अपने आप से पूछा।
‘उनकी परवाह करने की ज़रूरत नहीं,’ उन्होंने अपने मन को समझाया।
‘अगर इस मिशन की घोषणा दो–चार दिन बाद, विद्रोह के शान्त होने के बाद की जाती तो... अब तो इसका पूरा श्रेय सैनिकों के विद्रोह को जाएगा।’ उनके मन में सन्देह उठा। ‘मगर मेरा काम आसान हो गया है।’ उन्होंने सोचा और शान्ति से सिगार सुलगाया।
मुम्बई के जहाज़ों और नौसेना तलों के सैनिकों का प्रवाह तलवार की ओर जारी था। उनकी संख्या अब दस हज़ार के करीब हो गई थी। तलवार का परेड ग्राउण्ड सैनिकों से खचाखच भरा था। तलवार की स्ट्राइक–कमेटी के सदस्य इस ज़बर्दस्त समर्थन से भावविभोर हो गए थे।
‘‘एकत्रित सैनिकों को यहाँ एक साथ बोलने का मौका दिया जाए तो उनकी पीड़ा जनता तक पहुँचेगी और हमारी एकता अधिक मज़बूत होगी।’’ दत्त ने सुझाव दिया।
‘‘इतने ही से काम नहीं चलेगा। हर जहाज़ को और हर ‘बेस’ को यह महसूस होना चाहिए कि यह संघर्ष उन्हीं का है; और यदि लिए गए हर निर्णय में उनका सहभाग रहा तभी उन्हें ऐसा महसूस होगा। प्रत्येक जहाज़ और बेस के प्रतिनिधियों की एक केन्द्रीय समिति बनाएँ।’’ गुरु ने सुझाव दिया।
खान ने लाउडस्पीकर से घोषणा की, ‘‘सभी सैनिक परेड ग्राउण्ड पर जमा हो जाएँ।’’
बैरेक में बैठे हुए और इधर–उधर टहल रहे सैनिक परेड ग्राउण्ड की ओर चल पड़े।
खान, गुरु, दत्त, मदन, पाण्डे और तलवार की स्ट्राइक–कमेटी के सदस्य सैल्यूटिंग डायस पर आए। आज तक इस डायस का उपयोग नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी सैल्यूट स्वीकार करने के लिए करते थे। आज इसी डायस का उपयोग स्वतन्त्रता के मन्त्र से सैनिकों के मन में आत्मसम्मान की पवित्र अग्नि जलाने के लिए किया जाने वाला था।
‘‘दोस्तो ! तलवार के सभी सैनिकों की ओर से मैं आपका स्वागत करता हूँ’’, दत्त ने सबका स्वागत किया। दिसम्बर से लेकर 18 तारीख की रात तक घटित घटनाओं के बारे में बताया, तलवार के सैनिकों के निश्चय के बारे में बताया। एकत्रित सभी सैनिक शान्ति से सुन रहे थे। बीच–बीच में 'Shame, Shame !' के नारे लग रहे थे।
दत्त के पश्चात् खान बोलने के लिए आया।
‘‘दोस्तो ! इतनी भारी तादाद में आपको यहाँ देखकर हम सबको यकीन हो गया है कि इस संघर्ष में तलवार अकेला नहीं है। आज हम, जो यहाँ एकत्रित हुए हैं, न हिन्दू हैं, न मुस्लिम, न ही सिख। हम सभी हिन्दुस्तानी हैं; हिन्दुस्तान की स्वतन्त्रता के लिए एक दिल से खड़े सैनिक हैं, हमें अपनी जाति, अपना धर्म, अपना प्रान्त, अपनी ब्रैंच भूलकर ‘स्वतन्त्रता’ - इस एक लक्ष्य से प्रेरित होकर संगठित हुआ देखकर अंग्रेज़ों के दिल में दहशत पैदा हो गई होगी। हमारे विद्रोह की ख़बर सुनकर देश के अन्य नौदलों की ‘बेस’ के सैनिक और मुम्बई के बाहर के जहाज़ों के सैनिक इस संघर्ष में शामिल होंगे इसका मुझे और मेरे साथियों को यकीन है। सेना के अन्य दलों का समर्थन भी हमें मिलेगा। वे भी हमारे पीछे–पीछे संघर्ष में शामिल होंगे ऐसी अपेक्षा है। आज हमने जो लड़ाई आरम्भ की है उसका पूरा श्रेय सुभाष बाबू को है। बदकिस्मती से वे आज हमारे बीच नहीं हैं। यदि वे आज होते तो वे ही हमारा नेतृत्व करते उन्होंने ही हमारे आत्मसम्मान को जगाया है। उनका नेतृत्व नहीं है इसलिए हमें हताश होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उनकी केवल याद ही हमारा नेतृत्व करेगी। उनके दिखाए मार्ग पर चलकर हमारी विजय होगी यह ध्यान में रहे।
‘‘हमारा संघर्ष स्वतन्त्रता–संघर्ष है। हमें स्वतन्त्रता इसलिए चाहिए कि वह हमारा अधिकार है ! अंग्रेज़ों की मेहरबानी स्वरूप, उनकी शर्तों पर दी गई आज़ादी हमें नहीं चाहिए। पिछली चार पीढ़ियों से हम स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहे हैं, स्वतन्त्रता की राह देख रहे हैं। अब और इन्तजार नहीं कर सकते। हमारा संघर्ष संकुचित स्वार्थ के लिए नहीं है। हमारे माँग–पत्र में हालाँकि स्पष्ट रूप से स्वतन्त्रता की माँग नहीं की गई है, फिर भी हमारी माँगों का निहितार्थ एक ही है। ‘स्वतन्त्रता और पूर्ण स्वतन्त्रता !’
‘‘दोस्तो ! याद रखो, अंग्रेज़ों के यहाँ से जाए बिना हमारी गुलामी ख़त्म होने वाली नहीं। कितने दिनों तक हम गुलामी का जुआ ढोते रहेंगे ? मातृभूमि की गुलामी की जंज़ीरें काटने के लिए जो निर्भयतापूर्वक बलिदान कर रहे हैं, उनका बलिदान हम कब तक पत्थर दिल बनकर देखते रहेंगे ? ये सब ख़त्म करने के लिए हम इस लड़ाई में उतरे हैं। शायद इसमें हमें अपने प्राण भी गँवाने पड़ें, मगर गुलामी की, लाचारी की जिन्दगी के मुकाबले गुलामी की जंज़ीरें काटते हुए आई मौत कहीं बेहतर है। दोस्तो ! भूलो मत ! हमारा संघर्ष एक शक्तिशाली हुकूमत से है, एक सुसंगठित व्यवस्था से है। यदि हम संगठित होंगे , एकजुट रहेंगे तभी हमारी जीत होगी। इसके लिए हमें अनुशासित रहना होगा। अनुशासन के बगैर यदि हम संगठित हुए तो वह संघर्ष करने वाली सेना न होगी, बल्कि भेड़–बकरियों का हुजूम होगा। यदि हम युद्धकालीन अनुशासन का पालन करेंगे तभी जयमाला हमारे गले में पड़ेगी, हमारा लक्ष्य पूरा होगा। चाहे हमने काम बन्द कर दिया हो फिर भी हमने अपना पेशा नहीं छोड़ा है। भूलो मत, हम सैनिक हैं और सैनिक ही रहेंगे।’’
खान के भाषण से वहाँ एकत्रित सारे सैनिक भड़क उठे। उन्होंने उत्स्फूर्त नारे आरम्भ कर दिये:
‘‘हम सब एक हैं !’’
‘‘वन्दे मातरम् !’’
‘‘क्विट इंडिया !’’
‘‘दोस्तो ! शान्त हो जाइये, शान्त हो जाइये !’’ गुरु सैनिकों से अपील कर रहा था।
‘‘हमें अनेक काम करने हैं, अपनी रणनीति निश्चित करनी है, हमारा नेतृत्व सुनिश्चित करना है, और हमारे पास समय कम है,’’ गुरु की इस अपील से सैनिक शान्त हो गए।
‘‘दोस्तो ! हम एक सेंट्रल स्ट्राइक कमेटी स्थापित करेंगे; इस कमेटी के सामान्य अधिकार और कार्यक्षेत्र निश्चित करेंगे, कमेटी के सदस्य हर जहाज़ और ‘बेस’ के प्रतिनिधि और नेता होंगे; कमेटी द्वारा लिया गया प्रत्येक निर्णय सब पर लागू होगा; कमेटी के निर्णय चर्चा द्वारा लिये जाएँगे। इस सेन्ट्रल स्ट्राइक कमेटी के ही समान हर जहाज़ और बेस पर एक–एक कमेटी बनाई जाएगी।’’ गुरु ने सुझाव दिया।
गुरु का सुझाव सबने मान लिया। खान को एकमत से सेंट्रल स्ट्राइक कमेटी का अध्यक्ष और मदन को उपाध्यक्ष चुना गया; और फिर हर जहाज़ की समितियाँ बनाकर उनके प्रतिनिधियों को सेन्ट्रल स्ट्राइक कमेटी का सदस्य मनोनीत किया गया और सेन्ट्रल स्ट्राइक कमिटी की औपचारिक मीटिंग आरम्भ हो गई। खान ने अध्यक्ष पद के सूत्र सँभाल लिये !
‘‘दोस्तो ! आज हम स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए ही अंग्रेज़ों के विरुद्ध खड़े हैं। एक ही इच्छा है – स्वतन्त्र हिन्दुस्तान के सागर तट की जी–जान से रक्षा करने की। हमें राजपाट नहीं चाहिए, शासन में हिस्सेदारी नहीं चाहिए। हमें चाहिए हिन्दुस्तान की आज़ादी, अखण्ड हिन्दुस्तान की आज़ादी।
‘‘अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमारा राष्ट्रीय पक्ष से सहयोग लेना आवश्यक है। हमारे सहकारी कराची में आज़ाद से मिले थे। हम, तलवार के सैनिक, भूमिगत क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में थे। हमने निश्चय किया है कि कल अपनी माँगें राष्ट्रीय नेता के माध्यम से पेश करेंगे, क्योंकि उनके इस तरह पेश करने पर ही सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित होगा कि इस स्वतन्त्रता संघर्ष में राष्ट्रीय पक्षों के साथ–साथ सैनिक भी हैं। कल हमने अपना प्रतिनिधि मण्डल अरुणा आसफ अली के पास भेजा था। आज भी हमारे प्रतिनिधि उनसे मिलकर मध्यस्थता करने और संघर्ष के सूत्र अपने हाथों में लेने की विनती करने गए हैं। यह ज्ञात हुआ है कि अरुणा आसफ अली ने मध्यस्थता करना स्वीकार कर लिया है।’’ खान ने अपनी अपेक्षाओं को प्रस्तुत करते हुए जानकारी दी।
अरुणा आसफ अली मध्यस्थता करेंगी यह खबर उत्साहजनक थी।
‘‘शुरुआत तो अच्छी हुई है। अब हमारी विजय निश्चित रूप से होगी।’’ कोई पुटपुटाया।
सैनिकों का उत्साह और आनन्द नारों के रूप में प्रकट होने लगा।
‘‘अरुणा आसफ अली, जिन्दाबाद !’’
‘‘हम सब एक हैं !’’
‘‘इन्कलाब, जिन्दाबाद !’’ सैनिक नारे लगाते रहे।