कड़वा सच
कड़वा सच
कल्याणी, हमेशा स्नेहा के लिए चिंतित रहती कुछ ही दिन पहले उसने कॉलेज ज्वाइन किया है।
असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर, कभी आने में देर-सवेर हो जाती तो वो दरवाजे पे खड़ी उसकी राह तकती रहती। या फिर जाने कितनी बार अंदर-बाहर होती रहती।
"स्नेहा बेटा मैंने या किसी और ने ऐसा तो कभी कुछ नहीं कहा कि जो, तूने अपने पास मोबाइल ना रखने की कसम खाई है।" अगर एक गुम भी गया तो ....
"... नहीं मम्मी, मुझे इस मोबाइल और इसके उपयोग से घृणा सी हो गई है।" मैं आ जाऊंगी घर, आप मेरी चिंता ना करें।
कहते हुए स्नेहा मेन गेट को बंद करते हुए बाहर निकल गई।
कॉलेज में भी अक़्सर यही मुद्दा उठ ही जाता, अक्सर सहयोगी कार्यकर्ता कह ही देते। "मैम, आप मोबाइल यूज़ नहीं करती तो हमें आप तक ये बात पूछने के लिए आना पड़ा," और स्नेहा बस मुस्करा के रह जाती।
आज कॉलेज में मनोविज्ञान विषय के लिए, नई लेक्चरर हेमा आर्या आने वाली थीं। सीनियर होने की वजह से प्रिंसिपल ने उसे बुला लिया था और ये हेमा और कोई नहीं उसकी बेस्ट फ्रेंड थी! जिसे देखते ही स्नेहा का चेहरा खिल उठा, और हेमा उससे प्रिंसिपल रूम से बाहर आते ही लिपट गई।
इसी तरह लगभग एक दो महीने ही गुजरे होंगे। इस बीच स्नेहा ने नोटिस किया कि स्टाफ के जो लोग उसे मोबाइल ना रखने पर किसी ना किसी तरह नोटिस में ला देते थे। उनकी नजरों में सहानुभूति दिखती।वो भी सोचती.... चलो ठीक ही हुआ जो अब सबके सवाल करना बंद हो गए।
आज वो बात आखिर उसके सामने आ ही गई । जब एग्जाम पेपर बनाकर कम्प्यूटर ऑपरेटर को देने गई टाइप करने के लिए तो वो बोल पड़ा।" मैम आप निश्चिंत रहें, जैसे ही पेपर प्रिंट होंगे मैं आपके पास लेकर आ जाऊंगा।" आपने मोबाइल का उपयोग करना बंद कर दिया है।
"ये किसने कहा कि मैंने मोबाइल का उपयोग....." अब तो बात ज़बान पर आ ही गई थी , ऑपरेटर को सच बताना ही पड़ा कि "आर्या मैम बता रहीं थीं कि जिनको आप पसन्द करती थीं, उनकी सड़क दुर्घटना में .... जान चली गई! और वो उस समय मोबाइल पर आपसे ही बात कर रहे थे।"
"तभी से ! आप .... " उसके बाकि के शब्द अधूरे ही रह गए ।
हेमा उसकी जिंदगी का इतना बड़ा सच यूँ उजागर कर देगी, उसने सोचा भी नहीं था। स्नेहा बड़ी मुश्किल से आंसुओ को रोक स्टाफ रूम तक पहुँच सकी।