स्त्रीधन
स्त्रीधन
" श्याम, क्या बात है? चार-पाँच दिनों से आप परेशान दिख रहे हो !”
"कुछ भी नहीं , ऑफ़िस में काम बढ़ गया है। ”
" मत टालिए, आज आपको सच बताना ही पड़ेगा।"
"तंग मत करो। जाओ जल्दी से आँफिस के लिए मेरा टिफ़िन तैयार करो। देखो, 9 बजे गए ” श्याम घड़ी पर नज़रें गड़ाते हुए बोला ।
"अरे, आपकी पत्नी हूँ। आपकी समस्या मेरी समस्या है, सच जानकर ही उठूँगी !”
"तो सुनो...चार दिन पहले ही बैंक का एक मैसेज मिला था, कार का लोन चुकाना है। दो दिनों के अंदर दो लाख रूपये जमा करने हैं मुझे ... दिमाग काम नहीं कर रहा है। कहाँ से इतनी भारी रकम ...
"आपसे कितनी बार बोली, दिखावे पर मत जाइए। जीवन में संतुलन जरूरी है, जितना चादर हो, उतना ही पैर पसारिये। पर सुनता कौन है, दिखावे का भूत आपके सर चढ़ बोलने लगा, क्या जरूरत थी महंगे कार और फर्नीचर खरीदने की ? पांच साल की नौकरी हो गई आपकी बैंक में सिर्फ खाता है, जमा के नाम पर कुछ भी नहीं। दो बच्चे हैं हमारे, पहले उनका भविष्य है ! और..आप दिखावे में कर्ज पर कर्ज लिए ...
"ज्यादा चिल्लाओ मत, एक तो मैं परेशान हूँ...ऊपर से तुम्हारा लेक्चर ! मेरी समस्या है, मुझे अकेले ही निपटना है ” श्याम के स्वर में परेशानी साफ़ झलक रही थी।
उनको बेचैन देख मैं भी बेचैन हो रही थी। मैं, झट बेडरूम गई और एक भरा पॉलीथिन उठाकर उनके सामने रख दी। “जाइए, इसे बेचकर अपना ऋण चुकता कीजिए। ”
अरे...तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया ? इतने सारे शादी के गहने ! सब तुम...हा..रे.. हैं !” श्याम... हतप्रभ, पॉलीथिन के अंदर झांकते हुए बोले
"हाँ..है, तो ? यह मेरा स्त्रीधन है। इस पर निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ मेरा है। ”
"ओह! मैंने अपनी कमाई से तुम्हें नाक का एक बूटा भी बनवाकर नहीं दिया। आजतक मैंने सारे पैसे ऐशो आराम पर फेंकता रहा...और तुम..अपने सारे गहने ! पॉलीथिन पकड़ते हुए श्याम धम्म से ज़मीन पर बैठ गया।
"उसके आँखों से आँसुओं की बूंदे मोती की तरह ज़मीन पर बिखरने लगी।
"देखिए, अभी बहस का समय नहीं है, आपातकाल में ही स्त्रीधन की सार्थकता है। उठिए...और जाइए बाजार। "
मन में उमड़ रहे प्रचंड बवंडर को दरकिनार कर, मैं उनको ढाढ़स देते हुए बोली। पर ,मेरी मायूस नज़रें ... पॉलीथिन को दूर जाते हुए उसे अपलक घूरती रही।
स्त्रीधन...अब बिकने के लिए तैयार हो चला।