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रहस्य की रात भाग 9

रहस्य की रात भाग 9

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आशी, अनुज, वासू और सावा नहा कर नई धोतियाँ पहन कर उपस्थित हुए जो गुसलखाने के ही एक आले में इस तरह रखी हुईं थी मानो इन चारों के यहां पहुँचने की पूर्व सूचना हो। इन्होंने कभी धोती पहनी नहीं थी, तो जैसे तैसे लपेट कर आये। ऊपर का बदन उघड़ा हुआ ही था। इन्हें देखकर झरझरा ने प्रसन्न मुख से इनका स्वागत किया और सामने रखे पीढों पर बैठने को कहा। फिर उसने सामने रखे ताँबे के लोटे में से जल लेकर चारों पर छिड़का और बुरी तरह चौंक उठी। मानो एक क्रूर चिंगारी उसकी आँखों में चमक उठी। उसकी भंगिमा देखकर वे चारों भी भयभीत हो गए पर तुरन्त ही झरझरा की आँखों ने रंग बदल लिया और लुभावनी मुस्कान फिर उसके होंठों पर आ गई। उसने चारों से कहा कि शायद दुष्ट अघोर ने तुम लोगों की कलाई पर काले जादू का धागा बाँधा है जो अपवित्र और पूजन में बाधक है। पवित्र पूजा में ऐसी चीजें शरीर पर नहीं होनी चाहिए। तुम लोग इसे तोड़ दो। आशी झरझरा के निकट ही बैठा था उसने अपना दायाँ हाथ उसकी ओर ही बढ़ा दिया तो वह चौंक कर पीछे हो गई और बोली, "भूलकर भी मुझे स्पर्श न करना। मैं तपस्विनी हूँ और तप की अवधि में यही विधान है। तुम चारों खुद ही यह कलावा तोड़ कर फेंको। 

चारों अपना कलावा तोड़ने को उद्धत हुए तो ऊपर से फिर अघोरगिरि का स्वर गूंजा, "मूढ़ बालकों! ऐसा अनर्थ मत करो। यह कलावा टूटते ही तुम पूरी तरह इस मायाविनी के चंगुल में फंस जाओगे। इसके षड्यंत्र को........आह!

आगे के शब्द अघोर गिरि के मुंह में ही रह गए क्योंकि झरझरा ने फिर एक चंपा का फूल उसकी दिशा में उछाल दिया था और उसे कराहते हुए भागना पड़ा। 

कहानी आगे जारी है...

आखिर कौन है सच्चा और कौन झूठा?

जानने के लिए पढ़िए भाग 10

 


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