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Krishna Kaustubh Mishra

Tragedy

5.0  

Krishna Kaustubh Mishra

Tragedy

यह कैसा बलिदान

यह कैसा बलिदान

5 mins
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अपने हाथ मेंं बारहवीं का प्रगति पत्र लिए ‘रामआसरे’ दौड़ता हुआ अपने खेत में अपने पिता जी को ये खुशखबरी देने पहुँचा। माघ महीने की कड़क दुपहरी में पिताजी अपने बैलों में उलझे खेत जोत रहे थे।

‘हिर्रेरेरेरे…’ ‘हिर्र’ कहते कभी दाएं से तो कभी बाएं से बैलों को हांकते हुए वह उनसे पूर्व निर्धारित रास्ते पर चलने का कठोर आग्रह कर रहे थे। पसीने में लथपथ, बीच बीच में अपने मैले गमछे से अपने तर पेशानी को पोंछ लेते थे। ‘रामआसरे के एक हाथ में उसका प्रगतिपत्र था तो दूसरे हाथ में उसके पिताजी के लिए रोटी की पोटली। आते ही उसने पिताजी को गले से लगा लिया। पिताजी मैं बारहवीं में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गया।

पिताजी प्रसन्न हुए और बधाई देने के पश्चात अपने बैलों को पीपल के पेड़ के नीचे बांध कर अपने गमछे को पेड़ के नीचे बिछाया। भूख से व्याकुल होने पर इंसान सब भूल जाता है, पर पिता जी ने कम से कम बधाइयां तो दे ही दी थीं। प्याज को मुक्के से तोड़ते हुए रामआसरे से प्रश्न किया, जाब आगे क्या सोचा है ?

पिताजी मुझे चिकित्सक बनना है, मुझे लोगों की सेवा करनी है। रामआसरे ने उत्तर दिया।

पिताजी- अरे डाक्टरी की पढ़ाई में तो खूब पैसे लगते होंगे और वो तो हमारे पास है नहीं, कैसे पढ़ोगे तुम ?

जो भी कुछ है हमारे पास यही चार बिस्वा खेत और अपने दो बैल।

रामआसरे- पिताजी आप तनिक भी चिंतित न हो, मैं जी जान से मेहनत करके सरकारी संस्थान में भर्ती लूंगा और सरकारी वजीफे ले कर अपनी पढ़ाई कर लूंगा।

अगले ही दिन से रामआसरे जी तोड़ मेहनत कर अपने अध्ययन में लग गया और आखिरकार उसे कानपुर के एक सरकारी संस्थान में चिकित्सकीय शिक्षा की पढ़ाई के लिए एडमिशन मिल गया पर वजीफे के कुछ जरूरी कागजात और सरकारी बाबू जी के दयापात्र न बनने के कारण वजीफे का प्रबंध न हो, एडमिशन और फीस मिला कर 20 हज़ार रुपये देने थे।

सारे हाथ पैर मार लेने के पश्चात भी जब कोई जुगत न बैठी तो उसे ऐसा लगा जैसे उसके पूरे मेहनत पर किसी ने हाथ साफ कर दिया हो। उसका दिल बैठा जा रहा था, हताश, निराश, निस्तेज।

शाम को घर आकर उसने यह बात अपने पिताजी को बताई, पिताजी भी दुखी हुए पर खुद को सम्हालते हुए रामआसरे को ढांढस बढ़ाते हुए कहा- अरे का हो रामआसरे, डाक्टरी नहीं पढ़े हम तो क्या हम परिवार को खिला नहीं पा रहे का ? ई सब पढ़ाई लिखाई सब पैसे वाले लोगन के खेल है। हम ठहरे गरीब, हम भी उहे करत हैं जो उ लोगन डाक्टरी कलक्टरी पढ़न के बाद करत हैं। उ भी लोगन के इलाह करत हैं हम भी खेत के इलाज करत हैं। पथरीली जमीन के सीने को चीरकर हमने उसे जमीन को निरोग किया है। अब तो हमार लोगन के पास 4 बिस्वा जमीन भी है, हम बाप पूत खूब मेहनत करांगे और इस खेत से दूसरा खेत खरीदेंगे, फिर दूसरा, फिर बैल और फिर शुरु हुआ फुसलाने का दौर, पर रामआसरे का ध्यान उसके भविष्य की ओर ही था उसे डॉक्टर बनना था। वो वहां से उठा और सोने चला गया। 

अगले दिन पिताजी सुबह बैलों के साथ खेत की ओर चल पड़े। इधर रामआसरे के मन मस्तिष्क पर आशाओं और निराशाओं में द्वन्द्व छिड़ा हुआ था।

पूरा दिन हताशा से भरा रहा। शाम को माँ ने चूल्हा तैयार किया पर पिताजी का कोई अता पता नही था, सूर्यास्त से पहले ही घर आ जाने वाला इंसान रात के 10 बजे तक नहीं आया था। मन आशंकाओं से भर गया था। रामआसरे ने किसी अनहोनी की आहट समझ कर पिताजी की खोज में गाँव घर एक कर दिया पर पिताजी कहीं नहीं मिले। थक हार कर रामआसरे घर आ गया। अपनी माँ को सारी बताते उसकी आँखों से अश्रु सैलाब प्रस्फुटित हो पड़ा। 

इतने में उसे महसूस हुआ कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। पीछे मुड़ कर देखा तो पीछे पिताजी खड़े थे। शांत, सन्तुष्ट, मुस्कुराते हुए उनका चेहरा अलग ही तेज से चमक रहा था। उन्होंने रामआसरे के हाथ में नोटों की गड्डी रख दी। अब तुम्हारा एडमिशन हो जाएगा न रामू।

रामआसरे का मन खुश तो हुआ पर उसे यह भी अभ्यास था कि यह पैसा पिताजी ने जरूर किसी से उधार लिया होगा। 

रामआसरे (कड़क आवाज में)– कहाँ से आये इतने पैसे कहाँ से आये, किससे लेके मेरा उपकार कर रहे पिताजी।

पिताजी- एक बाप भी कभी बेटे पर उपकार करता है क्या पगले, यह मेरा ही पैसा है मेरे सबसे अनमोल रतन, तुमसे ज्यादा कीमती कुछ नहीं है, तुम्हारे किये पूरे दुनिया की दौलत कुर्बान कर दूं। 20 हज़ार क्या चीज है।

इतना कहते हुए पिता जी सोने चले गए, रामआसरे भी अपने बिस्तर पर लेट कर कल्पनाओं के आकाश में विचरण करने लगा और कब नींद लग गयी।

सुबह नींद खुलते ही बैलों को नांद पर भोजन के लिए लगाने के लिए ज्यों ही वह दालान में गया तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई, बैल ऊनी जगह पर नहीं थे। वह समझ गया कि पिताजी ने उसके भविष्य के लिए अपने जान से प्यारे बैलों को बेच दिया है। दौड़कर पिताजी के कमरे में पहुंचा तो पिताजी करवट लेकर अभी भी सो रहे थे।

पिताजी, पिताजी…

कोई आहट न होने पर उसने पिताजी को उठाने के लिए हल्के से झकझोरा।

पिताजी अकड़ गए थे, रामआसरे ने उन्हें सीधा किया तो उसे महसूस हुआ कि पिताजी की सांसें नही चल रही हैं, उनका हाथ उनके सीने पर जकड़ से गया था जो हृदयघात की संभावनाओं को और प्रकट कर रहा था।


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