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पीहर

पीहर

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श्याम घर आया तो फिर माहौल उखड़ा उखड़ा सा लगा ।किसी से कुछ पूछे बगैर ही खाना खा कर कमरे में आ गया ।सुधा काम निबटा कर कमरे में आयी तो गुस्सा उसके चेहरे से साफ टपक रहा था ।चिढ़ कर बोली तंग आ गयी हूँ इस घर की किट किट से ।पूरे दिन लगे रहो फिर भी किसी को कुछ पसंद नही आता ।श्याम ने प्यार से पूछा "क्या हो गया आज "। नया कुछ नहीं है वही रोज़ का ।तुमसे तो कहना बेकार है तुम ठहरे अपने माँ के लाल,सुधा तुनक कर बोली । " तुम माँ का लाल कहती हो और अम्मा जोरू का गुलाम,इसलिये किसी से कुछ कहना ही छोड़ दिया है ।अपने ही घर में एकदम चुप हो गया हूँ ।" सुधा फिर भी शांत नही हुई गुस्से से बोली " ज़्यादा बातें मत बनाओ, दीपू की छुट्टियाँ लग रही हैं मुझे मायके जाना है ।टिकट करा दो । कम से कम 10 15 दिन के लिये इस घर की किट किट से छुटकारा तो मिलेगा ।माँ भी आँखे बिछाये बैठी है ।वहां जाओगी तो इस घर की चिंता से थोड़े दिनो के लिए मुक्ति मिल जायेगी । " श्याम ने उसकी बात सुनकर हाँ में हाँ मिला दी । सुधा तो चिंता मुक्त हो कर सो गयी और शयाम सोचने लगा, किस्मत वाली है सुधा, मायका है, एक और घर है जहां वो बिना चिंता के रह सकती है पसंद नापसंद का ध्यान रखा जाता है । मेरे पास ऐसी कोई जगह नहीं है ।मुझे तो जीवन की आखरी साँस तक इस घर की चिंता करना है ।



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