गृहस्थी का फन्दा
गृहस्थी का फन्दा
रीना पिछले कुछ दिनों से देख रही थी की उसकी सासू माँ रोज ठीक पांच बजे शाम को पड़ोस वाली मीना के घर हाल ही में रहने आये मीना के ससुर जी के साथ पार्क जाने लगी थीं। फिर शाम को पार्क से ही मंदिर होते हुए रात आठ बजे तक ही घर लौटती थी। दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो चुकी थी। तो आज उसने मीना को बुला इस बारे में साफ़ साफ़ बात कर ली।
"मीना क्यों न हम तुम्हारे ससुर जी और मेरी सासू माँ का विवाह करवा दें। इस बुढ़ापे में दोनों को एक दूसरे का सहारा हो जायेगा "
मीना के ख्याल भी रीना से मिलते जुलते निकले तो दोनों ने तुरंत ही अपने अपने सास और ससुर को बुला कर ये सुझाव दे डाला।
सुन कर वो दोनों ही हँस पड़े।
रीना की सास बोली-
"अरे भाई पागल हैं क्या हम जो अब शादी करेंगे। फिर इनके रिश्तेदारों की शादी में जा कर नए नए लोगों के नाम याद करेंगे। इनकी दवाई का ख्याल रखेंगे। इस उम्र में इनके हिसाब का खाना खाएंगे। अरे इस उम्र में भी आजाद नहीं रहने दोगी क्या हमें। पूरी जिंदगी गुज़री बस रसोई सँभालने के धंदे में सो अब तो हम न फंसने वाले फिर से गृहस्थी के फंदे में !"
मीना के ससुर जी भी हाँ में हाँ मिला कर बोले-
"बच्चों हमारी शादी आपस में करवा कर अपनी जिम्मेदारी से हाथ धोना चाहते हो क्या ? भाई हम तो अपनी सेवा टहल अपनी बहू से ही करवाएंगे। अब इस उम्र में जान बूझ कर अपने ऊपर टोका टाकी करने वाली पत्नी काहे को लाएंगे। हम तो बस जिस को चाहे मित्र बनाएंगे। किसी के साथ सुबह पार्क में टहलेंगे और किसी के साथ शाम को गप शप मार कर आएंगे।"
बेचारी रीना -मीना। वो तो सोच रही थी की कहानियों की तरह उनके सास ससुर खुशी खुशी दूसरी शादी का प्रस्ताव मान जाएंगे और वो लोग ज़माने को एक नयी राह दिखाएंगे।
शायद कहानियां लिखने वालों ने कभी ये नहीं सोचा की अगर इस तरह का विवाह समाज में होता नहीं है तो क्यों नहीं होता !
इंग्लैंड और अमेरिका में ऐसा होना आम है क्योंकि पति और पत्नियों का बदलना वहां तो रोजमर्रा का काम है।
यहाँ जहाँ पति -पत्नी सारी उम्र बस एक के साथ गुजारते हैं। ऐसे पुनर्विवाहों के किस्से सिर्फ और सिर्फ कहानियों में सुहाते हैं।