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MAnNisha Misha

Romance

1.7  

MAnNisha Misha

Romance

टेसू के फूल

टेसू के फूल

6 mins
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नैनीताल कि खुबसुरत वादिओं के बीच अनामिका का सोर्न्दय मानो नैनी झील के समान, उस पर उसकी बड़ी बड़ी खुबसुरत आखें जैसे नैनीताल कि खुबसुरती उसने अपनी आखों में समेट ली हो शोख चंचल और अल्हड़पन जैसे कोई हिरनी उसके काले घने और लम्बे बाल मानों बर्फ़ कि चोटीओं को घनघोर घटा ने घेर लिया हो।

नैनीताल के बाजार में उसके पिता कि लकड़ी के सजावटी समान कि दुकान, पढ़ाई खत्म कर के वो भी अपने पिता का हाथ बटाने दुकान पर चली आती है।

सीजन होने के कारन वो अकेले सम्भाल नहीं पाते थे। ऐसी ही एक शाम सैलानियो कि एक बस आ कर रुकती है। उसमे से लड़के लड़कीओ का झुन्ड उतरता है। जिसको देख अनु अनुमान लगाती है, और चहक कर कहती है बापु मुझे लगता है आज हमारी अच्छी बिक्री हो जाएगी लड़के, लड़कियां ऐसे समान बहुत पसन्द करते है, और फ़टाफ़ट समान को करीने से लगाने लग जाती है। तभी लड़को की नजर अनु कि दुकान पर पड़ती है सभी उस तरफ़ पहुँच कर समान देखने लगते है। पर समान से ज्यादा उनकी नज़र अनु कि खुबसुरती पर होती है। तभी उनमे से एक बोलता है नैनिताल में खुबसुरती तो बला कि है। अनु नज़रें झुकाए समान दिखाती है। वो लोग कभी कुछ कभी कुछ निकलवाते, अनु कुछ देर तो समान निकाल कर दिखाती रही पर उसे लगा की वो लोग उसको जान बुझ कर परेशान कर रहे है और अनु थोड़ा झलला कर बोलती है आप लोगो को कुछ लेना नहीं बस परेशान कर रहे हो। तभी उनमे से एक लड़का जो काफ़ी देर से चुप चाप खड़ा था अनु को परेशान देख आगे आता है। और लकड़ी के बने गुड़िया, और गुड्डे कि किमत पुछता है। अनु उस को दाम बताती है और वो बिना कोई मोल भाव किए खरीद लेता है। अनु से सब कि तरफ़ से माफ़ी मागंता है। बहुत ही सुन्दर और सरल स्वभाव से उसकी सुन्दरता कि तारिफ़ करता है। अनु भी ना जाने क्यो शिष्ट्ता वश उसका शुक्रिया अदा करती है। वो लोग वहां से चले जाते है। उनके जाने के बाद अनु समान को तरतीब से लगाने में लग जाती है। रात 8 बजे अनु और उसके पिता दुकान बन्द कर घर आ जाते है। आज़ अनु अपनी बिक्री पर काफ़ी खुश होती है। वो आज बहुत थक गई थी। खाना खाकर तुरन्त बिस्तर पर लेट जाती है, तभी उसकी आँखों के आगे उस अजनबी का चेहरा उसकी बातें उसकी मुस्करहट आ जाती है अनु एक खिचाव सा महसुस करने लगती है। सोचते -सोचते अनु को नीदं आ जाती है।

दुसरे दिन सुबह दुकान जाने से पहले अनु नहा धो कर मन्दिर पहुंती है। तभीउसको दुर जाना पहचाना सा चेहरा नजर आता है । अनु नज़र अन्दाज करके आगे बढ़ती है पर अनु को महसुस होता है कोइ उसके पीछे आ रहा है। वो पीछे मुड़ कर देखती है यह तो वही लड़का था वो अनु को नमस्ते करता है और कुछ बात करने को कहता है। पहले तो अनु मना कर देती है पर उसके जोर देने पर हां कर देती है ।

दोनो मन्दिर के पास ही मिलते है। औपचारिता के बाद दोनो अपना परिचय देते है।

मैं तुषार घोष लखनऊ के विश्वविधालय में गणित का प्रोफ़ेसर हूँ। कॉलेज कि तरफ़ से विधार्थीओ को नैनीताल घुमाने लाया हूं वो क्या है, कि हम मैदान वासिओ को पहाड़ अपनी तरफ़ आकर्षित करते है। मेरे घर में मेरी दो छोटी बहने मां-पिता जी है। पिता जी लखनऊ में बैंक में कार्यरत हैं। यह तो रहा मेरा परिचय अब कुछ अपने बारे मे बताओ। अनु एक टक तुषार को देखती है। जो इतनी सादगी से सब कुछ कह जाता है। अनु मेरे पास परिचय के रुप मे ज्यादा तो कुछ नहीं मेरा नाम अनामिका मुद्द्गल है मेरे घर में दो छोटी बेहने ओर पिता जी हैं। वैसे तो हम हिमाचल के रहने वाले है पर माँ नैनीताल कि थी तो पिता जी यहाँ आ कर बस गए । 

हम तीनो का जन्म यही हुआ मेरी शिक्षा यही से हुई मैने स्नातकोत्तर सायक्लोजी में किया है। पर घर के हालात ठीक ना होने के कारण आगे पढ़ाई नहीं कर पाई और पिता जी के काम में हाथ बटाने लगी। तुषार अनु को बहुत ध्यान से सुन रहा होता है। जहां उसकी सुन्दरता उसको प्रभावित करती है वही उसका सरल मन उसे अपनी तरफ़ खिंचता है। तुषार अनु से कहता है कि मैं बातों को घुमा फिरा कर नहीं करता इस लिए आप से साफ़ कहूँगा कि मै आप को अपना जीवन साथी बना पुरी जिन्दगी आप के साथ जीना चाहता हुं।

पर यह मेरा फ़ैसला है आप किसी तरह बाध्य नहीं। पर वादा करता हूँ तुम्हे खुश रखूँगा। मैं अभी यहाँ और पांच दिन हूँ आप चाहे जैसे परख लो और उसके बाद जो फ़ैसला आप का होगा उसका दिल से स्वागत करूँगा। यह मेरे घर का पता है और नम्बर है, आप जिस तरह की तसल्ली करना चाहे कर सकती है। फिर वो वहाँ से चला जाता है अनु स्तब्ध सी उसे जाते हुए देखती रह जाती है। उसकी समझ मे नही आता इस असिम प्यार कि अभिव्यक्ति पर खुश होए या उसके परिवार को इस वक्त उसकी जरुरत है तो तुषार को मना कर दे। इस तरह दो दिन बितते हैं , अनु कुछ गुम सुम सी रहती है तुषार उसे कभी कभी दिख तो जाता है पर उसके रुबरु नहीं होता उसकी सन्जिदगी देख अनु उसके प्यार की गहराई को समझती है मन ही मन वो निर्णय लेती है की तुषार को अपनी सारी परिस्थिती से अवगत करा उसकी जीन्दगी से दुर हो जाएगी। जाने से एक दिन पेहले तुषार अनु से मिलने आता है। अनु उसे अपनी परिस्थिती से अवगत कराती है। और भरे हुए नयनो से कहती है आप जिसकी भी जिन्दगी बनेगे वो बहुत खुशनसिब लड़की होगी पर शायद यह खुशी मेरे नसीब में नह।ीं

तुषार अनु का हाथ पकड़ कर बोलता है तुम शायद मेरे प्यार को समझ नही पाई मै तुम्हे अकेले नही तुम्हारी हर खुशी और दुख के साथ अपनाना चाहता हूँ। तुम एक बार सच्चे मन से कह दो की तुम मेरे साथ खुश रहोगी मैं पुरी जिन्दगी इंतज़ार करूँगा। बस किसी और की मत हो जानाऔर वहाँ से चला जाता है।

अगले दिन तुषार अनु के घर पहुंचता है और अनु से वादा ले लेता है की जब उसको लगे कि अब उसे शादी कर लेनी चाहिए वो तुषार को बता देगी वो उसका इन्तजार करेगा और अलविदा ले लेता है , एक से इंतज़ार के साथ जो ना जाने कब खत्म होगा, होगा भी कि नहीं।

आज़ फिर वादियों में टेसु के फ़ुल अपनी खुबसुरती बिखेर रहे हैं और अनु को तुषार के प्यार कि गहराई का एहसास दिला रहे हैं। आज़ एक लाली अनु के चेहरे पर चार चाँद लगा रही है। आज उसका इंतज़ार खत्म होने वाला है आज तुषार उसे ले जाने आने वाला है !


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