आत्मविश्वास
आत्मविश्वास
बच्चे को ज़नम देने के बाद जब मीरा होश में आई तो, नर्स ने जैसे ही मीरा को उसके नवजात बेटे को उसके गोद में देने की कोशिश की मीरा ने बच्चे को देखने से साफ़ माना कर दिया और कहा मुझे नहींं चाहिए ये बच्चा। दे दो इसे जिसे चाहिए या जो करना है इसके साथ वो करो, मगर मुझे कोई मतलब नहीं है इससे। इसकी वजह से मेरी ज़िंदगी ख़राब हो गई। हटाओ इसे मेरी नज़र के सामने से।
ग़ुस्से में चीखती मीरा फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी और बार बार बच्चे को नज़र के सामने से हटाने के लिए कहती रही।रोती रोती वह बार बार यही कही जा रही थी कि मुझे इसे जन्म देना ही नहीं चाहिए था।पहले क्या कम मुसीबत थी ,मेरी ज़िंदगी में जो एक और आ गई।
नर्स भी फिर झुँझलाई सी मीरा के ऊपर चिल्लाने लगी, ये क्या पागलपन है। तुम्हारा बच्चा है तो तुम्हें लेना ही पड़ेगा। हमें और भी काम है, बहुत सारे मरीज लाइन में है। एक तो तुम्हारे घर से कोई नहीं आसपास जिसे मैं इस बच्चे की खबर देती और जब तुम होश में आईं हो तो बच्चे को लेने से इनकार कर रही। आख़िर बात क्या है ?
मीरा ने नर्स की बातों को अनसुना करते हुए ,अपने पति को फ़ोन लगाया ।२-३ बार फ़ोन करने के बाद उसके पति ने आख़िरकार फ़ोन उठा लिया ।
रोकी बिलखती वह अपने पति को अस्पताल आने के लिए मिन्नतें करने लगी।उसने कहा ,एक बार हम दोनों को घर ले चलो , फिर हम आराम से बैठकर कोई उपाय निकाल लेंगे ।मैं तुम्हें वायदा करती हूँ कि वही होगा जो तुम कहोगे । मगर तुम एक बार यहाँ आ जाओ।मुझे ज़रूरत है तुम्हारी यहाँ ।मीरा को कहीं ना कहीं ये लग रहा था कि अगर उसका पति एक बार बच्चे को देख लेगा तो शायद वह पिघल जाए और बच्चे को घर ले जाने के लिए तैयार हो जाए।
मगर मीरा के बार बार कहने का उसके पति पर कोई असर नहीं हुआ। वह एक ही रट लगाता जा रहा था कि तुम्हें घर आना है आ जाओ, मगर बच्चे को वहीं छोड़ कर आना और उसने फ़ोन रख दिया ।
हताश , परेशान मीरा को बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे! कहीं ना कहीं वह बच्चे को लेकर भावुक हो रही थी।मगर दूसरी तरफ़ वह अपने पति को भी नहीं छोड़ना चाहती थी।
तभी,मरीज के रूम से इतने शोर को सुनकर वहाँ की senior डॉक्टर तुरंत वहाँ आ गई और शोर का कारण पूछा। कारण जान वो भी थोड़ी परेशान हो गयीं,मगर बड़ी समझदारी से मीरा को शांत कर उसके इस वार्ताव का कारण पूछा।
मीरा के लगातार चीखने और कारण ना बताने पर डॉक्टर से एक counsellor Dr.नीता को वहाँ बुला लिया। फिर डॉक्टर नीता को मीरा के साथ अकेले छोड़ वहाँ से चली गईं। डॉक्टर नीता के बार बार पूछने पर .....
मीरा ने खुद को सम्भालते हुए कहा, मेरे पति को बच्चा नहीं चाहिए। मैंने अपने परिवार वाले के ख़िलाफ़ जाकर शादी की है। मेरे घर वाले हमेशा से यही चाहते थे, कि मैं पहले अपनी पढ़ाईं पूरी करूँ। मगर मैंने उनकी एक नहीं सुनी। पहले तो सब ठीक था मगर शादी के बाद मानो सब बदल गया। पैसे की दिक़्क़त की वजह से मेरे पति और मुझमे हर बात पर झगड़े होने लगे। पढ़ाईं अच्छे से नहीं होने की वजह कही ढंग की नौक़री नहीं लग पा रही थी। ज़ैसे तैसे एक छोटी सी नौकरी पकड़ीं थी और कुछ सुधार की उमीद थी तो, पिछले साल मैं गर्भवती हुई और सब बदल गया। मैं बीमार रहने लगी, काम पर नहींं जा पाती थी। उसपर से अस्पताल के खर्चे। इन सब की वजह से हमारे बीच फिर से झकडे होनें लगे। अपने बीमार रहने की की वजह से मैं इसे abort भी नहींं कर सकती थी। उसपर मेरे पति ने कहा, कि अब एक ही उपाय है अगर तुम मेरे साथ रहना चाहती हो, इस बच्चे को जन्म तो दे दो, मगर घर लेकर मत लाना। वरना मेरा तुम्हारा कोई रिश्ता नहींं। अब मेरी समझ नहींं आ रहा कि मैं क्या करूँ।
फिर डाक्टर नीता ने बोला कि अगर तुमने मन बना ही लिया है बच्चे को अनाथालय में देने का तो फिर दिक़्क़त ही क्या है ?
मगर अब मैं इस बच्चे को छोड़ना नहींं चाहती .. इसी कश्मकश में हूँ कि करूँ तो क्या करूँ! मन में तो ये आ रहा की इसे मार दूँ और खुद भी मर जाऊँ। मीरा ने बड़े दुखी स्वर में जवाब दिया। कहा जाऊँ क्या करूँ, कुछ समझ नहीं आ रहा।
फिर ,मीरा की बात सुन डाक्टर नीता ने पूछा-तुम्हें क्यों मरना आसान लग रहा और जीना नहीं? और क्यों तुम्हें जीने के लिए एक सहारे की ज़रूरत है?
उसपर मीरा ने कहा- क्या करूँ जीकर ।किसी को तो नहीं पड़ी मेरी।
फिर डाक्टर नीता ने थोड़ा कड़े शब्दों में पूछा- तुम्हें पड़ी है तुम्हारी? तुमहे इस बच्चे की पड़ी है जो तुम्हारे शरीर का हिस्सा है?दूसरों से उम्मीद रखना आसान है ,मगर खुद उस उम्मीद पर खरे उतरना उतना ही मुश्किल है।मैं मानती हूँ कि जब जीवन में बुरा समय आता है इंसान हताश हो जाता है और उसे लगता है कि सब ख़त्म हो रहा है ।मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन में उथल-पुथल या यूँ कहें तोड़ फोड़ उस समय होती है जब कुछ नया होने वाला होता है ,तुम्हारे जीवन में ।इसीलिए इस बदलाव और नएपन से घबराना नहीं चाहिए बल्कि बड़े सब्र के साथ यह इंतज़ार करना चाहिए कि ज़िंदगी उस मोड़ पर क्या दिखाना चाहती है।भविष्य के गर्भ में छुपे किस नए राह की तरफ़ हमारा ध्यान लाना चाहती है।किस अपने के चेहरे से मुखौटा उतार हमें उसका असली चेहरा दिखाना चाहती है।जैसा उसने तुम्हारे पति के लिए किया है। नक़ाब उतारा है उसके चेहरे से जो सही मायने में तुम्हारा पति है ही नहीं । उसे तुम्हारी पड़ी ही नहीं ।वह सिर्फ़ अपना मन बहला रहा था तुम्हारे साथ। और तुम उसके लिए अपनी क़ीमती ज़िंदगी और इस नन्ही सी जान की बलि देना चाहती हो।
इसपर डॉक्टर नीता ने कहा, मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाती हूँ। मेरे माँ बाप काफ़ी गरीब थे। बड़ी मुश्किल से हमारा गुज़ारा होता था। खाना पीना मुश्किल था तो वो क्या भला मुझे कभी पढ़ने लिखने बोलते। मैं जब १६ साल की हुई उन्होंने मेरी शादी एक अधेड़ उमर के आदमी से कर दी। उसे शराब की भी लत थी। शादी के बाद सोचा की ग़रीबी से छुटकारा मिलेगा, मगर अभी तो जीवन और कष्टदायक हो गई थी। जैसे तैसे समय बीत रहा था। और फिर एक दिन मैं एक बेटी की माँ भी बन गयी थी। इसी बीच अधिक शराब पीने की वजह से मेरे पति की मौत हो गई। मैं सिर्फ़ २० साल की थी। मेरे गोद में २ साल की बेटी थी और मुझे कुछ काम करना भी नहीं आता था। माँ बाप के पास जा नहीं सकती थी क्योंकि मैं अपनी और अपनी बच्ची का बोझ उन पर नहीं डालना चाहती थी। फिर क्या, मैंने भी मन बना लिया कि मैं खुद को और अपनी बेटी को ख़त्म कर दूँगी।
उसी शाम को मेरे बग़ल में रहने वाली शिक्षिका जो हमारे गाँव में बच्चों को पढ़ाती थी मेरे घर मेरा हाल पूछने आई। मैंने रोते रोते अपनी मनसा उन्हें बताई। वह कुछ देर चुप रही। फिर बड़े शांत भाव से मुझसे कहा, तुम्हारी मर्ज़ी है जब चाहे मरो। ये तो तुम्हारे हाथ में है। मगर ये भी है की एक बार मरने के बाद, जीवन नहीं मिलेगा दुबारा तुम्हें। इसीलिए मेरा सुझाओ ये है कि, क्यों ना मरने के पहले एक बार तुम जी कर देख लो। मगर उसी आत्मविश्वास के साथ जिस आत्मविश्वास से तुमने मरने का मन बनाया है। वरना मरना तो तुम्हें है ही।
फिर मैंने उनकी मदद से उसी स्कूल में साफ़ सफ़ाई की नौक़री कर ली। वहाँ पढ़ती भी और काम भी करती। धीरे धीरे यहाँ तक का लम्बा सफ़र तए किया। आसान नहीं था कुछ भी। मगर जब मैंने मन में ये सोच लिया कि एक मौक़ा ज़रूर दूँगी ज़िंदगी को और खुद को, तो रास्ते अपने आप निकलते गए। और जब ये सोचा कि मैं हर हाल में करके दिखाऊँगी तब तो मंज़िल बिल्कुल पास नज़र आने लगी थी। आज मेरी बेटी २० साल की है और उस दिन से आज तक मैंने कभी ज़िंदगी से हार नहीं मानी है।
रही तुम्हारी बात, तो तुम चाहती तो आराम से अपने माँ पापा के पास रहकर अपनी ज़िंदगी आसानी से बना सकती थी। मगर अब जब तुमने खुद जीवन का कठिन रास्ता चुना है तो फिर उसपर चलने से घबरा क्यों रही। मंज़िल तो तुम्हें मिलेगी और हर हाल में मिलेगी, अगर तुमने किसी काम को करने का मन बना लिया। हाँ, रास्ते कभी सीधे तो कभी घूमाओदार हो सकते है।
वैसे मरना तो तुम्हारे हाथ में है। एक बार मरने के पहले पूरी ताक़त से जी कर देख लो।
मीरा ने अपने आँसू पोंछें, बच्चे को ग़ोद में उठाया और खुद से और Doctor नीता से वादा किया कि ज़िंदगी का कोई भी प्रश्न हो वह उसका हल ज़रूर निकाल कर रहेगी, मगर खुद को और अपने बच्चे को फेल नहीं होने देगी।और अंत में अस्पताल से जाने के पहले मीरा ने अपने पति को फ़ोन पर यह सूचित किया , कि उसने उसमें और बच्चे में बच्चे को चुना है। उसे कोई ज़रूरत नहीं उस इंसान की जो इंसानियत नहीं रखता हो,क्योंकि पैसे तो बाद में भी कमाए जा सकते हैं मगर इंसानियत सबके वश की बात नहीं। आत्मविश्वास से भरी ,बच्चे को गोद में लिए मीरा निकल पड़ी थी एक ऐसे सफ़र पर जहां उसकी ज़िंदगी पर सिर्फ़ उसका हक़ था ।