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Rashi Singh

Inspirational

1.4  

Rashi Singh

Inspirational

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

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"अरे बहु आज तुमने मेरी साड़ी नहीं धोई ?"निर्मला ने मूली के भरवा पराँठे खाते हुए कहा। बहु रसोईघर में पराँठा बनाती भी जा रही थी और परोस भी रही थी। सभी डाइनिंग टेबल पर बैठकर गर्म गर्म पराँठों का आनंद ले रहे थे।

"हाँ माँजी वो देर हो गयी थी इसलिए, नहीं धो पाई नाश्ते के बाद ....!"

"आजकल की लड़कियाँ भी न ...अरे हम तुम्हारी उम्र के थे तब हवा की तरह उड़ते फिरते थे। मजाल तो थी किसी को शिकायत का मौका भी देते ....!"

"ट्रीन...ट्रीन..फोन घनघना उठा ।

"हेल्लो ...हाँ रेखा बोलो ...नमस्ते जी। नमस्ते ...क्या बाबूजी की तबीयत ठीक नहीं है ?अरे ....यहाँ...यहाँ आने को कह रहे हैं ...लेकिन ..हेल्लो ..हेल्लो ...!"उधर से फोन कट जाता है। निर्मला के चेहरे पर चिंता के भाव आ गये।

"सुनो जी देवरानी रेखा का फोन था।"

"क्या हुआ ?"ससुर जी ने चाय का प्याला मेज पर रखते हुए कहा।

"पिताजी यहाँ आने को कह रहे हैं। यहाँ उनकी कैसे होगी ?"निर्मला ने परेशान होते हुए कहा।

"अरे तुम बहु हो उनकी सेवा करना ...!"

"देखो जी मुझसे नहीं होगी किसी की सेवा फेवा। आप कोई रास्ता सोचिये ताकि वह यहाँ न आयें !"निर्मला ने दो टूक जवाब दे दिया ।

"अरे अभी तो तुम बहु को ...!"

"चुप रहो जी ...मुझे कुछ नहीं पता बस !"सास ने ससुर जी के बहु के पक्ष में खुलते मुँह पर आँखें तरेर कर ताला लगा दिया बहु रसोई में खड़ी मुस्करा रही थी। परउपदेश कुशल बहुतेरे बाली कहावत चरितार्थ जो हो रही थी।


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