अभी मुझे जीना है
अभी मुझे जीना है
क्यों ऽ ऽ ऽ ? क्यों नहीं खाऊँगी ? तुमलोग मेरा खाना पूरी तरह से क्यों नहीं बंद कर देते ?
छन ऽ ऽ ऽ थाली फेंकने की आवाज- --------
माँ ऽ ऽ ऽ तुने खाना क्यों फेंक दी ? ?
तुम्हें हाई प्रेशर और शुगर है न ! ! तुम मीठा कैसे खाओगी ?
क्यों नहीं खाऊँगी ? नमक, मीठा सब खाऊँगी, खा-खा के मरूंगी ! मेरी मृत्यु से तुम लोग खुशी से जी सकोगे।
माँ कैसी बातें कर रही हो? रीना ने माँ का हाथ पकड़ते हुए कहा -------।
छोड़ो जाओ एक नकारा से शादी कर मेरी छाती में बैठी मूँग दल रही हो !
माँ ऽ ऽ ऽ रीना जोर से चिल्लाकर रोने लगी थी।
ऐसा प्रायः होता था।मेरे बगल वाले फ्लैट में मिसेज चौधरी अपनी बेटी और दामाद के साथ रहती थी।
उनकी बेटी रीना ने पुनीत के साथ अपने परिवार के मर्जी के खिलाफ शादी की थी।चौधरी जी के मृत्यु के पश्चात धीरे -धीरे रीना और पुनीत उनके घर दाखिल हो गये थे।
श्रीमती चौधरी ने मना भी नहीं किया था।अकेली थी, और बेटी के मोह में बंधी हुई भी।
पुनीत की जीविका क्या थी ? इस बारे में मुझे सही से नही मालूम ! पूछने पर रीना का उत्तर कुछ गोल- मोल सा होता था। रीना से अक्सर मेरी बातें होती थी , सीढ़ी चढ़ने- उतरने के दौरान। मुझे उससे बातें करना अच्छा लगता था। वह बहुत ही खूबसूरत और दिलकश युवती थी।उसके स्वभाव में बनावटीपन जरा भी नहीं था। अपनी माँ से उसे काफी लगाव था। माँ के लिए जरा-जरा सी बात पर पुनीत से लड़ बैठती !
किराए का मकान छोड़ कर अपने पति के साथ माँ के पास आकर रहती थी, उनकी सेवा के लिए।
उस दिन दोपहर के बाद मिसेज चौधरी मेरे पास आयी थी। मैंने उन्हें बैठा कर बिना चीनी की चाय पिलाई।
उन्होंने पूछा चाय में चीनी नहीं डाला ?
मैंने कहा , मुझे शुगर है।
ओह ! ठीक किया , मुझे भी -----!
फिर वह अचानक से बोल पड़ीं- ----- इस पुनीत ने मेरी जिंदगी नरक बना दी है ! तुम्हें पता है, रोज मुझसे लड़ता है !
मैंने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए पूछा , क्यों क्या हुआ?
क्या बताऊँ ? यह पुनीत मुझे शुरू से ही नापसंद है। बेकारी रीना ठहरी सीधी- सादी, भोली- भाली गऊ सी बच्ची, उसे इस नामुराद ने न जाने कैसे अपने मोह जाल में फंसा लिया ! इस मरदूत की नजर मेरी जायदाद पर है !
मैं क्या करूँ? अकेली रहती हूँ, सोचा बेटी-दामाद रहना चाहते हैं, तो रहें।मगर अब पानी सर से ऊपर उठने लगा है। अब वह अपनी मर्यादा भी भूलने लगा है।
पता है---------- , वह कुछ और कहती, तभी रीना आ गई थी ,और वह चुप हो गई।
माँ तुम यहाँ बैठी हो?
हाँ ----- तुम्हारी माँ अकेले बोर हो रही थी , इसलिए यहाँ चली आई थी।
रीना ने उलझन भरी नजरों से मुझे देखा और अपनी माँ के साथ चली गई।
शाम के वक्त दरवाजा खटखटा कर रीना फिर मेरे पास आयी और कहा आंटी , "रात में मेरे देवर की सगाई है, आते- आते सुबह हो जाएगी , माँ का थोड़ा ख्याल रखना।" हाँ- हाँ क्यों नहीं? तुम निश्चित होकर जाओ, मैंने मुस्कराते हुए कहा।
उसके जाने के बाद मैंने सोचा, कितनी चिन्ता है , इसे अपनी माँ का ! एक रात के लिए भी अकेले छोड़ना नहीं चाहती ! मिसेज चौधरी से मुझे कुछ ईर्ष्या सी हुई !
रात बारह बजे "कमली"का फोन आया।माॅम तुम अभी तक जाग रही हो?
हाँ ऽ ऽ तुझे तो पता ही है कि मुझे रात में बहुत देर से नींद आती है।
माॅम तुमसे एक बात कहनी थी।
हाँ- हाँ कहो ना ऽ ऽ ,क्या बात है ?
लाॅस बेगास में मुझे एक अच्छा जाॅब आफर मिला है ,और मैं वहाँ जाना चाहती हूँ- ---
पागल हो गई हो? मैंने तुम्हें कुछ दूर भेज दिया ! तुम तो वतन छोड़ जाने की सोचने लगी !
इस जाॅब में क्या बुराई है ? ? मैं आग-बबुला हो गई !
कमली ने फोन रख दिया था।
मैं बिस्तर पर लेट गई, लग रहा था, प्रेशर और हाई होता जा रहा है। नींद तो मुझसे कोसो दूर भाग चुकी थी।
बाहर कुछआवाजें आ रही थी।मैं बिस्तर से उठाकर मोबाइल में देखा, भोर के चार बजे रहे थे। ऊफ ! मुझे तो सारी रात नींद ही न आई ! तभी खटर-पटर की आवाज और तेज हो गई। मैं बिस्तर से उतरकर दरवाजा खोल कर बाॅलकनी में गई। रास्ते में दो लोग साईकल पर कुछ चढ़ाते हुए नजर आये। मुझे स्पष्ट कुछ नजर नहीं आ रहा था। चश्मा मेरा अंदर ही रह गया था। मैं अपने हाथ में पड़े मोबाइल से कुछ तस्वीरें ले ली।दोनों धीरे- धीरे नजरों से उझल हो गये।
अंदर आकर मोबाइल रखकर मैंने पानी पिया और फिर सोने की कोशिश करने लगी।
सुबह करीब आठ बजे मेरी नींद खुली। बगल के फ्लैट में
कोहराम मचा हुआ था। रीना दहाड़े मारकर रो रही थी , पुनीत उसे संभालने की असफल कोशिश कर रहा था।
मिसेज चौधरी की लाश नाले में पड़ी मिली थी। मैं सुनकर आसमान से गिरी ! ये कैसे हो गया ?
रीना रोते-रोते बार- बार बेहोश हो जा रही थी। पुनीत ने बताया सुबह काम वाली ने फोन कर उन्हें खबर दी थी।
गार्ड ने बताया रात को उसने मिसेज चौधरी को बाहर टहलने के लिए निकलते हुए देखा था।
दरअसल वह रोज खाना खाकर कैंपस में टहलने निकलती थी।पुलिस भी पहुंच गई थी।
मन बिलकुल खट्टा हो गया था। अभी पिछले दिन शाम को ही तो मिसेज चौधरी से मिली थी।कौन जानता था कि उनके साथ मेरी वह अंतिम चाय थी ! पुलिस ने गहरी पूछताछ की। लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था।
घर आकर अकेले बैठकर मैं खुब रोई। रह रह कर मिसेज चौधरी याद आती। सोचती रही , "अभी तो उन्हें और जीना था।"
पुलिस ने गहरी तफ्तीश कर पाया कि मिसेज चौधरी टहलते हुए कुछ दूर निकल गई होंगी , हाई प्रेशर के कारण उनका सर चकराया होगा और वह नाले में गिर पड़ीं होंगी ! नाले में पड़े पत्थर से श्याद उनका सर टकराया होगा और वह बेहोश हो गई होगी।ज्यादा खुन बहने सी उनकी मृत्यु हो गयी थी।
रीना बिलकुल टूट चुकी थी।बार- बार एक ही बात कहती," मैं बेकार ही सगाई पर गई थी, न मैं जाती और न ही ये एक्सीडेन्ट होता "। मैं उसे समझाने की कोशिश करती ,"होनी को कौन टाल सकता है ?"मैं भी तो तुम्हारी माँ जैसी हूँ ! रीना मुझसे लिपटकर रो पड़ती ! मुझे लगता जैसे 'कमली' मुझसे लिपट गई है ! तीन- चार दिनों के बाद वह कुछ सामान्य हो पायी थी।
रात को कमली का फोन आया तो मैंने उसे सबकुछ बताया।उसने सुनकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ,और अपनी कैरियर की बातें करने लगी !
कमली ! हमारे बगल के फ्लैट में ऐसी घटना हुई है, मैं बहुत अपसेट हूँ !
उसने कहा ," माॅम बड़े- बड़े शहरों में ऐसी छोटी -छोटी घटनाएँ होती रहती है।"
माॅम मेरे फार्म भरने का आखिरी दिन नजदीक आ गई है ! जाऊँ की नहीं??
बार- बार एक ही बात ! मैंने झल्लाकर कहा ! मेरी तुमसे इस बारे में पहले भी तो बातें हो चुकी है !
कमली ने फोन रख दिया था। बुझे मन से मैं फोन लिए बैठी थी।
अचानक मेरी नजर उस रात को खींचे गये तस्वीरों पर पड़ीं ,जिसे मुझे बाद में देखने का मौका ही नहीं मिला था ! चश्मा लगा कर और तस्वीरों को zoom कर देखने के बाद मैं बिलकुल ठगी रह गई ! तस्वीरों में रीना और पुनीत नजर आ रहे थे, जो किसी ब्रीफकेस को साईकल पर लादने की कोशिश कर रहे थे ! ! मुझे कुछ समझ में नहीं आया ! सारी रात मैंने आखों ही आखों में काट दी !सुबह सोच- विचार कर मैं पुलिस- स्टेशन पहुंच गई। इंस्पेक्टर को वारदात वाली रात खींचे गये तस्वीरों को दिखाया। पुलिस ने मोबाइल लेते हुए मुझसे सारी बातें जानने के बाद कहा कि कल शाम को एक ऐसा ही ब्रीफकेस जंगल से बरामद हुई है। थाने में रीना और पुनीत को पकड़कर लाया गया और उनसे पूछताछ की गयी।वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं थे। मगर जब उन्हें फोटो दिखाया गया और कड़ाई की गई तो रीना दहाड़े मारकर रोने लगी।
रीना ने अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि धीरे- धीरे माँ की नफरत पुनीत के लिए बढ़ते जा रही थी। माँ उसे खुब टोका करती।पैसे देना बिलकुल बंद कर दिया था।
आखिर सारे रूपये- पैसे हमारे ही तो थे !मगर माँ एक फूटी कौड़ी देने में आनाकानी करती। पुनीत कुछ व्यावसाय के लिए पैसे माँगते तो माँ उसे दुत्कार देती ! मैं अपने लिए कुछ माँगती तो वह भी देने से इंकार कर देती।मेरी इच्छा की उन्हें कोई परवाह ही नहीं थी।अंत में हमने माँ को हमारे रास्ते से दूर करने का प्लान बनाया।
एक दिन पुनीत ने मुझे चाय में जहर मिला कर पिलाने के लिए दिया, मगर मैं उसे पिला न सकी और चाय को बेसिन में उड़ेल दिया।
उस रात हम सगाई में जाने वाले थे कि माँ के साथ पुनीत की फिर से कहा- सुनी शुरू हो गई ! पुनीत तकिया लेकर माँ का गला दबाने लगा, मगर माँ को वह अकेले संभाल नहीं पा रहा था। माँ छटपटाकर छूट जाती ,तभी चिल्लाकर पुनीत ने मुझे बुलाया और दोनों पैर जोर से पकड़ने को कहा ! पहले तो मैं हिचकिचाई मगर कोई उपाय न देख मैंने उनका पैर कस के पकड़ लिया।
जैसे ही माँ ने मुझे पैरों को पकड़े हुए देखा तो उसने संघर्ष करना छोड़ दिया था , और ---------।
इतना कहकर रीना रोने लगी थी। पानी पीकर उसने आगे बताया- ---,माँ को मारकर लाश को ठिकाने लगाने के लिए हमने एक बड़ा ब्रीफकेस खाली किया और किसी तरह उसमें ठूसा और गहरी रात का इंतजार करने लगे।भोर होने से पहले हम नीचे गये और गार्ड को गहरी नींद सोते हुए देखकर उसके साईकल में ब्रीफकेस को पीछे लाद कर जंगल में ले जाकर फेंक देने की सोचने लगे।मगर माँ का शरीर भारी होने के कारण वह ब्रीफकेस से बार- बार निकल जाता था और भोर भी होने ही वाला था। और कोई उपाय नहीं देख कर सर पर पत्थर से वार कर उसे नाला में फेंक दिया। पुनीत चुपचाप साईकल वहीं रख कर आया और हमलोगों ने भागते समय ब्रीफकेस को जंगल में फेंक दिया था।
मगर इन मेमसाहब द्वारा लिए गए फोटो ने तुम लोगों के किये पर पानी फेर दिया ! ! कहते हुए इंस्पेक्टर ने दोनों के हाथों में हथकड़ी डाल दी। मैडम ! "आपने हमारी मदद की , इसके लिए धन्यवाद। कोर्ट में फिर आपकी जरूरत होगी।
मैं अपने शून्य पड़े हुए दिमाग को किसी तरह ठेलकर वापस अपने घर आई।चार गिलास पानी पीकर बिस्तर पर गिर पड़ी। हाथ- पाँव जोरों से काँपने लगे थे।
किसी की मृत्यु से क्या इच्छा, अभिलाषा, तृष्णा की पूर्ति हो सकती है ?? उत्तर देने के लिए कोई नहीं था।
सारा दिन बिस्तर पर पड़ी रही , रात के बारह बजे कमली का फोन आया !
मुझे उसे कुछ बताने की इच्छा ही नही हुई !
कमली ने भी सीधे सवाल पूछा !" माॅम फार्म भरने का कल आखिरी दिन है ! क्या करूँ?
कमली तु फार्म भर दे,और अगर जाॅब अच्छी है तो चली जा !
माॅम ये क्या गजब कह रही हो ? मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा !
सुन कमली ! जब तुने ठान ही लिया है , तो मैं अपनी इच्छा तुझ पर नहीं थोपना चाहती !जो तुझे सही लगे वही कर !
माॅम ! "इयू आर ग्रेट !"
ओ.के। टेक केयर " कमली"।
"इस बार फोन मैंने रख दिया था।"
सुबह आठ बजे नींद खुली।भरपूर सोयी थी। सुबह मन हल्का था। फ्रिज खोल कर देखा सब्जी नही थी।मैं फ्रेश होकर सब्जी लाने चल दी।
घर आकर "चाय बागान के श्रमिकों की आंदोलन " के बारे जानकारी ली और उन्हें कलमबद्ध करने बैठ गई ! उनकी समस्याओं के बारे लिखकर, उसे छपने के लिए भेज दिया।
फिर मुझे पार्लर भी जाना होगा, खुद को 'रिफ्रेश ' करने के लिए ! अभी तो मुझे जीना है ! अभी तो मुझे अनेक कार्य करने है।-------------।