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मार्च क्‍लोजिंग

मार्च क्‍लोजिंग

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मार्च क्‍लोजिंग की गहमागहमी ऑफिस में देखते ही बनती थी। सुबह से लेकर शाम चार बजे तक कस्‍टमर, एजेंट्स की आवाजाही और उनकी शिकायतों को दूर करते-करते थकान से शरीर टूटने सा लगता हैं। इस थकान को दूर करने का एकमात्र सस्‍ता-सुलभ साधन हैं – गर्मागरम अदरक वाली चाय। शाम सवा चार बजे जब ऑफिस थोड़ा खाली सा हुआ तो श्रेया ने इंटरकॉम पर केंटीन से दो कप चाय ऑर्डर की और दूसरे विभाग में बैठी अपनी सहकर्मी और सखी वनिता को आवाज लगाई।

पांच मिनट में ही वनिता कुर्सी खींचकर श्रेया के पास आकर बैठ गई। उतने में ही दो कप चाय श्रेया की टेबल पर आ गई थी।

'हां वनिता, कैसी हैं, आज कस्‍टरमर का रश बहुत था ना तुम्‍हारे पास, बहुत थकी सी लग रही है। – श्रेया ने पूछा

'थकी तो हॅू पर श्रेया एक बात और हैं, जो मैं तुमसे पूछना चाहती हॅू।'- वनिता रूआंसे स्‍वर में बोली

'पहले तो चाय का कप उठा, वरना गर्मागरम चाय का मज़ा किरकिरा हो जाएगा। हां अब बता क्‍या हुआ, कुछ परेशानी हैं क्‍या ?' – श्रेया ने पूछा

'देख हम सभी तो ऑफिस में काम करने ही आते हैं ना ? – वनिता बोली

'हां, तो फिर ?- श्रेया ने पूछा

'फिर क्‍या, मुझे यहां आये तो छ: महीने ही हुए हैं, मुझे आज ही पता चला कि मार्च क्‍लोजिंग के समय एक-एक करके सभी फील्‍ड ऑफीसर हमारे विभाग वालों को उनके टार्गेट पूरे होने पर पार्टी देते हैं। वो भी होटल में ले जाकर, क्‍योंकि हमने समय पर उनका काम किया, देर तक रूके, सहयोग किया वगैरा। भई क्‍लोजिंग हैं, हम सभी को अपना-अपना काम तो करना ही हैं ना, फिर काम करने के लिए पार्टी की क्‍या जरूरत ? - वनिता सवालिये लहजें में बोली

'हां, यहां तो ऐसा ही होता हैं। तुम क्‍या पार्टी में नहीं जाना चाहती ? - श्रेया बोली

'अरे श्रेया, मैने पुरानी फाइलें पलटकर देखीं, मेरे आने के पहले यहां जो भी फार्म सबमिट होते थे, ज्‍यादातर बिना के.वाय.सी; के। मैं तो भई नियम-कायदे पर चलने वाली हॅू। मैंने इन फील्‍ड ऑफीसरों की ये भर्राशाही चलने नहीं दी और अब जिसके भी पेपर पूरे कंप्‍लीट होते हैं उनका ही काम आगे बढ़ता हैं। अरे हम नौकरी करने आये हैं, कोई नियम-कायदे भी तो मानने चाहिए या नहीं। – वनिता ने बात को आगे बढ़ाया ।

'फिर तुम्‍हारे मन में क्‍या उधेड-बुन चल रही हैं ?' - श्रेया ने पूछा

'श्रेया, मैं सोचती हॅू कि यदि मैने इनके साथ होटल में जाकर लंच किया तो कल को बेशक ये अपने खिलाये नमक के बदले में वाजिब-गैरवाजिब काम करवाने के लिए मुझ पर जोर डाल सकते हैं। और जोर डाले या ना डालें, इनकी पार्टी में शिरकल करने के बाद मुझे इनसे तेज आवाज़ में बात करने या नियम कायदों की ताकीद देने से पहले दस बार सोचना पड़ेगा। सही सोच रही हॅू ना मैं ?'- वनिता बोली

'ये बात तो तुम सोलह आने सच कह रही हो वनिता ' - श्रेया ने सहमति जताई

'बस, मैं एक लंच के एवज में अपना जमीर नहीं बेच सकती, और दो टूक जाने से एकदम मना भी नहीं कर सकती। यही सोचकर परेशान हो रही हॅू कि इन लोगों के साथ होटल में न जाने के लिए क्‍या बहाना बनाऊं ?'- श्रेया ने परेशानी जताई ।

'अरे वनिता, इतनी जायकेदार गर्मागरम चाय पीकर मेरे दिमाग में एक आइडिया आया हैं, पर हां इसके लिए कल तुम मुझे चाय पिलाना।- कहते हुए श्रेया हंस पड़ी

'अरे बिल्‍कुल डियर, जल्‍दी बता ना।' – वनिता बोली

'सुन, वैसे भी तुम पिछले छ: महीनों में ऑफिस वालों के साथ पार्टी में कहीं गई नहीं हो, लंच भी तुम अपने घर जाकर ही करती हो और ऑफिस में मंगवाए समोसे-कचौड़ी तुम छूती भी नहीं।'– श्रेया बोली

'वो तो ठीक हैं, फिर आगे ?' - वनिता का कौतुहल बढ़ गया था ।

'तो क्‍या, ये कहना कि मैं परहेज करती हॅू और बाहर का खाना बिल्‍कुल नहीं खाती। इसीलिए मैं लंच पर आप लोगों के साथ होटल नहीं जा सकती ' - श्रेया ने समाधान बताते हुए कहा ।

'और मान लो ऑफिस वालों के यहां कभी किसी फंक्‍शन में जाना पड़े तब।' - वनिता के मन में सवाल उठ खड़ा हुआ

'अरे, तो कौन सा कोई याद रखने वाला हैं। किसी को कोई लेना – देना नहीं। रात गई- बात गई मेरी जान। फिर जब कभी जाना होगा, जब का जब देखा जाएगा। साथ बैठकर चाय पियेंगे तो उसका समाधान भी खोज ही लेंगे। अभी तो तुम यही बहाना बताओ।> - श्रेया बोली

'वनिता के चेहरे पर से चिंता की लकीरें मिट चुकी थी। उसने श्रेया का हाथ अपने हाथों में लेकर अच्‍छी कड़क चाय और नेक सलाह के लिए धन्‍यवाद कहा और हल्‍के मन से अपनी सीट की ओर चल पड़ी।



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