“JOURNEY” says………
“JOURNEY” says………
“सफर” तीन अक्षरों के मेल से बना एक शब्द हैं. जिसके हर एक अक्षर मे एक सन्देश छुपा है, जो हमसे ये कहते है......
स – साथ चलो, सबको लेकर चलोफ - फासले मिटाओ
र - राह (मंजिल) आसान हो जाएगी
अर्थात सफर हमसे कहता है “साथ चलो फासले मिट जाएंगे और राहे खुद बखुद आसान होजाएंगी ”.
जब हम कोई सफर शुरु करते है तो हमे पहले से पता होता है की शुरुआत कहाँ से करनी हैऔर कहाँ जा के सफर को विराम देना है . अर्थात हमे हमारा गंतव्य पता होता है. ज्यो –ज्यो हम आगे बढते है, फासले कम होने लगते हैं और मंजिल करीब होने लगती है.
वास्तविक जीवन का सफर भी ऐसा ही होता है जिसकी शुरुआत “जन्म” है और गन्तव्य“मौत” है. जीवन की शुरुआत माँ की गोद मे होती है, फिर धीरे धीरे हम बड़े होने लगते है, तालीम हासिल करते है और मंजिल की तलाश मे हम अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर देते है, क्योंकि जीवकोपार्जन के लिय मंजिल का होना बहुत जरूरी है. समय के साथ हमे अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार मिल जाता है, या हम अपने खुद का व्यवसाय शुरू कर लेते है. हमे मंजिल तो मिल जाती है परन्तु अपनों का साथ काफी पीछे छुट जाता है. हमारा जीवन एक दायरे मे सिमट के रह जाता है. पुराने दोस्त, करीबी रिश्तेदार जीवन के इस सफर में काफी पीछे छुट जाते है. जो कभी हमारे साथ और काफी खास हुआ करते थे, अब हमारेआस पास भी नही होते . हमारे बीच का फासला बढ़ता चला जाता है, किन्तु हमे इसकी परवाह नही होती.
जन्म लेके तेरी गोद में
जीवन जीना है मुझे भूलोक में....
आगे चलू या संग चलू
कैसे जिऊ मैं इस लोक में ??
क्या हम अपने जीवन को "सफर" के बताए मार्ग पे चल के नही जी सकते ? क्या मंजिल को पाने की चाह मे अपनों को भूल जाना उचित है?? क्या हम अपनी व्यस्तता मे से थोड़े से समय अपने परिजनों के लिए नही निकाल सकते??
आखिर हम क्यों और किसके लिए अपनों का त्याग कर रहे है ? उनसे दूरियां बढ़ा रहे है, ज्यादा पाने की चाहत हमे अपनों से दूर क्यों कर रहा है?
क्या ऐसा नही हो सकता की हमे मंजिल भी मिल जाये और हमारे बीच कोई फासले भी ना आये. “सफर” के कथन के अनुसार साथ चलने से फासले कम हो जाते है और मंजिल करीब आ जाती है . हम जानते है की हम एक सफर पे है जिसकी शुरुआत “जन्म” से हो चुकी है और हमारा गंतब्य क्या है ?? हम तो बस समय के साथ उन फसलो को कम कर रहे है. अब जबकि हमे आगाज और अंजाम दोनों पता है तो क्यों न हम सफर में मिलने वाले हर साथी को प्यार दे, क्यों न हम दूरियां मिटाने का काम करे, क्यों ना हम प्यार और सदभाव का वातावरण अपने चारो ओर उत्पन्न करे , क्यों दिलो के बीच दूरिया लाये, क्यों हम किसी से भेदभाव रखे ??
हम क्यों नही पूछते अपने आप से की क्या मैं सदा जीवित रहूँगा ? क्या मैं जीवन रूपी इस सफर का हिस्सा सदैव रहूँगा ??
जबाब हमेशा नकारात्मक ही होता है.....
हम हमेशा सफर मीठी यादों के साथ खत्म करना चाहते है. फिर जिन्दगी की सफर मे क्यों इसको भूल जाते है.
हम आज से अपने व्यस्त जीवन का कुछ पल अपनों के लिय अवश्य निकालेंगे.आज कुछ पल अपने अतीत को दे ,अतीत में छोड़ आये संबंधो को दे. फासलों को मिटाने का संकल्प ले. यकीन माने जीवन को एक नया आयाम मिलेगा , सफर के अंतिम पड़ाव मे आपके आस पास अपनों का साथ होगा.
प्यार और सदभाव का गीत हम गुनगुनाएंगे,
है कसम हमे हर फासलें मिटाएंगे.
साथ चलेंगे जीवन की राहों पे हम,
मंजिल को अपने करीब लाएंगे.......