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बच्चें तो सिर्फ ममता समझतें है

बच्चें तो सिर्फ ममता समझतें है

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माला और सपना कालोनी की दोनो सखियां गार्डन में बैठे बाते कर रही थी।


“बताओ रेखा का पति को कितना ठगा हुआ सा महसूस करता होगा”


तभी जूही वहां आ आती हैं "अरे कौन ठग गया?, किसने ठग लिया? जिसके बारे में बात कर रही हो तुम लोग?”


“अरे रेखा के बारे में, जूही "


“अच्छा रेखा”


“हाँ, उसने तो आज पार्टी में बुलाया है। तुम लोग आ रही हो न शाम को, सपना"


“हम लोग तो आयेंगे लेकिन तुम न ही आओ तो अच्छा रहेगा”


जूही चौकते हुए पूछती हैं " लेकिन क्यों? रेखा ने बड़े प्यार से बुलाया है तो मैं क्यों न जाऊं"।


माला "क्योंकि तुम्हे पता नहीं है उसके बारे में अभी नई नई आई हो कालोनी में तुम"


जूही "ऐसी क्या बात है? मुझे तो बड़ी भली लगती हैं वो, बहुत मददगार और अच्छे स्वभाव की लगी मुझे तो रेखा"


सपना " अरे तुम क्या जानो उसके बारे में, वहीं तो बातें कर रहे थे हम लोग उसका पति कितना ठगा सा महसूस करता होगा क्योंकि रेखा बांझ है न। वो कभी माँ नहीं बन सकती। शादी के पहले छिपाना नहीं चाहिए था न लड़के से। वो तो रेखा का पति बहुत भोला है कोई और होता तो कब का छोड़ देता ऐसी लड़की को"


जूही "ये तुम लोग कैसी बातें कर रही हो एक औरत हो कर। बेचारी रेखा, वो माँ नहीं बन सकती। इसका कितना दर्द होगा उसके मन में और उससे हमदर्दी रखने के बजाय तुम लोग ऐसा सोचती हो उसके बारे में, ये सही नहीं है। और एक बात बताओ कौन सी लड़की को शादी से पहले पता होता है वो माँ बन सकती है या नहीं?"


माला " देखो जूही तुम्हारे अभी बच्चे नहीं है और तुम कोशिश कर रही हो माँ बनने की इसलिए हमनें तुम्हे मना किया उसके घर जाने से। हम तो अपने बच्चो को भी कभी उसके घर अकेले नहीं जाने देते "।


जूही मन ही मन सोच रही थी कैसा समाज है ये जहां एक औरत को बांझ का ताना देने वाली एक औरत ही होती है जबकि एक औरत के सिवाय माँ न बन पाने का दर्द और कोई समझ भी नहीं सकता। शाम को पार्टी में रेखा के घर पहुंचे सब लोग। जूही भी आई, सपना और माला ने उससे धीरे से पूछा, “तुम्हे समझाया था, फिर भी आ गई”


जूही “मै नहीं मानती ये सब बातें मुझे तो रेखा का अपनापन खींच लाया"


पार्टी चल ही रही थी कि तभी माला की छह माह की बेटी गुड़िया बहुत रोने लगी। माला के साथ साथ वहां पहुंची अन्य महिलाएं भी कोशिश कर रही थी उसे चुप कराने की। कोई गुड़िया को पानी पिलाने के सलाह दे, कोई खिलौने से बहलाए, कोई गुनगुनाए लेकिन गुड़िया की माँ माला भी उसे चुप नहीं करा पा रही थी। जूही भी गुड़िया को गोद में ले कर बहलाने की कोशिश कर रही थी और इसी बीच जूही ने वहां रेखा की छटपटाहट को भी महसूस किया। मन ही मन बहुत घबरा रही थी रेखा। उसकी बेचैन बाहें गुड़िया को गोद में लेने की लिए भी तड़प रही थीं लेकिन संकोच के कारण वो अपनी बाहें आगे बढ़ा कर भी बार बार पीछे खींच लेती।


जूही ने बातों ही बातों में गुड़िया को रेखा की गोद में दे दिया। माला ये देख जूही पर भड़क उठी।


“एक बांझ की गोद में मेरी गुड़िया क्यों दे दी तुमने?”


जूही ने माला को शांत करते हुए बोला "ज़रा देखो तो अपनी गुड़िया को चुप हो गई वो और कैसी लिपटी हुई हैं रेखा के सीने से, देखो बच्चे तो सिर्फ ममता समझते है। तो हम लोग क्यों नहीं?”


“तुम लोग इस बात को समझो की जिसके पास जो चीज नहीं होती सही मायने में उसे उस चीज की कीमत पता होती हैं। जैसे गरीब के पास पैसे नहीं होते तो उसे पैसे की कितनी कद्र होती हैं। प्यासे को पानी की कीमत पता होती हैं, वैसे ही सोचो रेखा भी माँ नहीं बन सकती। उसे बच्चो की कितनी कद्र होगी वो क्यों कभी किसी बच्चे को या माँ को नुक़सान पहुंचाएगी। सच कह रही थी जूही तभी तो पार्टी में बैठी सभी महिलाएं रेखा और गुड़िया का प्यार देख रही थी। कैसे रेखा प्यार से गुड़िया को सीने से लगाए अपनी ममता लुटा रही थी और गुड़िया भी रेखा के कंधे पर सर टिकाए सुकून से मासूमियत भारी निगाह से सब को निहार रही थी। 


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