एकतरफा इश्क़
एकतरफा इश्क़
बारहवीं का बोर्ड एग्जाम हो गया था, आगे की ज़िंदगी को एक नए रास्ते पर ले जाना था या यूं कहें कि आगे की पढ़ाई को एक नई दिशा देना था मेरे ख्यालों में बहोत से सवाल घूम रहे थे कि आखिर अब करना क्या है, क्या आगे की पढ़ाई करना भी है या नहीं काफी सोचने के बाद फैसला किया कि बी.एच.यू में आगे की पढ़ाई करना सही रहेगा घर से भी नज़दीक और लेकिन बी.एच.यू में पढ़ने के लिए एंट्रेंस एग्जाम देना होता है तो मैंने सोचा कि कहीं कोचिंग कर लिया जाए तो मैंने सी.एल. नामी एक कोचिंग में बी.एच.यू का सपना अपनी आंखों लिए घुस गया। एक-दो दिन वहां का वातावरण समझने में गुज़र गया, बारहवीं तक CHS में पढ़ना आप लोग समझ सकते हैं क्या होता है ! बॉयज़ स्कूल में होने के कारण लड़कियों से बहोत दूर। खैर, तकरीबन चार दिन बाद एक लड़की दिखी शायद अभी अभी उसने दाखिला लिया होगा (अनुमान से) , सच! बहुत खूबसूरत शायद मैंने वैसी लड़की कभी नहीं देखी थी। खूबसूरती को शब्दों से बयाँ करना मुश्किल। हालांकि, दो-चार सेकंड देखने के बाद फिर अपनी पढ़ाई करने लगा।
मुझे उससे प्यार नहीं हुआ था। एक सेकंड- एक सेकंड, शायद मैं गलत हूँ यहाँ ! प्यार से पहले तो आकर्षण (अट्रैक्शन) होता है न वो भी नहीं हुआ था। यही सब सोचते हुए क्लास कब खत्म हो गयी पता ही नही चला, और मेरे ज़ेहन में उसके लिए कोई भावनाएं भी नहीं थी, आखिर मैं रखता भी क्यों, मैं तो उसे जनता भी नहीं था तो फिर मैं उसके बारे में क्यों सोचूं...
दो-तीन दिन बाद फिर से दिखी। वाकई बिल्कुल एक परी के जैसी, ऊपर सफेद रंग की टी-शर्ट और नीचे काले रंग की जीन्स मैं तो बस उसे एक टक देखता ही रह गया और अपने मन में उसके लिए अलग-अलग बातें सोचने लगा और उसकी खूबसूरती को अलग-अलग माप से नापने लगा,
बड़ी-बड़ी आँखे, रेशमी बाल चेहरे पर हल्का सा लज्जा, खामोश मिज़ाज और भी बहोत कुछ अगर एक शब्द में कहूँ तो कुदरत का बनाया हुआ एक नायाब नमूना। हिंदी गाना 'कुदरत ने बनाया होगा फुरसत से तुम्हें मेरे यार...' मानों उसके ऊपर एक दम फिट बैठता हो...
वक़्त निकलता गया और दिन प्रतिदिन उसकी खूबसूरती में पहले से इज़ाफ़ा, रोज़ पहले से ज़्यादा खूबसूरत लगती, और सच कहूं तो मैं अब आपना दिल हार गया था। अनजाने में ही उसके बारे में सोचने लगा। वक़्त एक-एक दिन कर के घटता गया और मेरे अंदर की भावनाएं वक़्त से बढ़ने लगीं शायद मुझे उससे प्यार हो गया था, सच वह लड़का (मैं) जो बी.एच. यू की तैयारी करने के लिए आया था वह अब किसी और चीज़ की तैयारी करने लगा था...।
मेरी अगली परीक्षा उसका नाम जानने की थी, लेकिन कभी भी यह सब न करने का अनुभव बता रहा था कि बेटा रहने दे तुमसे ना हो पावेगा, लेकिन मैं भी हार कहाँ मानने वालों में था। हमारे कोचिंग में हर सप्ताह एक टेस्ट होता था जिसमें नाम बोल कर उत्तर पुस्तिका को बांटा जाता था।मैंने भी सोच लिया कि आज तो नाम जान कर रहूंगा मेरे दिमाग में बस वही घूम रही थी। उस वक़्त एक-एक मिनट बहोत मुश्किल से गुज़र रहा था मुझे तो बस उसका नाम जानने की इच्छा थी...। तकरीबन पंद्रह मिनट बाद उसका नाम बोला गया नाम था 'तृप्ति शुक्ला'
तृप्ति नाम का अर्थ ही होता है संतुष्ट, लेकिन मेरे अंदर संतुष्टि नहीं थी जब भी उसे देखता अंदर से एक सुकून मिलता...
अंदर से कभी ख्याल ही नहीं आया कि वह ब्राह्मण हिन्दू और मैं मुसलमान। प्यार, इश्क़, मोहब्बत की दुनिया में इन सब मान्यताओं की ज़रूरत नहीं होती है, वहाँ तो कद्र होती तो एहसासों की, मुझे तो पता ही नहीं था कि जिस इश्क़ के समुंदर में मैं गोते लगा रहा था कभी बाहर निकल पाऊंगा भी या नहीं। मेरे लिए बिल्कुल नया अनुभव और शायद आगे चल कर यही अनुभव मुझे हमेशा के लिए डुबा देगा मुझे पता ही नहीं था। उसका नाम ले कर एक अजीब सा सुकून मिलता था और मैं इसे खोना नहीं चाहता था। खुदा की कारीगरी का बनाया हुआ एक नायाब नमूना मुझे नहीं पता था कि मुझसे दूर भी चला जायेगा...
एक बार उससे बात करने की कोशिश की थी वह भी बहोत मुश्किल से अपने आप को मनाने के बाद, एक पेपर मांगने के बहाने दस से बारह सेकंड के लिए।
निशब्द, उसकी खूबसूरती को देख कर कुछ बोल ही नही पाया। बस उसे देखे ही जा रहा और शायद उसने देख भी लिया था इसीलिए उसने जल्दी से ना बोलकर चली गयी थी।
नाम तो पता चल ही चुका था अब बारी थी उसके मोबाइल नम्बर की...इतनी हिम्मत कहाँ की उससे नम्बर मांग लूँ, कुछ बोल दिया तो इज़्ज़त का मटियामेट बन जायेगा... मेरा मोबाइल एक हज़ार रुपये का और उसका पचीस हज़ार का(एकात बार देखा था चलाते हुए), इतना महंगा फ़ोन वह भी अभी इतनी कम उम्र में हमारे घर वाले तो कभी न दें।
धीरे-धीरे महीना बीत गया पता ही नहीं चला, अब बस एक-दो दिन बचे थे कोचिंग खत्म होने में। डर भी लग रहा था कि अगर नम्बर नहीं मिला तो फिर शायद उससे ज़िन्दगी में कभी बात न कर पाऊँ, बस यही डर मुझे खाये जा रहा था...
कोई जुगाड़ भी समझ नहीं आ रहा था लेकिन कहते हैं न खुदा के घर देर है अंधेर नहीं... बस वही मेरे साथ भी हुआ... रिसेप्शन वाली मैडम से जुगाड़ लगा ही लिया, लेकिन वह भी इतनी जल्दी मानने को कहां तैयार...
अंततः काफी मुश्किल के बाद कोचिंग के आखिरी दिन नम्बर मिल ही गया,
दो दिन बाद 15 मई बी.एच.यू का पेपर था तो मैंने 15 मई की सुबह को मैसेज किया कि
मैं :-
"हाय ! वेरी गुड मॉर्निंग। टुडे इज़ वेरी इम्पोर्टेन्ट डे फॉर यू एन्ड आई एम श्योर दैट यू आर गोइंग टू मेक इट पॉसिबल एन्ड बिलीव मी दिस इज़ जस्ट अ पेपर। बीएचयू इज़ वेटिंग फॉर यू। ऑल द बेस्ट। बाय !"
मेसेज तो कर दिया लेकिन डर लग रहा था कि कहीं फ़ोन करके कुछ बोल न दे अनजान नम्बर देखकर, तो मैंने अपना फ़ोन बन्द कर दिया, एग्जाम देने के बाद करीब 6 बजे अपना मोबाइल चालू किया।
7 बजे उसका मैसेज आता है कि
तृप्ति :- "हु ?"
मैंने कोई रिप्लाई नहीं दिया 15 मिनट बाद उसका फिर कॉल आता है !
मैंने फ़ोन को काट दिया और अंदर ही अंदर सोचने लगा पता नहीं क्या सोची होगी, फिर से फ़ोन आता है इस बार मैंने फ़ोन उठा लिया और उसकी आवाज़ का इंतज़ार करने लगा।
तृप्ति :- कौन ?
मैं :- मैं ( दबी आवाज़ में )
तृप्ति :- मैं कौन, कुछ नाम तो होगा ?
मैं :- मैं CL में पढ़ता हूँ , हाशिम कुछ याद आया ?
तृप्ति :- अच्छा ह्म्म्म याद आया।
(इससे पहले की वह कुछ बोलती)
मैं :- मुझे पता है तुम सोच यही रही होगी कि मुझे तुम्हारा नम्बर कहां से मिला ?
तृप्ति :- हम्म
मैं :- देखो, मैंने तुम्हारा नम्बर तुम्हारे एडमिशन फॉर्म से निकलवाया है, ऐसे- ऐसे....
सब कुछ बता दिया।
(शायद उसे मेरी यही आदत अच्छी लगी हो- सच बोलने की)
तृप्ति :- अच्छा ! तुमने मेरा नम्बर क्यों निकलवाया कोई खास वजह ??
मैं :- कुछ नहीं बस ऐसे ही दोस्ती करने का मन था तुमसे, बस इससे ज़्यादा कुछ नहीं (जबकि मैं उसे कभी अपना दोस्त मानता ही नहीं था)
झूठ बोलते हुए..
(दोस्ती ही तो मोहब्बत की पहली सीढ़ी होती है अक्सर सुन रखा था फिल्मों में, तो मैंने भी वही कह दिया)
तृप्ति :- अच्छा
(इससे पहले कि वो कुछ पूछती)
मैं :- तुम्हारा एक्ज़ाम कैसा गया
तृप्ति :- अच्छा गया।
मुझे उम्मीद थी कि वह भी मेरे बारे में पूछेगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और फ़ोन काट दिया।
अंदर से खुश भी था कि चलो कम से कम आवाज़ तो सुन लिया आवाज़ भी बिल्कुल उसी के जैसी एक दम मखमली, मीठी और खूबसूरती भरा लहज़ा।
यही सब सोचते हुए एक हफ्ता निकल गया बात करने का कोई बहाना ही नहीं मिल रहा था
एक हफ्ते तक हमारी कोई बात नही हुई थी। अचानक से खबर आई कि बी.एच.यू की आंसर शीट आ गयी है। मेरे पास बहाना भी था कि चलो इसी बहाने एक मैसेज कर दूं। मैंने लिखा...
मैं :-
"हाय ! गुड मॉर्निंग। आंसर की ऑफ बी एच यू बी कॉम हैज़ बीन पोस्टेड ऑन वेबसाइट। काइंडली चेक योअर आंसर। बाय !"
उसके बाद हमारी बातें होने लगीं धीरे- धीरे ही सही होने लगी। बस दोस्त वाली बातें, उसके आगे की मैंने सोचा तो बहुत लेकिन कभी हिम्मत ही नहीं हुई, दो तीन महीने हमारी बात चली.. मेरे पास हज़ार रुपये का मोबाइल था बटन वाला, मैसेज लिखने में परेशानी होती थी। दिन भर बटन वाले मोबाइल से मैसेज लिखना अच्छा नहीं लगता था उंगलियां दर्द देने लगती थीं। मुझे कोई नया रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था नया मोबाइल लेने का।
तभी मामा से जुगाड़ लगा कर उनका galaxy note 3 ले लिया अब मेरे पास भी अच्छा मोबाइल हो गया था तो मैंने उससे व्हाट्सएप्प पर बातें करना चालू कर दिया, अक्टूबर तक हमारी बातें हुईं।
मैं अक्सर सोचता कि कह दूँ की तुम मेरी दोस्त नहीं हो मैंने तुम्हें दोस्त से ज़्यादा मान लिया है, मैं इस रास्ते पर बहोत आगे आ गया हूँ अकेला ही आया हूँ अच्छा होगा कि तुम भी मेरे साथ आ जाओ।
लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाता। भावनाएं अंदर ही अंदर मुझे कचोट रही थीं। बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था। मैंने फैसला किया कि अब मुझे उसे सब कुछ बता देना चाहिए। मैं उसके बारे में क्या सोचता हूँ वगैरह-वगैरह..., अब मैं दोस्त का ढोंग छोड़कर उसे हकीकत के आईने में लाकर सब कुछ सच-सच बता देना चाहता था।
अंततः मैंनें लिखा...
मैं :- hey, i want to tell you something, i can not keep this truth any more, and it is impossible to convey through massege. I want to meet you just for 5 minutes
( मैं तो भूल ही गया था कि वह गोरखपुर रहती है और मैं बनारस में)
उसके बाद उसका मैसेज आता है...
तृप्ति :- Tell me, what you want to say ?
मैं :- yrr i am feeling quite different for you, since last few days.
तृप्ति:- ohk, what are you feeling about me, tell me ?
(मेरे इतना कहने के बावजूद वह क्या जानना चाहती थी, इसमें समझने में क्या परेशानी है कि एक लड़का एक लड़की के लिए क्या सोच सकता है)
"और भावनाओं को शब्दों में ढालना इतना आसान होता तो फिर क्या बात थी..."
मैं :- yrr, i do like you.
( किसी तरह लिख के भेज दिया और उसके मैसेज का इंतज़ार करने लगा... यह भी सोच रहा था कि न जाने क्या सोचेगी)
दो दिनों तक उसका कोई जवाब नहीं"देखो, हम सिर्फ दोस्त हैं उससे आगे कुछ नहीं अगर हम चाहें भी तो कुछ नहीं हो सकता हमारा धर्म अलग है, तुम मुस्लिम हो और मैं हिन्दू ब्रह्मिन। हमारी मान्यताएं अलग हैं अगर तुम सोचते हो कि हमारे बीच दोस्ती से आगे कुछ हो सकता है तो यह ना मुमकिन है, हमारे सामने सब कुछ है समाज, लोग, परिवार, रिश्तेदार और सबसे महत्वपूर्ण हमारी सभ्यता दोनों के बीच ज़मीन आसमान का फर्क है,अगर हम कुछ बनाने की सोचें तो सब कुछ बिगड़ जाएगा। प्यार, तुम मुझसे करते हो ? चलो मान ली, लेकिन मेरा क्या मेरे आगे की ज़िंदगी का क्या। मैं एक लड़की हूँ और मैं अपने परिवार की इज़्ज़त को नहीं उछाल सकती।
अगर हम एक हो भी गए तो यह समाज हमें कभी नहीं स्वीकारेगा। बेहतर यही होगा कि अब हम आज से एक दूसरे से बात ना करें, अपना ख्याल रखना।
गुड बाई ।"
मेरी तो मानों पैर के नीचे से ज़मीन खिसक गई, देखते ही देखते मेरे सपनों का महल कांच की तरह टूट रहा था। मेरे सारे सपने धूमिल होते दिखाई दे रहे थे जो मैंने बनाये थे। समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, बिल्कुल बेहोशी का आलम। हफ्ता दिन कब निकल गया पता ही नहीं चला।
फिर होश आया आगे की पढ़ाई भी देखना है, तो मैंने किसी तरह बेमन से पढ़ाई करता और दिन रात बस यही सोचता कि मैं ऐसे रिश्ते में आया ही क्यों जो था जो बिल्कुल कागज़ की नाव की तरह था जो कुछ पल के लिए वजूद में आकर हमेशा के लिए मर जाता हो और चिथड़े-चिथड़े हो कर किसी गुमनाम वादियों में वक़्त के थपेड़ों के साथ दफन हो जाता हो।
नवम्बर का महीना गुज़रता है और दिसम्बर में मेरा जन्मदिन होता है, उसने मैसेज किया कि
तृप्ति
:- Happy Birthday.
लेकिन मैंने कोई जवाब नही दिया। बस उसको सोचना और उसकी यादों को याद करते हुए दिसम्बर का महीना ऐसे ही गुज़र जाता है। क्रिसमस के दिन मैंने उसे मैसेज किया कि
मैं :- Happy Christmas Day.
उसके कुछ देर बाद उसका मैसेज आता है
तृप्ति :- Thank you
U too.
जाने अनजाने में फिर से हमारी फिर से बात होने लगती है पहले जैसे नहीं। सुबह शाम गुड मॉर्निंग, गुड नाईट हो जाता था और दिन में बहोत हल्की फुल्की बातें, बस।
जनवरी में उसका जन्मदिन होता है तो ठीक बारह बजे मैंनें उसे मैसेंजर पर लिखा
मैं :- Hey, Happy Birthday.
Have a better life ahead.
Enjoy your day.
(उसका कोई भी रिप्लाई नहीं शायद मैंने मेरे जन्मदिन पर उसे रिप्लाई न देने का नतीजा)
उसके बाद न कोई बात न कोई मुलाकात दिन सप्ताह महीने बीते और आज मैं उसकी परछाईं से इतनी दूर। यही सोचते हुए की कहीं मैं उस की अंधेरे की परछाईं तो नहीं जो शायद कभी रोशनी पड़ने पर उसे दिखाई दे।
अंततः मैंने अपनी डायरी निकाली और लिखा,
तृप्ति,
नाम लेने की कभी हिम्मत नहीं हुई।इतना पाक नाम की बिना वज़ू किये तुम्हारा नाम लेना मेरे लिए गुनाह। बेशक मैंने तुमसे मोहब्बत की है और हमेशा करता रहूंगा। मेरा पहला और आखिरी प्यार भी तुम ही हो, तुम्हारे आने से पहले मेरी ज़िंदगी बहुत अलग हुआ करती थी, खुश तो रहता था लेकिन एक प्यार की हमेशा कमी महसूस होती थी, हमेशा यह सोचना की कहीं कोई तो हो मेरी भावनाओं को समझ सके, जो मेरे वजूद को समझ सके, जो कहे पागल डरते क्यों हो मैं तुम्हारी ही तो हूँ। कोई तो हो जो आंखों में आंखें डाल के बिना लफ़्ज़ों के सब कुछ समझ जाएं। और न जाने कब मैंने तुमसे दिल्लगी कर ली, तुम्हारी यादों में न जाने मैं कहाँ खो गया था मुझे पता ही नहीं चला और इसके लिए मुझे (इस प्यार के लिए) इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह कभी नहीं सोचा था मैंने हमेशा तुमसे मुहब्बत की है और अपनी आखिरी सांस तक करता रहूंगा यह मेरा वादा है तुमसे और आज तुमसे ही दूर, मेरे लिए नामुमकिन लेकिन हकीकत को छुपाया नहीं जा सकता । जो कभी तुम्हारी परछाईं बनना चाहता था और आज वही तुमसे बहुत दूर, सुना था कि परछाईं अंधेरे में साथ छोड़ जाती हैं अच्छा हुआ मैं तुम्हारी परछाईं नहीं बन सका क्योंकि मैं तुम्हें एक पल के लिए भी अपने आप से जुदा नहीं कर सकता। मैं कैसे बताऊं की तुमसे एक पल के लिए जुदा होना मेरे लिए कयामत जैसा है। यह ज़रूरी तो नहीं कि मैंने तुमसे प्यार किया है तो तुम भी मुझसे करो और इसमें कोई खराबी भी नहीं है। प्यार एक एहसास है जो मैं तुम्हारे लिए महसूस करता हूँ और मुझे इस बात का अब कोई गिला नहीं है कि तुम मुझसे शायद प्यार नहीं करती हो। हां थोड़ी तकलीफ तो होती है जब भी तुम्हारे बारे में सोअंदर से सिहरन होने लगती है, डरता भी हूँ।
तृप्ति, खुदा को क्या मंज़ूर था यह मैं नहीं बता सकता लेकिन मुझे तुमसे बेपनाह मुहब्बत है यह तो जनता ही हूँ।तृप्ति,इस जन्म में तुम मेरी तो नहीं बन पाई लेकिन मेरा वादा है कि अगले हर जन्म में तुम मेरी होगी। यह वादा है जब तक मेरी सांसें हैं तब तक तुम मेरे खयालों में आज भी उतनी जी अज़ीज़ हो जितनी तब थी, मेरे लबों पे आज भी तेरा ज़िक्र उतनी ही पाकीज़गी से है जितना तब था, मेरे मरने के बाद मेरी यादें तुमसे वफ़ा करेंगी, यह मत सोचना तुम्हें चाहा बस कुछ दिनों के लिए। यह वादा है खुदसे मिलूंगा तुमसे यहाँ नहीं तो वहां इंसानी जिंदगी में नहीं तो रूहानी ज़िन्दगी में। मरने के बाद जब मैं खुदा से मिलूंगा तो उसे ज़रूर बताऊंगा अपने प्यार के बारे में और खुदा ने देखा भी होगा, और उससे तुम्हें मांग के भी लाऊंगा और फिर हर जन्म में तुम मेरी होगी। खुदा की कसम तुम मेरी होगी सिर्फ मेरी। अगर इस दुनिया में हमारे प्यार की कोई जगह नहीं तो हम किसी और दुनिया में अपने इश्क़ को निभाएंगे हम मोहब्बत के पाकीज़ा रिश्तों के एक अटूट से बंधन में हमेशा-हमेश के लिए बंध जाएंगे..., कलम भी मुझसे कहने लगी कि बस करो मेरे आँसू इस कागज़ पे लिख तो रहें हैं लेकिन मुझे तुम्हारे आँसू की ज़्यादा कद्र है, तभी अचानक से कलम की रोशनाई खत्म हो जाती है।
"दोस्तों इससे पहले की मैं गुमनामी की मौत मारा जाऊँ,
डर है कि कहीं तन्हाई मुझे मार न दे। "
बस इतनी सी थी यह कहानी शब्दों से लेकिन अहसासों से शायद कभी न खत्म हो पाए...