श्राद्ध और श्रद्धा
श्राद्ध और श्रद्धा
पितृ पक्ष की समाप्ति के साथ ही लोगों के अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य पूर्ण हो गए। अगले वर्ष, पहले तो मैं ज्ञानी लोगों से ये पूछना चाहूँगा कि श्राद्ध का अर्थ का क्या होता है ?
कृपया बताए मुझे भी, थोड़ा समझ आए शायद।
वैसे मुझे जो मोटा-मोटा समझ लगता है उस हिसाब से श्राद्ध अर्थात श्रद्धा अपने पूर्वजों के प्रति। लेकिन यह श्रद्धा केवल पितृ पक्ष में ही क्यों उत्पन्न होती है, जब वे जीवित होते हैं तब क्यों उनके लिए सम्मान और श्रद्धा नहीं होती ?
जीते जी भोजन नहीं मिलता, सम्मान नहीं मिलता, कद्र नहीं होती, कोई बात करने वाला नहीं होता किंतु मरणोपरांत उनका श्राद्ध किया जाता है, उनके नाम पर ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है, दान-दक्षिणा दी जाती है, भंडारा किया जाता है, ऐसा क्यों भला ?
कहा जाता है कि इन दिनों वह आपके निवास स्थान पर आते हैं। अगर आप उनके नाम का भोजन नहीं करायेंगे तो वह भूखे ही चले जाते हैं, नाराज हो जाते हैं और आपके जीवन में परेशानियाँ पैदा करना शुरु कर देते हैं। भाइयों, एक बात बताओ, जो व्यक्ति जब जीवित था, जब वो अपनी होने वाली उपेक्षा के लिए आपसे अपशब्द नहीं बोला तो वह मृत्यु के पश्चात कैसे आपको कष्ट दे सकता है ?
मेरे हिसाब से यह सब अंधविश्वास के अंतर्गत आता है। हम में डर पैदा कर दिया जाता है कि हम ये नहीं करेंगे तो बुरा होगा।
सब डर की माया है साहब...
मेरी विनती है कि आप जीवित लोगों को प्यार दें, उनका सम्मान करें और अपने से बड़ों के साथ कुछ समय बिताए, बाकी आपकी इच्छा।
यह मेरे अपने निजी विचार हैं...
श्राद्ध के खिलाफ नहीं कह रहा हूँ, श्राद्ध कीजिए श्रद्धा के साथ, किंतु डर से नहीं।
यह मेरे निजी विचार है, अगर किसी की भावनाएँ आहत हुई है तो मैं उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ...