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Mahima Bhatnagar

Fantasy

5.0  

Mahima Bhatnagar

Fantasy

अपराजिता

अपराजिता

2 mins
497


"स्थिति नाज़ुक है, बच्चा ऑपरेशन से ही होगा।" डॉक्टर की बात सुन कर उसका हौसला साथ छोड़ने लगा था। 

"पैदा होते ही माँ को खा गयी" यही सुन सुन कर वो बड़ी हुई थी.. एक अनजान अपराधबोध से ग्रसित रही पूरी उम्र और अब फिर कुछ गलत हो गया तो। कैसे सामना करेगी वो इस स्थिति का, हिम्मत हारती हुई वो मूर्छित हो गयी।

"मेरे बच्चे, हिम्मत नहीं हारते, तुम्हारी थोड़ी सी मेहनत से एक जीवन पल्लवित होगा। तुम पूर्ण हो जाओगी, मैं ये जंग उस वक्त हार गयी थी मगर तुम मेरी बहादुर बेटी हो। 23 वर्ष पूर्व भी तुमने जिंदगी को जीता था और आज भी तुम हार नहीं मानोगी। हौसला बनाए रखो। थोड़ी हिम्मत से काम लो मेरे बच्चे। मुझे तुम्हारे पास वापस आना है। बस थोड़ा साहस और...." एक अनजान स्नेहमयी आवाज उसके अंतर्मन मे गूंज रही थी।

धीरे धीरे उसमें चेतना का संचार होने लगा....उस आवाज को महसूस कर वो ऊर्जा से भर उठी और कुछ ही देर मे एक स्वस्थ बेटी को जन्म दिया।

डॉक्टर एवं स्टाफ हैरान रह गये, ऐसा पहली बार हुआ था कि अभी तो ऑपरेशन की तैयारी चल ही रही थी और सामान्य प्रसव हो गया। प्रसूता असीम संतुष्टि से मुस्कुरा रही थी, सोच रही थी की इस चमत्कार की वजह एक माँ का अपनी बेटी पर विश्वास था....ताउम्र की आत्मग्लानि को आत्मसंतुष्टि में बदलने हेतु ये चमत्कार हुआ था।"

नवजीवन का स्वागत करते हुए सद्यःप्रसूता ने नवजात को अपने सीने से भींच लिया।


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