एकॉर्डियन
एकॉर्डियन
एक अंकल के पास अकॉर्डियन था। वो उसे बहुत अच्छा बजाते थे, और मैं सुनने के लिए उनके पास आ जाया करता। वो उसे छुपाकर रखते और किसी को भी नहीं देते थे। अकॉर्डियन बेहद बढ़िया थ, और उन्हें डर था कि कोई उसे तोड़ न दे। मगर मेरा मन तो उसे बजाने के लिए ललचाता था।
एक बार जब मैं उनके यहाँ आया, तो अंकल खाना खा रहे थे। उन्होंने खाना खत्म किया और मैं उनसे कहने लगा कि अकॉर्डियन बजाएँ। मगर उन्होंने कहा :
“अब कैसा बजाना ! मेरे सोने को मन कर रहा है।”
मैं विनती करता रहा और रोने भी लगा। तब अंकल ने कहा :
“चल, ठीक है, थोड़ा-सा बजाऊँगा।”
और उन्होंने सन्दूक से अकॉर्डियन निकाला। थोडी देर बजाया, अकॉर्डियन को मेज़ पर रखा और ख़ुद वहीं रखी बेंच पर सो गए।
मैंने सोचा : “अच्छा मौका मिला है। हौले से अकॉर्डियन उठाऊँगा और कम्पाऊण्ड में बजाने की कोशिश करूँगा”।
मैंने चुपके से अकॉर्डियन का हैण्डल पकड़ा और उसे खींचा। मगर वह तो बडे ज़ोर से रेंकने लगा, जैसे ज़िन्दा हो। मैंने डर के मारे अपना हाथ हटा लिया, तभी अंकल उछले:
“तू,” वो बोले, “ये क्या कर रहा है !”
और मेरे नज़दीक आये,मेरा हाथ पकड़ा।
मैं रोने लगा और सारी बात सच-सच बता दी।
“चल,” अंकल ने कहा, “अब रोना बंद कर : अगर तुझे इतना शौक है तो मेरे पास आया कर, मैं तुझे सिखाऊँगा।”
मैं आने लगा, और अंकल ने मुझे बताया कि कैसे बजाते हैं। मैं अच्छी तरह सीख गया और अब बहुत अच्छा बजाता हूँ।