बहू नमक की तरह होती है
बहू नमक की तरह होती है
मुरैना भदोही गाँव की रहने वाली रेवा इलाहाबाद के एक बड़े व्यापारी का बेटा सरजू के साथ उसका व्याह हुआ, नए घर मे बड़े ही आदर सम्मान के साथ रेवा ने गृहप्रवेश किया। शादी के दो तीन साल काफी मजे और ख़ुशी के साथ निकल गए और जैसे - जैसे दिन बीतता गया रेवा अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबती चली गई रेवा की सास भी रेवा से काफी खुश थी कि रेवा बहू अपना घर और संसार सब कुछ अच्छी तरह से संभालने लगी है गर्मी की छुट्टी पड़ गई। रेवा अपने मायके जाने की बात अपने सास से बोली “मम्मी दो साल हो गए मे मायके नहीं जा पाई क्या मै थोड़े दिन जाकर आऊ.” सास ने जवाब दिया “देखो रेवा अगले साल चले जाना।|” रेवा यह सुनकर काफी नाराज और दुखी होकर सोचने लगी कि जब चंचल दीदी हर तीन महीने पर घर आती है तो मम्मी काफी खुश होती है और कहती कितने दिन के बाद आई हो और मुझे दो साल हो गए मेरे बारे मे कोई कुछ सोचता ही नहीं है मेरी ख़ुशी किसी के लिए कोई मायने ही रखती है और क्या दिनभर इन लोगो को खाना बना के खिलाती रहूं , घर का सारा काम करती रहूं , क्या? मेरी यही जिन्दगी है और रेवा कमरे में आंसू की धारा समेटे दाखिल हुई, शाम को चंचल दीदी आनेवाली है देखना मम्मी कितना खुश होती है खाने के अलग –अलग फरमाईशो की लड़ी लगती रहेगी कि कभी चंचल दीदी के लिए समोसा बना दो, कभी पालक पनीर, तो कभी बिरयानी, मैं इतना क्यों सोच रही हूं? करना तो मुझे ही बनाना है तो चलूं किचन में अभी से तैयारी मे लग जाऊं। यह सोच ही रही थी की तभी सास ने आवाज दी “रेवा जल्दी नीचे आओ देखो चंचल आई है” रेवा अपने चेहरे पर मुस्कान लिए अपने दुख को अंदर एक कोने में दबाए अपनी ननद का स्वागत करती हैं “कैसी हो भाभी” चंचल रेवा से बोली ,”अच्छी हूं दीदी और घर में सब कैसे हैं अच्छे हैं| अच्छा हमारे जीजा जी कैसे है.” चंचल शरमाते हुए कहती है “वह भी भाभी अच्छे हैं” अच्छा दीदी आप बैठो मैं नाश्ता बनाकर लाती हूँ। नहीं... नहीं भाभी कुछ मत बनाओ मैं अभी घर से नाश्ता करके आई हूं और भाभी केवल दो-तीन घंटे ही रहूंगी क्योंकि सास की तबीयत ठीक नहीं है आपके जीजा जी उन्हें लखनऊ दिखाने गए हैं तो वो बोले “तुम अकेली यहां क्या करोगी एक काम करो तुम अपने मायके जाकर सब से मिलकर चली आओ सो मैं आ गई। ” मुस्कुराते हुए चंचल ने जवाब दिया,अच्छा दीदी रुको मैं खाना बना देती हूँ आप खा भी लीजियेगा और जीजाजी और आपके सास के लिए खाना भी बांध कर दे दूंगी। अरे भाभी मेरे साथ बैठो बातें करो शाम तक मै चली जाऊंगी खाना तो बनता ही रहेगा| तभी रेवा की सास ने रेवा से कहा “तुम एक काम करो चंचल के साथ बैठो बातें करो मैं कुछ बनाती हूं| जी नहीं.. मम्मी जी मैं बनाती हूं| आप दीदी से बात कीजि तभी कहा चंचल ने कहा “कोई बात नहीं आप खाना बनाओ और मैं आपसे बातें करुंगी थोड़ी मदद हो जाएगी यह ठीक रहेगा क्यों माँ |रेवा की सास बोली ये भी सही है| रेवा और चंचल किचन में प्रवेश करती है और काफी देर तक हंसी मजाक करते –करते खाना भी तैयार हो जाता है|
चंचल खाना खाने के बाद शाम को अपने घर चली जाती है रसोई को समेटकर रात को अपने कमरे में रीवा गई तो सरजू ने कहा कि “रेवा तुम काफी थक गई हो आराम कर लो” हां मुझे आराम कहां है| तुम्हारी मां तो बस यही चाहती है कि मैं अपने मायके ना जाऊ चंचल दीदी एक-दो घंटे के लिए आती है लेकिन मिलकर तो जाती है| “उसमें क्या? तुम भी चली जाओ रेवा” सरजू ने कहा और देखो रेवा दीदी भी कहां आ पाती आती है जब शरद जीजाजी अपनी मां को लखनऊ डॉक्टर के पास दिखाने ले जाते है तभी मिलने आती है तो इसका मतलब है मैं कभी नहीं जा सकती अपने मायके। ऐसा तो मैंने नहीं कहा रेवा अच्छा तुम शांत रहो मैं कल मां से बात करता हूं तुम अपने मायके चली जाना ठीक है, तुम तो रहने दो गुस्सा करते हुए रेवा सो जाती है।
सुबह उठकर रेवा अपने काम में रोज की तरह लग जाती है दोपहर मे शर्मा आंटी रेवा की सास से मिलने आती है और काफी देर तक बातें करती रहती है तभी शर्मा आंटी रेवा की सास से पूछती है की चंचल की माँ ये बताओ कि बहू और बेटी में क्या फर्क समझती हो। रेवा इस सवाल के जवाब का इंतजार कर रही थी की मम्मी जी का इसपर क्या जवाब होगा। रेवा की सास ने मुस्कुराते हुए बोली “बेटी कैसी भी हो पर वह मीठी होती है बहु नमक की तरह नमकीन होती है|” यह सुनते ही रेवा निराश होती है और दिल भी काफी दुखी हो जाता हैं शर्मा आंटी चली जाती हैं। काफी देर तक रेवा यह सोचती है कि मैंने मम्मी के साथ क्या बुरा किया है? मम्मी मेरे बारे में ऐसा क्यों सोचती हैं और वह अब घर मे निराश रहने लगती है निराश रेवा को देख कर एक दिन रेवा की सास ने पूछा है “रेवा यहाँ आओ तुमसे कुछ किसी ने कहा है क्या ? या सरजू ने कुछ बोला क्या ?”कुछ नहीं... मम्मी जी रेवा के आवाज मे दर्द था। रेवा की सास ने अपने पास बिठाकर पूछा नहीं... तुम बताओ रेवा क्या हुआ है? रेवा के आंखों में आंसू भर आई। और रेवा ने सास को सारी बात बता दी कि कैसे शर्मा आंटी से आप बेटी और बहु में फर्क बता रही थी। ओह्ह ... तो यह सुनकर तुम नाराज हो गई. बस इतनी सी बात अरे ... रेवा मैंने कहा बेटी मीठी होती है वह चाहे कितनी भी गलती करे उसकी गलती नजर ही नहीं आती है वह गुड की तरह मुह मे घुल जाती है। और खाने मे अगर मीठा न हो, तो कोई फर्क नहीं पड़ता है और बहु नमक के सामान इसलिए है क्यूंकि खाने मे अगर नमक न हो तो खाना बेस्वाद होता है खाने में नमक मिलने पर हम जो खाना खाते हैं उसी समय नमक के हम कर्जदार बन जाते हैं ठीक उसी तरह तुम मेरे लिए वही नमक हो मैं अपने स्वार्थ के लिए तुम्हें कही नहीं जाने देती हूं क्योंकि तुम्हारे न रहने पर घर सूना सा लगता है इस घर को संभालती हो इसीलिए हम तुम्हारे कर्जदार हैं। रेवा सारी बात समझ जाती है और अपनी सास के गले लिपट कर रोने लगती हैं। शाम को सरजू जब घर आता है तो अपनी माँ से कहता है कि “माँ रेवा अपने मायके जाना चाहती है एक दिन के लिए.” रेवा तपाक के बोल उठी नहीं.....नहीं मुझे नहीं जाना है मैं चली गई तो खाना मे कोई स्वाद नहीं रहेगा। सरजू को कुछ समझ नहीं आया कि कल रात मायके जाने के लिए मुझसे कह रही थी। अचानक से इसे क्या हो गया सरजू सोचने लगा की इन औरतों को समझना मर्दों के बस के परे हैं रेवा की सास रेवा के सिर पर हाथ फेरकर रही थी। और सरजू एक टक लगा कर रेवा और अपनी मां को देखता।