चमचे
चमचे
जूठन में पड़े चमचे आपस में बात कर रहे थे, ”यार! ग़जब हाल है किसी को हमारे बिना काम ही नहीं चलता.... खाना, नाश्ता,चाय, कॉफ़ी हर जगह लोग बड़े प्यार से हमें होठों से लगाते हैं। और हम सभी के ओठों को छू कर आनंद विभोर हो जाते ...आखिर, इतना गुदगुदाता स्पर्श जो मिलता है।
पर, क्या कहूँ ,आजकल के लोग बेहद मतलबी हैं, जैसे ही मन भर जाता, निर्दयी होकर, हमें इस तरह पटक देते जैसे, कभी कोई हमसे मतलब ही नहीं रहा हो, जहन्नुम में जाओ... अब, सड़ो-मरो !”
लावारिस लाश की तरह कभी कुत्ते चाटते, तो कभी मेरे ऊपर दर्जनों मक्खियाँ भनभनाती !
जूठन में पड़े थालीयों को चमचे की बात सुनकर रहा नहीं गया, एक साथ सभी कराहते हुए बोला , “या...र, हमलोग दस सालों से इसी दंश को झेल रहें हैं और तुमलोग ,बस एक ही महीने में तंग हो गये ! ”
इन बातों की भनक लगते ही, पास में टेबल पर खा रहे मंत्री जी के प्लेट में पड़े चमचों में एकाएक हड़कंप मच गई, सभी चमचे सावधान होकर... मंत्रीजी के मुंह को एकटक निहारने लगे।