किताबों का शौक
किताबों का शौक
हम मोबाइल से इस प्रकार से जुड़े हुए हैं कि पिछले जमाने में वह किताबों को कितने शौक से पढ़ते थे।
चंपक, चाचा चौधरी बच्चो की पसन्द हुआ करती थी। प्रेमचन्द जो आज भी स्कूलों की पुस्तक मे देख लेते हैं। आज भी हमारे भारत देश में पुस्तकालय कम और मोबाइल की दुकानें ज्यादा होगी। रात को जब नींद न आए तो किताबें पढ़ लिया करते हैं लेकिन अब किताबें बस नाम के लिए है।
माना कि किताबों का काम यह मोबाइल कर रहा है पर यह आँखों को खराब कर रहा हैं। कोई पढ़ने का शौक इसलिए नहीं रखता क्योकि इंसान अब व्यस्त हो चुका है। जैसे-जैसे समय बदलेगा पढ़ने का शौक भी खत्म होता जाएगा। एक सकारात्मक किताब आपके दिमाग में छाप छोड़ सकती है, एक नकरात्मक किताब आपकी सोच खराब कर सकती है। अंग्रेजी ने अपनी छाप हर जगह छोड़ी है पर हिन्दी से हमारी संस्कृति जुड़ी है। जो किताब पढ़ता हैं वह ज्ञान प्राप्त करता है।