अंधेर नगरी
अंधेर नगरी
"हाँ ! प्रकाश इस वीक तुम क्या स्टोरी दे रहे हो।
काफी समय हो गया कुछ धमाकेदार खबर नहीं लाए हो।"
"जी सर, इस बार तो बहुत बढ़िया स्टोरी हाथ लगी है।"
"और वो क्या है ?"
"सर, वो जीवन लाइफ लाइन है न।"
"कौनसा वो सीटी हॉस्पीटल के पास वाला ?"
"जी वही ! शहर में लगभग कई डाॅक्टर्स से बढ़िया कान्टेक्ट किया हुआ है उसने। एक तरह से मोनोपोली है उसकी। कोई भी डाॅक्टर हो किसी भी तरह की जाँच हो जीवन लाइफ लाइन वाले के पास ही भेजते है। चाहे ब्लड टेस्ट, यूरीन टेस्ट हो एक्स रे या फिर सीटी स्केन। अगर पेसेंट किसी और जगह से जाँच करवा ले तो डाॅक्टर उसमें कोई न कोई खोट निकाल कर वापस जीवन लाइफ लाइन वाले के पास भेज देते हैं। बहुत कम ही डाॅक्टर्स होते हैं जो बेचारे मरीज पर तरस खाते हैं।"
"पर 'जीवन' वाले के पास अत्याधुनिक मशीनें है, शायद इसीलिए डॉक्टर्स उस पर भरोसा करते हैं।"
"नहीं सर, बल्कि वो औरों से ज्यादा कमीशन देता है इसलिए डाॅक्टर्स का चहेता है।
यहाँ तक कि बहुत से सरकारी डाॅक्टर्स भी पेसेंट को किसी न किसी बहाने से वहां जाँच के लिए भेज देते हैं। जबकि हमारे शहर में राज्य का सबसे बडा सरकारी अस्पताल है और उसमें लगभग सारी सुविधाए भी है।
सारा खेल कमीशन का ही है। बेचारा मरीज 'मरता क्या न करता' , वहीं से सारे टेस्ट करवाता है जहाँ से डाॅक्टर साहब चाहते हैं।
सर, इस स्टोरी को लगातार एक वीक तक चलाएंगे। रोज इस पर बढ़िया बेक टू बेक फोलो अप जा सकता है।"
"स्टोरी तो बढ़िया है। सब लाइन में लग जाएंगे। रीडर्स भी खूब पसंद करेंगे।
ठीक है कल से ही लगा दो इस स्टोरी को।
मेरे खयाल से पेज टू पर दे देते हैं इसे, तुम्हारी बाईलाइन के साथ। इसका फीडबैक भी लेते रहना।"
"बढिया सर ! फिर मैं आज से ही लग जाता हूँ इस स्टोरी पर।"
अगले दिन से पाँच दिन तक धमाकेदार कवरेज ने जीवन लाइफ लाइन की नींद उड़ा दी।
छटे दिन प्रकाश को फिर सम्पादक जी ने बुलाया और स्टोरी खत्म करने को कहाँ।
"लेकिन सर अभी भी हालात ज्यादा नहीं बदले हैं। जीवन लाइफ लाइन की मोनोपोली तो अभी भी हो रही है। ऐसे में बीच में खबर वापस लेंगे तो हमारी जग हँसाई होगी।"
"तो किसने कहा प्रकाश कि सच बताओं। कल की स्टोरी में लिख देना कि सच की जीत हुई, सभी डाॅक्टर्स ने माना कि मरीज अपनी मर्जी से कही भी जाँच करवा सकता है।
हम कल अपनी जीत सेलिब्रेट करने चलते हैं। शहर नया बार खुला है।"
"ये भी सही है सर, फिर कल चलते हैं नए बार में ।"
दूसरे दिन बढिया पार्टी हुई। सम्पादक जी भी थे, प्रकाश भी और पार्टी के स्पाॅन्शर भी।
एक महीने बाद उसी अखबार के फ्रंट पेज पर जीवन लाइफ लाइन का फुल पेज विज्ञापन छपा।