पानी के दो बूंद
पानी के दो बूंद
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जर्जर हाथ, उभरी हुई नस, और उनपे दो बूंद पानी। ऐसा प्रतीत होता है कि पानी जम चुका है। समझना मुश्किल था कि बूंद बारिश की थी या पसीने की। संभव था कि एक बूंद पसीने की तो दूसरी बारिश की।
अपनी मंज़िल पा दोनों वही ठहर गयी। उनका सफर कितना भिन्न। एक बादलों में छिप आसमान की सैर कर धरती पे आ गिरी। दूसरी पाताल से उभर, इंसानी शरीर की अंधेरी गलियारों में भटक, मनुष्य को ठंडक पहुंचाने के लिए हाथ पे अंकुरित हो गयी।