स्पंदन
स्पंदन
"नमस्ते आंटी जी !"
"नमस्ते बेटा !"
"मैं अंदर आ सकती हूँँ ?"
"हाँ क्यों नहीं, आओ। और बताओ, तुम सामने रहती हो ना ?आज कॉलेज नहीं गई ?"
"नहीं। आज छुट्टी थी तो सोचा आपसे मिल लूँ, वैसे अंकल तो अक्सर दिखते रहते हैं मुझे आते - जाते।"
"कौन आया है सुधा ?"
- कहते हुए अंकल कमरे में आते हैं और सामने लड़की को देख कर अंचभित हो जाते हैं।
"अंकल जी, आइये प्रणाम। आज आप लोगों से मैं खुद मिलने आ गई। आपको बहुत परेशानी होती है न, मुझे दूर से देखने में ? तो मैंने सोचा कि मैं खुद मिल आऊं।"
"क्या बोल रही हो ? मैं समझी नहीं ?"
"अरे ! आंटी जी आप अंकल जी से पूछिए न, मुझे देखकर इनके शरीर के अंगों में हलचल मच जाती हैं। स्पंदन होने लगता है और अपने शरीर के अंतरंग अंगों का प्रदर्शन करने को आतुर हो जाते हैं !" - वह दाँत चबाते हुए बोली,
"मैं यही देखने आई थी कि क्या यह ज़लील आदमी अपनी बेटी के सामने भी पैंट में हाथ डाले रहता है !"
"क्या बकवास कर रही हो ! दिमाग ठिकाने है ? सुधा, यह बकवास कर रही है !"
"सबूत है मेरे पास ! मेरे मोबाइल में दिखाऊं ? पहले सोचा था कि पुलिस को दे दूँ लेकिन याद आ गया कि तेरी बेटी तुझ पर अभिमान करती है, उसका क्या होगा ? वैसे तुझ जैसे ज़लील आदमी पर भरोसा नहीं। बेटी को भी न छोड़े !
आंटी जी, इतना ही कहना था मुझे। चलती हूँ...।"
"रुको अभी !"
और उसने एक ज़ोरदार चाँटा अपने पति के गाल पर मारा।
"देखो इस लड़की की तरफ ! तुम्हारी बेटी से थोड़ी ही बड़ी है। शर्म है तो आँखें मत मिलाना अपनी बच्ची से ! समाज में बाप रहोगे उसके लेकिन घर में नहीं !
बेटा, मुझे माफ करना क्योंकि मुझे नहीं मालूम था इसकी जलालत का।"
"आप ख़ुद को दोष नहीं दो आंटी। मैं यहाँँ से जा रही हूँ कमरा खाली करके, ऐसे लोगों के आसपास नहीं रह सकती मैं। चलती हूँ...।"
"शरीर में स्पंदन न जाने कब होने लगे। तुम्हारा जाना ही ठीक है...।"