मेहनत की रोटी
मेहनत की रोटी
“देखो, देखो... वो भी हमारी तरह भिखमंगा ही लगता है पर देखो किस शान से न्यूज़पेपर पढ़ रहा है !”
चलो मित्रो, चलते हैं उसके पास।” सभी भिखमंगे एक साथ उस लड़के के पास पहुँचे।
“तुम भीख मांगते हो पेट भरने के लिए या पेपर खरीद कर पढ़ने के लिए ?” एक ने लड़के से पूछा।
दूसरे ने मजाक उड़ाते हुए कहा, “अरे ! शौक़ीन है, भीख मांग कर अपना शौक पूरा कर रहा है। हा..हा..हा..।”
“हाँ.. पेट भरने के लिए कुछ तो करना पड़ता है न ? रोड़ पर आ गया हूँ। क्या करूँ ! प्राइवेट कम्पनी में नौकरी थी, छूट गई !
कंपनी के तीन हजार की तनख्वाह में ...क्या बचा पाता है !
बड़ा घोटाला हुआ...कम्पनी मालिक गिरफ्तार हो गया। बाद में कम्पनी भी बंद हो गयी। हाँ ...मालिक पैसे वाला है, देर- सबेर हवालात से निकल ही जाएगा।
किस्मत तो मेरी फूटी जो फिर से रोड़ पर आ गया ! अनाथ का ठौर कहाँ ! आजन्म रोड़ से ही गहरा नाता रहा मेरा। यहीं खेल-कूद कर बड़ा हुआ हूँ। हम गरीबन के पेट पर तो लात पर गई !"
लड़के ने हँसते हुए जवाब दिया।
”ठीक किया, जो इधर आ गया। यह धंधा आजकल बहुत फल-फूल रहा है। बिना हाथ-पैर हिलाए-डुलाए आराम से पेट भर जाता है। न आगे नाथ है .. न पीछे पगहा, फिर तुम्हें चिंता किस बात की ? हमारी तरह पड़े रहो। हम दिन में भीख मांगते हैं और रात में अपनी मर्जी का जीते हैं।” कुछ भिखमंगे लड़के के पास सटकर बोले।
“सुनो ... भीख माँग कर खाना अच्छी बात नहीं है, भीख देते वक्त लोग हिकारत भरी नजर से घूरते हैं।”
"अच्छा... बता, तू रोड़ के किनारे बैठकर, फिर क्या करते रहता है ?" एक भिखमंगे ने उत्सुकता से पूछा।
"दिन में बैठकर यहाँ पढ़ाई करता हूँ और शाम से ट्यूशन पढ़ाता हूँ।" पेपर समेटते हुए लड़का जोर से हँसने लगा।
"अरे... तू हँसता बहुत है।" एक साथ कई आवाजें ...
"जिंदगी का इम्तिहान है, हँस कर देने में ही भला है।" कहते हुए लड़का वहाँ से चल पड़ा।