एक चोर की जनहित याचिका
एक चोर की जनहित याचिका
मीलॉर्ड,
मैं भारत का नागरिक हूँ, भूमिहीन हूँ किन्तु मेरे पास आधार कार्ड है। 9 किमी दूर वाले ग्रामीण बैंक में मेरा ‘जन धन खाता‘ भी है जिसमें 15000 की राशि जमा है, जो गाढ़े वक्त (हाजत से फरारी के लिये रिश्वत या जमानत के लिए अदालती खर्च) पर अनिवार्य आकस्मिकता के लिए बचा कर रखी है।
‘चोरी‘ ही मेरा खानदानी व्यवसाय है, इसके अतिरिक्त मैंने कुछ नहीं सीखा है। इसी के सहारे मैं अपने पूरे परिवार का भरण पोषण करता हूँ और अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करता हूँ।
जब-कभी वोट पड़ता है, मैं उस पार्टी को वोट करता आया हूँ जिसकी उस समय सरकार होती है। मैं पक्का देशभक्त हूँ और जब-जब देश पर संकट आया है जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य निभाते हुए बड़ी चोरियां कीं और चोरी की पूरी रकम राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दान करता रहा हूँ। प्रत्येक मंगलवार को नियम से किसी हनुमान मंदिर में 5 रुपये चढ़ाता हूँ। मेरे ये कृत्य इस बात को रेखांकित करते हैं कि मैं देशभक्त भी हूँ और धार्मिक भी।
मैं कुछ और घोषणा करना आवश्यक समझता हूँ- मैं चोरी करता हूँ, क्योंकि यह मेरा व्यवसाय है किन्तु कभी भी बिना टिकट रेल यात्रा नहीं की। बाजार से अपने परिवार के लिए कुछ भी खरीदता हूँ तो उसका भुगतान करता हूँ, दुकानदार से पर्ची भी लेता हूँ ताकि मेरी चोरी के पैसों से खरीदी जाने वाली चीजों पर सरकारी टैक्स की चोरी न हो और हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
मैं देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूत करना चाहता हूँ, पैन कार्ड भी है, रिटर्न भी दाखिल होती है। पर मेरे वकील साहब कहते हैं कि आमदनी थोड़ी और बढ़ाइये इतनी आमदनी पर टैक्स नहीं बनता है।
मैं हृदय से चाहता हूँ कि मेरी आमदनी बढ़े और कम से कम से कम इतनी कि कुछ इनकम टैक्स बने जिसे जमा कराकर राष्ट्रीय अर्थतंत्र का हिस्सा बन ‘भारत माता की जय‘ बोलने लायक हो सकूँ।
किन्तु ऐसा कर पाने में कई प्रकार की कठिनाई हो रही है जिससे मैं अपने व्यवसाय को आगे नहीं बढ़ा पा रहा हूँ। लोग कुत्ते पालने लगे हैं, सिक्यूरिटी गार्ड रखने लगे हैं। ये सब अपने काम करते हैं। वे भौंकते हैं और ये सीटी बजाते हैं। मैं यह नहीं चाहता कि ये न रहें। शहर में अपने वृद्ध माता-पिता को भले न पाल पायें, मेरे कारण ही सही, इन मूक प्राणियों को दूध, बिस्कुट तो मिल जाता है। माता मिता का क्या- गाँव में पड़े रहेंगे या फिर वृद्धाश्रमों की कमी है क्या ? और देश में सिक्योरिटी गार्ड का ही एक पेशा है जिसमें नौकरी आसानी से न सही, थोड़ी ही मुश्किल से मिल जाती है। ये काम पर भी रहें, सीटियाँ भी बजायें पर हमारे कर्त्तव्य पालन में बाधा न पहुँचायें। किन्तु इन्हें भ्रमित कर ध्यान बंटाने में कठिनाई होती है।
यहाँ यह भी उल्लेख करना आवश्यक है कि इस आवेदन में संविधान के कुछ मौलिक अधिकारों की विवेचना आवश्यक है अतः मेरे आवेदन का निपटारा त्रिसदस्यी संविधान पीठ को पृष्ठांकित करने की आवश्यकता होगी, एकल पीठ शायद उपयुक्त न हो।
मी लॉर्ड,
मेरी कई समस्याएं हैं, बिन्दु वार इस प्रकार-
1. औरतों की आलमारियों में पति से छुपाये पैसे कपड़ों के नीचे, तहों में मिल जाते थे। लेकिन अब तो आलमारी के लॉकर में भी फिक्स डिपोजिट के सर्टिफिकेट मिलते हैं। अब मैं डाकू तो हूँ नहीं कि उनकी फिक्स्ड डिपॉजिट की रकम बैंक से उठा लाऊँ। डेबिट और क्रेडिट कार्ड भी मेरे किसी काम के नहीं।
2. पहले ब्लैक मनी भी लोग घर में रखते थे अब उसे भी बैंक लॉकरों में रखने लगे हैं। एक परिवार ने कई-कई एकाउंट खुलवा रखे हैं, पति का अलग, पत्नी का अलग, ज्वायंट एकाउंट भी, वह भी कई बैंको में। तो लॉकर भी कई.. ।
3. बच्चों के कमरे के गुल्लकों में सिक्के मिल जाते थे, पूरी गुल्लक उठा लाते थे तो हजार दो हजार निकल ही आता था। क्योंकि बच्चे जेब खर्च के बचे सिक्के इसी में डालते थे। लेकीन पेटीएम ने चेंज का झंझट खत्म कर दिया। पापा के एकाउंट से पेटीएम, पेटीएम से चॉकलेट और गोलगप्पे वालों के एकाउंट में तो..
सीसीटीवी, खैर इसके लिये तो सावधानी बरतता हूँ, कैमरे दिखें ना दिखें, गमछे लपेटता ही हूँ, जो बाद में गहनों की पोटली बनाने में सहायक होता है।
4. अब कोई भी साधारण ताले नहीं लगाता बड़ी कंपनियों के कई-कई लीवरों वाले ताले होते हैं जहाँ मास्टर की काफी नहीं होती, काटना पड़ता है, वक्त की बरवादी होती है।
समस्यायें और भी हैं जिन्हें अलग से रिज्वाइंडर में स्पष्ट किया जायेगा।
मैं भारत का नागरिक हूँ और इसलिए संविधान प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करने का अधिकारी हूँ।
जीवन रक्षा का अधिकार मुझे है। चोरी मेरा पेशा है जिसे कानूनी मान्यता नहीं है इसलिए अपराध है।
मेरा पेशा मेरे जीने के अधिकार में समाविष्ट है। मैं यहाँ उल्लेख करना चाहूँगा कि चौर कर्म का पेशा पुरातन है। हर युग में लोग इस व्यवसाय के सहारे हजारों वर्षों से अपना परिवार चलाते रहे हैं। किन्तु इसे हर युग में अपराध ही माना गया, जो आज के संदर्भ में न्यायेचित नहीं है। क्योंकि अब हमारी दकियानूसी सोच नहीं। हम पहले से अधिक उदार, न्यायप्रिय और मानवाधिकार की समझ रखने वाले हैं। तो बहुत से कृत्य जो पहले अपराध थे, जैसे वेश्यावृत्ति, अब लाइसेंस लेकर चलायी जा सकती है और वेश्याएं ‘सेक्स वर्कर‘ बन धरल्ले से अपना व्यवसाय कर रही हैं, लिव इन रिलेशनशिप, समलैंगिकता और अब तो एडल्ट्री भी ‘अपराध‘ से बाहर हैं। साथ ही जो पहले अपराध नहीं थे जैसे, सती प्रथा, बाल विवाह इत्यादि अब अपराध हैं।
विचारण आवश्यक है कि चोरी अपराध है या नहीं ?
मी लॉर्ड,
मैं यह घोषणा कर चुका हूँ कि मैं चोर हूँ। घरों में चुपके से जाता हूँ, कैश और जेबर केवल चुराता हूँ, टीवी, घड़ी मोबाइल छूता भी नहीं। नासमझी में एक महंगा मोबाइल उठा लिया था। एक व्यक्ति को केवल दो हजार में बेच दिया, लेकिन ईएमईआई नंबर से वह व्यक्ति पकड़ा गया, पर उसने मेरा नाम नहीं लिया क्योंकि वह व्यायसायिक नुकसान उठाना नहीं चाहता था। वह चोर नहीं था सफेद कपड़े वाला था, समाज में पहचान थी, बड़े लोगों के बीच उठना बैठना था चोरों से चोरी के माल खरीदता था। वह कभी भी पकड़ में नहीं आता अगर वह मोबाइल किसी रसूखदार का न होता तो। समाज में प्रतीष्ठित में गिनती होती थी। राजनैतिक संरक्षण था क्योंकि अपनी विरादरी के वोटों का ठेकेदार भी था। लेकिन मेरा नाम नहीं लेने का कारण यह नहीं था कि उसे मुझ पर दया आ गयी हो, बल्कि यह कि मेरी चोरी की बदौलत ही उसका सारा संसार था।
लेकिन कभी तो आ जाता है ऊँट भी पहाड़ के नीचे। इस ऊँट को आज ही आना था। हुआ यह कि राजनैतिक धौंस से युवा थानेदार क्रोधित हो गया और उसकी जम कर पिटाई होने लगी। पिटाई मेरे सामने हो रही थी। अपनी पिटाई झेलने का तो अभ्यस्त हूँ बाजाप्ता ट्रेनिंग ले रखी है, लेकिन उसकी पिटाई मुझ से देखी नहीं गयी। मैं ने तुरंत अपना जुर्म कबूल लिया। मेरी जरा भी पिटाई नहीं हुई लेकिन उसकी जमानत हो गयी। मेरी पिटाई इसलिए नहीं हुई क्योंकि पूरा थाना मुझे जानता था कि मैं क्या हूँ। मुझे चाय भी पिलाई गयी क्योंकि उन्हें भरोसा था कि उनकी ’चाय-पानी’ का इन्तजाम तो मैं कर ही दूँगा।
मी लॉर्ड,
मैं अकेला चोर नहीं हूँ। लोग दिल चुरा लेते हैं, नज़रें चुरा लेते हैं, भावनायें चुरा लेते हैं, विचार चुरा लेते हैं, सपने चुरा लेते हैं, गर्लफ्रेंड - बॉय फ्रेंड चुरा लेते हैं, नींद चुरा लेते हैं, चैन चुरा लेते हैं, सामाजिक सौहार्द्र चुरा लेते हैं, राशन चुरा लेते हैं, मजदूरी चुरा लेते हैं, नारे चुरा लेते हैं, जुमले चुरा लेते हैं, आधार के डाटा चुरा लेते हैं, वोटर लिस्ट से नाम चुरा लेते हैं,दूसरे का सरनेम चुरा लेते हैं, कविता चुरा लेते हैं, फेसबुक के पोस्ट चुरा लेते हैं। पर इनमें से किसी को चोर नहीं कहते।
कृष्ण ने कितनी चोरियाँ की, पर माखन चोरी में ही उनका नाम आया और उसे भी बस ‘माखन चोर’ नाम देकर लोग भाव विभोर हो गये। पर कृष्ण ने क्या-क्या नहीं चुराया..? जन्म लिया तभी देवकी को छोड़ माँ यशोदा की गोद चुरा ली। कितनों के दिल चुराए, पूतना के विष चुरा लिये, गोपियों के वस्त्र तक नहीं छोड़े। मैं दावा नहीं करता लेकिन कहा तो यह भी जाता है कि गोपियों के चुराये वस्त्र ही द्रौपदी को उपलब्ध कराये गये थे क्योंकि दुर्याेधन ने सुना है- हस्तिनापुर की सारी कपड़े की दुकानें बंद करवा दी थी। युद्ध शुरू होने से पहले आये दुर्याेधन से नज़रें चुरालीं और अर्जुन को साथ देने का वचन दे दिया। गीता गायी तो सभी पाण्डवों से नज़रें चुरा कर केवल अर्जुन के कान में, वह भी संस्कृत में ताकि और कोई सुन भी ले तो समझ न पाये।
मी लॉर्ड,
मेरा उद्देश्य याचिका की दिशा मोड़कर धर्म-अधर्म की व्याख्या को संदर्भित करने की नहीं है। मेरा आशय यह है कि ऊपर उल्लिखित चोरियों को अलग-अलग नाम देकर महिमा मंडित किया गया। किसी को आशिक, स्मार्ट, चतुर, राजनीतिक, हैकर और, लीलाधरी, धर्म रक्षक जैसे नाम दिये गये लेकिन मुझे लोग अपमान जनक ध्वनि से ‘चोर/चोरवा’ जैसे नाम से संबोधित करते हैं, जब कि मैं किसी के भोजन का हिस्सा नहीं चुराता, किसी के वस्त्र चुरा कर उसे नग्न करने की कोई मंशा नहीं होती, न ही मतदाता सूची के नाम चुराकर लोकतंत्र की राह में रोड़े अंटकाता। बस नगद और गहनों से कुछ हिस्सा अपने परिवार के लिये लेता हूँ और बक्सों, पेटियों में रखे बेकार धन को वापस देश की अर्थव्यवस्था में डालने का काम करता हूँ।
मी लॉर्ड, विचार करें कि किसी ने हजार रुपये बक्से में रखे तो उससे हमारी अर्थव्यवस्था ठहर जाती है। उस व्यक्ति को भी कोई लाभ नहीं मिलता। वही हजार रुपये मैं चुरा कर जब अपनी बाइक में तेल डलवाने में 100 रुपये खर्च करता हूँ तो केंद्र और राज्य सरकारों को एक्साइज और वैट में 50 रुपये से ज्यादा मिल जाते हैं जिससे एक मनरेगा मजदूर के एक दिन की मजदूरी का 1/5 भाग मिल जाता है। अगर 200 रुपये की 18 प्रतिषत जीएसटी वाली कोई चीज खरीदता हूँ तो सरकार को 36 रु0 और मिल जाते हैं। मेरे पास 700 रुपये अभी बचे ही हैं। अगर मैं इन्हें भी खर्च कर दूँ तो बड़ी राशि सरकार को मिलेगी। इन पैसों को सरकार विकास में लगायेगी और राष्ट्र का हित होगा।
उक्त विवेचना से स्पष्ट है कि विकास में मेरी भी सहभागिता है।
मी लॉर्ड,
हमारे देश में पैसे, गहने चुराने के कई तरीके हैं। कुछ लोग हाथों की लकीरें, तो कुछ माथे की लकीरों के सहारे, कुछ तंत्र मंत्र काला जादू के सहारे, कुछ झोली में हड्डी का टुकड़ा लिए ताबीज़ बना कर, कुछ लोग हाथ की सफाई को जादू बता कर और जादू को चमत्कार बताकर, बाबागिरी कर भी लोगों के पैसे उनकी जानकारी में आराम से चुरा जाते हैं, कोई इन्हें चोर नहीं कहता। तांत्रिकों-मांत्रिको के दरवार में तो संतरी से लेकर मंत्री तक की हाज़िरी लगती है जो इनके क्रिया कलापों को महिमा मंडित करते हैं।
इन्हें इनकी तकनीक सिखाने के कई संस्थान हैं कुछ लाइसेंसी, कुछ यूँ ही एनजीओ के नाम पर।
‘स्किल इंडिया‘ के तहत ‘चोरी’ का पाठ्यक्रम शुरू हो तो तकनीकी रूप से मुझ जैसे कितने लोग लाभान्वित हो सकते हैं..।
और हमारे देश की तकनीक विश्व प्रसिद्ध है। आलू से सोना बन सकता है, नाले में पाइप डाल कर गैस निकाली जा सकती है, तो क्या ऐसी तकनीक नहीं विकसित हो सकती कि आलमारी के ऊपर कोई चोर थपकी दे तो उसे ज्ञात हो जाय कि आलमारी में दो-दो हजार के नोट हैं या नहीं और हैं तो कितने ? ताकि वही आलमारी खोलनी पड़े जिसमें ऐसा कुछ हो और बाकी आलमारियाँ इन्टैक्ट छोड़ दी जायें। अब तक होता यह है कि 10 आलमारी तोड़ो तो किसी एक में 10-20 हज़ार मिलते हैं, और चोर की बदनामी लाख, दो लाख और दस लाख की चोरी की हो जाती है। इन्श्योरेंस वालों से बड़ा क्लेम लेने के लिये रिश्तेदारों तक के पैसों को ‘उन्हीं आलमारी में थे’ बता दिया जाता है। अगर मेरे पास यह तकनीक हो, तो इंश्योरेंस कंपनियाँ भी घाटे से बच सकती हैं।
क्या ऐसी तकनीक नहीं बनायी जा सकती कि कोई चोर केवल आलमारी को स्पर्श करे तो सारे नोट बिना आलमारी खोले बाहर आ जायें।
मी लॉर्ड,
अंत में अपनी याचिका स्वीकार करने की प्रार्थना के साथ निम्नलिखित तोष (रिलीफ) प्रदान करने के लिए संबंधित विभागों को अनुदेश देने और ऐसे आदेश करने की प्रार्थना करता हूँ, जैसा अदालत उपयुक्त समझे।
यह उल्लेख किया जा चुका है कि मेरी याचिका देश की अर्थव्यवस्था में चोर की भूमिका के साथ ही चोर की जीवन रक्षा और काम के अधिकार से जुड़ा मामला है अतः अदालत द्वारा कम से कम त्रिसदस्यी पीठ को ही इसे पृष्ठांकित किया जायेगा ऐसा मेरा विश्वास है।
अपेक्षित तोष की विवरणी - -
1. मुझे ‘चोर /चोरवा‘ से संबोधित नहीं कर ‘गुप्त आर्थिक प्रवाहक‘ या अंग्रेजी में ‘एस बी ई’ (सिक्रेट बूस्टर ऑफ इकोनोमी) जैसे गरिमामय नाम से पुकारने की अधिसूचना निर्गत करने का आदेश दिया जाय।
2. हाल में जैसे समलैंगिकता और एडल्ट्री को अपराध से बाहर किया गया है, चोरी को भी अपराध की परिभाषा से बाहर कर ‘गुप्त आर्थिक गतिविधि‘ के रूप में पहचान दिलाई जाय।
3. मुझे तकनीकी रूप से सक्षम बनाने हैतु डिजिटल इण्डिया मिशन को एक ‘एप’ बनाने का निदेश दिया जाय जिसके सॉफ्ट वेयर में उच्च कोटि की प्रोग्रामिंग हो जो मुझे मोहल्ले का लोकेशन डालते ही सूचना उपलब्ध करा दे कि चोरी के लिये कौन सा घर सबसे अधिक उपयुक्त रहेगा, कैश और औरनामेंट की एक्जैक्ट पोजिशन क्या है, घर में लगे सीसीटीवी की स्थिति क्या है, ये कैमरे इन्फ्रा रेड इमेजिंग वाले हैं या साधारण- बस चोरों को डराने वाले, डीवीआर में रेकर्डिंग स्टोर हो रही है या नहीं, हो रही है तो इसे डिएक्टिव करने के लिए पावर को कहाँ से और कैसे डिसकनेक्ट किया जा सकता है।
उसी ऐप में मल्टी मीडिया भी रहे जो गृह स्वामी, कुत्तों और सुरक्षा गार्ड को भरमाने के लिए तरह तरह की आवाज़ें और डरावने लेजर इमेज को जेनरेट करे। जूतों की तेज आवाज निकले ‘धप-घप’ और उनके ध्यान मेरी तरफ न होकर आवाज की तरफ हो जाये।
समय-समय पर ऐप को अपडेट करने के लिए सेटेलाईट से ऑटो अपडेशन की सुविधा भी हो।
4. ऐप डिजायन करते समय यह ध्यान रखा जाय कि मुझे ऐप में बेनामी संपत्ति के डीड, सभी बैंको के डिटेल्स, जाली पासपोर्ट और अन्य ऐसे कागजात जो मेरे किसी काम के नहीं लेकिन सेबी, ईडी, और इनकम टैक्स के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं, को अंधेरे में भी फुल पिक्सल में स्कैन कर सकूँ।
5. मेरे ऐप को सभी आर्थिक अपराध निरोधी विभाग के कंप्यूटर हार्ड डिस्क में सीधे स्टोर करने की सुविधा रहनी चाहिए।
6. सत्तर वर्ष की आयु के बाद मेरे जनधन खाता में 10 हजार की पेंशन उपलब्ध करायी जाय क्योंकि शारीरिक रूप से अशक्त होने पर भी मैं भीख नहीं मांग सकता।
7. इसके अतिरिक्त अदालत मेरे व्यवसाय की बृद्धि में सहायक हो सकने वाले अन्य ऐसे आदेश भी दे कि जैसा अदालत उचित समझे।
प्रार्थी इस महान कृपा के लिए अदालत का ऋणी रहेगा।
हस्ताक्षर- चोर