दोहरा मापदंड
दोहरा मापदंड
ये कहानी है एक काल्पनिक युवक की, जिसकी मैंने कल्पना की है पर यह युवक वास्तविकता से परे नही है, सूरज की किरणें जब खिलते हुए पुष्प की तरह चारो दिशाओ में फैलती है तब यह युवक उन किरणों से रूबरू होने, उनके प्राकृतिक सौन्दर्य को महसूस करने की बजाय नींद की आगोश में चादर तानकर सोता रहता है। चलिए इस काल्पनिक युवक को कोई नाम दे देते हैं, हाँँ, इसका नाम है अवनीश।
अवनीश भारत के सबसे अच्छे इंस्टिट्यूट आई आई टी दिल्ली का एक छात्र है। स्वतन्त्र विचारधारा वाला एक युवक जिसे इस बात का गुरूर है की वो सबसे अच्छे इंस्टिट्यूट में पढता है आम लोगो से ज़्यादा होशियार है और समझदार भी।
जब लोग तरक्की की सीढियों पर चढ़ने लगते है तो पीछे छूट गयी सीढ़ी की तरफ पलटकर कभी देखते तक नही, एक वक्त था जब उसी सीढ़ी ने इन्हें सहारा दिया था।
हाँँ, मै ये बात इसलिए बताना चाह रहा हूँ क्योंकि जब लोग हायर एजुकेशन की तरफ बढ़ते है तो वो बचपन में बताई गयी बातो को भूल जाते है।
बचपन में हमे सिखाया जाता है गाली देना गलत बात है पर आज इस आधुनिक दौर में ज्यादातर पढ़े लिखे लोगो की जुबान पर गाली होती है, अवनीश की तो हर बात गाली से ही शुरू होती है। बचपन में सिखाया जाता है जीवो पर दया करो और आज इस आधुनिक युग में अधिकतर लोग प्रोटीन का हवाला देते हुए किसी रेस्टोरेंट में चिकेन मटन खाते नजर आते है, अवनीश हर हफ्ते जाता है रेस्टोरेंट में, किसी जीव के पंखो को नोंचकर उसके तड़पते जिस्म से निकले प्रोटीन, विटामिन और तमाम इन्सान के शरीर के लिए आवश्यक तत्वों को खाना अवनीश को बहुत ही ज्यादा पसंद और मै, मै तो अवनीश से एकदम अलग हूँ, जिस प्रकार नदी के किनारे कभी मिलते नही है, जिस प्रकार धरती और अम्बर का मिलन काल्पनिक है और जिस प्रकार आदमी के खुद के नयन एक दूसरे से कभी मिलते नही अलग - अलग रहते हैं, वैसे ही मेरे और अवनीश के विचार हैं जो कभी मिल नही सकते। एक तरफ जहाँँ मै एक कोने में बैठा अपने विचारो से लड़ता हुआ खुद को बैचैन और एकांत पाता हूँ वहीं अवनीश लोगो से घिरा रहता है, उसकी बाते कमाल की होती है और लोग उसकी बातो से प्रभावित भी होते है।
हुआ यूं कि एक दिन लड़के लड़कियों की मण्डली बैठी हुई थी और अवनीश बोल रहा था,
"यार सच में आज लड़कियों की दशा बड़ी ख़राब है जहाँँ देखो छेड़खानी, रेप, लड़कियों की कोई इज़्ज़त ही नही है। मनोरंजन का सामान समझ लिया गया है लड़कियों को !"
और फिर उसके मुंंह से निकली माँ की गाली। लोगो ने तालियाँँ बजाई, सबकी नज़र में अवनीश की इज़्ज़त बढ़ गयी,
क्या लड़का है ! कितना अच्छा सोचता है !
और मै,
मै फिर से लड़ रहा था अपने विचारो से कि आखिर माँ की गाली देने वाला अवनीश कैसे लड़कियों की इज़्ज़त की बात कर सकता है ! आखिर ये कैसा मुखौटा है और कैसे लोग हैं जो ताली बजाकर वाहवाही तो दे रहे पर कोई ये नही पूछता है कि माँ की गाली तो एक दाग है किसी महिला के सम्मान, प्रतिष्ठा और गौरव पर। यही तो हो रहा है न आजकल, नब्बे प्रतिशत लोग नारी के सम्मान की बात तो करते है पर खुद की जुबान से उसी सम्मान का बलात्कार कर डालते है माँ और बहन की गाली देकर।
मण्डली खत्म हुई और अवनीश जाने लगा। मैंने देखा अवनीश अकेला है तो मै उसके पास गया और बोला भाई क्या बात है नारी सम्मान की बात तो काफी बढ़िया तरीके से की,गाली देते हुए। अवनीश बोला,
"अबे कैसे न करता सामने पायल बैठी थी। एकदम माल लग रही थी। थोड़ा तो पोज़ बनाने का न रे। साली को इम्प्रेस कर दिया।देखा न तूने कैसे मुझे ही देख रही थी।"
अवनीश ने और भी बहुत सारी गन्दी और भद्दी बाते की पायल के बारे में, उसके अंगो के बारे में जो मै सावर्जनिक रूप से बता नही सकता पर सोचने वाली बात है न, आखिर पायल और पायल जैसे तमाम लड़कियों को अवनीश का यह चेहरा दिखता क्यों नही ? क्यों जब पायल के सामने और उसकी जैसे बैठी और लड़कियों के सामने अवनीश माँ बहन की गाली देकर महिला सम्मान की बात करता है तो उनमे से कोई एक लड़की खड़ी होकर कहती नही है, बंद करो अवनीश ये दोहरा मापदंड, दोहरे चरित्र के तुम बहुत ही घटिया और नीच इन्सान हो। एक तरफ तुम जिस माँ से जन्मे हो उस माँ शब्द को अपनी ज़ुबान से गाली दे रहे हो और दूसरी तरफ उसी ज़ुबान से महिला - सम्मान की बाते कर रहे हो ! धिक्कार है तुम पर और तुम्हारे इस घिनौने चेहरे पर !