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Mohabbat Fir Se

Mohabbat Fir Se

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“मै तुमसे शादी नही कर सकती | मेरी जरुरते अलग हैं, मुझे इस रिश्ते मे अब नही रहना है | हमे अलग हो जाना चाहिए | ”सीमा की इन बातो ने मुझे झकझोर दिया था | पिछ्ले 2 वर्षो से हमारे बीच प्यार का रिश्ता रहा था, पर अब रिश्ते मे दरार आ चुकी थी | उस दिन इन सब बातों के बाद भी मै अक्सर उसके घर जाता था ये सोचकर कि शायद सब ठीक हो जाए, उसे फोन करता था, मैसेज्स करता था पर फ़िर भी हालात सुधर नही रहे थे | और एक दिन मैने उसे किसी गैर के साथ देखा, मै समझ गया कि अब उसके जीवन मे शायद कोई और आ चुका है | इसके बाद मैने उसके घर जाना, उसे फोन या मैसेज्स करना एक दम से बन्द कर दिया | मै अब खुद को काम मे व्यस्त रखने लगा था | दिन भर तो मैं अपने दफ़्तर के कामो मे व्यस्त रह्ता था, पर रात मे अक्सर उसकी यादे मुझे सताती थी | वो प्यार जो पुरा न हो सका था मुझे रुलाता था | दिन गुजर कर हफ़्तो मे, हफ़्ते महीनो मे, महीने वर्षो मे तब्दील होते चले गए | 3 साल बीत चुके थे, अब घरवाले मेरी शादी की रट लगाए बैठे थे | इन चंद वर्षो मे मुझे अब तक कितनी ही लडकियो की तस्वीरे दिखाई गई थी, लेकिन हर बार मै कुछ न कुछ कर बात टाल दिया करता था, शायद इसलिए क्योकि अब भी मै अपनी पुरानी यादो से बाहर नही आया था | मा-बाप तो मा-बाप ही होते है कैसे भी कर के बच्चो को मना ही लेते है | मां- पापा के खुशी के लिए मैने इस बार शादी के लिए हामी भर दी | फ़िर क्या था, जिस लडकी को पूरे घरवालो ने पह्ले से पसन्द कर रखा था उसकी तस्वीर मेरे सामने रख दी | मैने तस्वीर को बेमन दो पल देखते हुए कहा, जैसा आप लोगो को ठीक लगे मुझे मंजूर है | पूरे घरवालो की खुशी का ठिकाना न था, आखिरकार इतनी मुद्दत के बाद उन्होने मुझसे हाँ कहलावाया था | मुझे लडकी के बारे मे कोई खास जानकारी नही थी, सिवाय इसके कि वो मधुपूर के एक मध्य वर्ग से ताल्लुक रखती थी, उसके पिता एक कपडे का स्टोर चलाते थे और मां एक हाउस वाईफ़ थी |

हम सहपरिवार मधुपूर उनके घर पहुचे रिश्ते की बात आगे बढाने के लिए | वहा पहुचने पर हमारा स्वागत अच्छे से किया गया | परिवार वालो के हाव भाव देख लग रहा था जैसे सारे एक दूसरे को पह्ले से जानते हो | कुछ देर बाद लडकी आई हाथ मे चाए के प्यालो और नाश्ते से सजी ट्रे के साथ | मैने एक नजर उठा कर उसके तरफ़ देखा पर ज्यादा तवज्जो न देते हुए सामान्य हो गया | लडकी के पिता ने मुझे चाए के तरफ़ इशारा किया | चाए के चुसकियो के साथ वो मुझसे बाते करने लगे, मेरी पढाई, काम-काज, आदि से जुडे जानकारिया लेते गए और मै एक एक कर सरलता से सारे सवालो के जवाब देता गया | इधर लडकी के साथ भी शायद यही सिलसिला चल रहा था | फ़िर हमे कुछ वक्त बिताने के लिए एक दूसरे से बात करने के लिए अकेला छोडा गया | हम दोनो कुछ देर खामोश ही रहे, फ़िर थोडी खामोशी को तोडते हुए मैने कहा, मेरा नाम राजन है, मैने मेनेजमेन्ट की पढाई की है और आज मै एक निजी कंपनी मे प्रबंधक के रुप मे कार्यरत हू | कुछ सुझा नही तो मैने अपना ये छोटा सा परिचय देकर बात की शुरुआत की | वो नजरे झुकाए शर्माकर खामोश ही रही | जी आप का नाम? मैने थोडा हिचकिचाते हुए पूछा | “रोशनी” एक हल्के कोमल आवाज मे उसने जवाब दिया | आप कहाँ तक पढी हो? मैने पिछ्ले बार से थोडा कम झिझकते हुए पूछा | बदले मे जवाब आया, “मैने इसी साल बी.कोम का आखरी इम्तिहान दिया है और जल्द ही परिणाम निकल आएगे ” | इस बार उसने दो पल अपनी नजरे उठा कर मुझे देखते हुए कहा था | इस तरह जैसे तैसे हमारे बीच थोडी बहुत बाते हुई | हमे मालूम था कि हमे इसलिए मिलाया गया था ताकि हम अपने भविष्य का फ़ैसला कर सके | लेकिन मै तो अब भी अपने बीते कल मे उलझा सा था | यहाँ आना , शादी के लिए हाँ करना बस एक नियम सा प्रतीत हो रहा था जिसमे मेरी कोई खास रजामन्दी नही थी | कुछ देर मे ही सारी बाते तय हो गई, दोनो तरफ़ से रिश्ते को रज़ामन्दी दे दी गई | मेरे घरवाले पूरी तैयारी के साथ ही आए थे और आज ही मंगनी के शुभ कार्य को सम्पन्न कर लेना चाहते थे | शादी तो होनी ही थी क्या फ़र्क पडता अगर मंगनी आज हो रही थी, यही सोचकर मैने कोई न नुकुर नही किया | दोनो परिवार के मोज़ूदगी मे मंगनी हो गई | सारे लोग खुश थे खुशी के लद्दू एक दूसरे को खिला रहे थे और इधर मै खुद को एक बली के बकरे की तरह महसूस कर रहा था जो तीन महीने मे हलाल होने को था, क्योकि शादी की तारिख तीन महीने बाद की निकली थी | जाते जाते रोशनी के पिताजी ने हमे कुछ वक्त निकाल कर मधुपूर कुछ दिन छुट्टीयाँ बीताने का निवेदन किया, माँ-पापा को ठीक लगा और मेरी रज़ामंदी मांगे बिना उन्होने हाँ कर दी | और 2 दिन बाद मजबुरन मुझे दफ़्तर से हफ़्ते भर की छुट्टी लेनी पडी |

     2 दिन बाद, मै और मेरा परिवार छुट्टीयाँ मनाने मधुपूर पहुच चुका था | हमे वहां साथ ही रहना था | सारे लोग अपना-अपना प्रोग्राम बाध लेते थे | सुबह सुबह सेर पर जाते, आकर्षित मंदिरो के दर्शन कर आते, कभी झरनो की ओर घूम आते तो कभी फ़लो के बाग हो आते | मुझे और रोशनी को अक्सर अकेला कर दिया करते थे | अक्सर नाश्ते या खाने पर भी हमे एक दूसरे के आस- पास ही बिठाया जाता था | मै तो समझता ही था कि ये सब क्या करने की कोशिश मे लगे थे पर मै कर ही क्या सकता था | अब तक मै और रोशनी हल्की फ़ुल्की बाते तो करने लगे थे, पर अब भी मेरे मन मे उसके लिए कोई खास जगह नही बनी थी | 2-4 दिन तो ऐसे ही बीते | फ़िर अगले दिन सुबह रोश्नी के पिता ने मुझे और रोशनी को साथ मे घूम आने को कहा | उन्होने रोशनी से कहा, “ जाओ आज राजन को कही घूमा लाओ, अपना शहर दिखा आओ” | मेरे घर वालो ने भी हामी भरी | मै सोचा, 4 दिन मे इतनी जगह तो घूम ही चुका हूँ और क्या बाकी है भला |  खेर उनकी बात का पालन करते हुए रोशनी और मै उस दिन घूमने गए |

            हम पहले मंदिर की ओर गए रोशनी मुझे शिव जी के उस मंदिर पर ले गई जहां वो हर सोमवार दर्शन करने आती थी | कुछ देर वहां रुके फ़िर वहां से निकलकर एक तंग गली से गुजरते हुए बाजार की ओर चल रहे थे | बाजार की भीड देखने लायक थी, मानो किसी मेले मे आ गया था | रोशनी और मै उस भीड भाड वाले बाजार से होकर गुजर रहे थे | रोशनी ने मेरा हाथ थामा हुआ था, ताकि मै इस भीड मे ईधर-उध्रर ना हो जाऊ | उसकी पकड से मुझे उसके हथेली की कोमलता का एहसास हो रहा था | हम कहाँ जा रहे हैं? मैने उसकी तरफ़ देख कर पूछा | “चिंता मत करो मै आपको गुम नही होने दूंगी, आप को बहुत सारी अच्छी जगहो पर ले जाउंगी | पर फ़िल्हाल अपने स्कूल की ओर, क्योकि उसी रास्ते से हो कर बाकी जगहो मे जाना है” | रोशनी ने मुझे छेडते हुए शरारती अंदाज मे कहा | हम बाजार को पार कर रहे थे, बाजार मे सुनाई देने वाली सामान्य आवाजे जैसे आलू 20 रु किलो, प्याज 40 रु किलो, केले 60 रु दरजन आदि मेरे कानो मे दस्तक दे रही थी | चलते चलते 15-20 मिनट बाद हम एक शांत रास्ते पर आ पहुचे थे | आगे कुछ कदमो की दूरी पर मुझे एक स्कूल दिखाई दे रही थी | रोशनी ने उसी स्कूल की ओर इशारा करते हुए कहा, “ वो रही मेरी स्कूल” | ये कहकर उसके चेहरे मे एक हल्की मुस्कान छा गई | अच्छा.. यह है आपका स्कूल.. , मैने स्कूल कि ओर देखते हुए और थोडी सांस लेते हुए कहा | थोडी दूरी मे अब रोशनी का कोलेज भी था | इस बीच रोशनी मुझे अपने स्कूल और कोलेज के मजेदार किस्से सुनाती चल रही थी | अपनी सहेलियों के संग मिल कर किए गए शरारतो का ब्योरा देती और खिलखिला जाती | उसके किस्से सुन मै भी हंस देता | कुछ ही कदमो मे अब हम कोलेज तक पहुच चुके थे | रोश्नी कोलेज के ओर देखते हुए बोली, “ ये रहा मेरा कोलेज ” | मैने देखा कि कोलेज काफ़ी बडा था, हालाकि अंदर तो नही गया था पर बाहर से उसकी ऊंची मंजिले बडे होने का दावा कर रही थी | काफ़ी ऊँची मंजिले है.. मधुपूर जैसे छोटे शहर मे ऐसी कोलेज कि कल्पना करना मुश्किल है, मैने अपनी नजरे ऊचे इमारतो को निहारते हुए कहा | बदले मे रोश्नी ने धीमी दबी आवाज मे केवल “हाँ” कहा | मै रोशनी की तरफ़ मुडा तो मैने उसकी पलकों मे हल्की नमी देखी | मैने पूछा, अरे क्या हुआ? आप की आँखो मे आंसू क्यो ? इसपे वो धीमे और हल्के भारी आवाज मे बोली, “ मै अपने कोलेज को मिस करुंगी, आखिरी साल के परिणाम आने के बाद कोलेज से अलग हो जाना पडेगा ”| उसके चेहरे मे हल्की सी मायूसी छा गई | कोई बात नही सिर्फ़ पढाई ही खत्म हुई है न, रिश्ता थोडी टूटा है | कहलाओगी तो इसी कोलेज की न | ऐसा कहकर मैने उसकी मायूसी को दूर करने की कोशिश की |

 शाम हो चुकी थी | रोशनी आज पूरे दिन मुझे उन खास जगहो पर ले गई थी जो उसे बेहद पसंद थे | स्कूल, कोलेज, पार्क, सिनेमाघर, लवली रेस्ट्रो, जैसे खास खास जगहो पर घूमने के बाद अब हम उस रस्ते से गुजर रहे थे जहां रोशनी अक्सर अपनी सहेलियो के साथ पानीपुरी के ठेले पर पानीपुरीयाँ खाया करती थी | हम पैदल रास्ते मे बाते करते आ रहे थे कि फ़िर रोशनी ने मुझे सडक के किनारे लगे उसी पानीपुरी के ठेले की ओर इशारा करते हुए कहा, “ चलिए वहां उस ठेले के पास | वहां सबसे स्वादिष्ट गोलगप्पे मिलते हैं, आपने इससे पहले कभी इतने स्वादिष्ट गोलगप्पे नही खाये होंगे” | मै अब तक गोलगप्पे शब्द से परिचित नहीं था | मै तो पानीपुरी के नाम से ही जानता था शायद गोलगप्पा यहां का बोल चाल नाम था | रोशनी ने उस ठेले वाले से कहा, “ भईया जी , तीखा बनाईयो.. मेरा लेवल तो मालूम है न ??” | ठेलेवाले ने जी मडम कह कर हांमी भरी | मुझे रोशनी के आवाज मे लोकल गर्ल होने की झलक नज़र आ रही थी | मुझसे पूछे जाने पर मैने भी रोश्नी की बात को ही दोहरा दिया, जी मेरे लिए भी तीखा ही बनाईयो.. और मेरी नजर रोश्नी की नज़रो से दो पल टकरा गई | वैसे तो मै तीखा कम ही खाता था पर पता नही क्यो आज मुझे तीखे को चखने आ मन हो चला था | ठेलेवाला आलू-मसाला तैयार करने लगा और इधर रोशनी मुझे बताने लगी कि कैसे वो अक्सर इसी जगह गोलगप्पे खाने अपने सहेलियो के साथ आया करती थी, और कई दफ़ा ज्यादा से ज्यादा गोलगप्पे खाने की शर्त भी हुआ करती थी जिसमे जीत हमेशा रोशनी की ही होती थी | 2 मिनट मे आलू-मसाला तैयार हो चुका था और पानीपुरी वाले ने हमारे हाथो मे एक एक पत्ते की बनी कटोरी थमा दी | हमने गोलगप्पे खाना शुरु कर दिया | एक एक कर हम गोलगप्पे के स्वाद का आनंद ले रहे थे | सच मे काफ़ी स्वादिष्ट थे | इस बीच जब मेरी नजरे रोशनी पर गई तो मै थोडा ठहर सा गया | वो काफ़ी प्यारी लग रही थी पानीपुरी खाने के दौरान | वो जेसे ही पानीपुरी को अपने मूँ मे भरती उसके गाल फ़ुल जाते, आँखे स्वाद और तिखेपन को शाबाशी देते बडी हो जाती | उसकेचेहरे की ये अट्खेलिया मुझे अच्छी लग रही थी, ओर मै उसमे खोकर उसे देखे जा रहा था | पीली सूट, हाथो मे चमकीली चूडियाँ , कानो मे गोल गोल बडे झुमके, खुले लहराती ज़ुल्फ़े, गोरा मुखडा, कज़रारे नैन और पतले होठ ये सारी चीजे मै आज गौर कर रहा था | हल्की हवा तन को छूकर गूजर रही थी, उसकी जुल्फ़े उसके चेहरे पर हवा से भिखर जाती और वो पानीपुरी मूँ मे भर खाने की धुनकी के साथ अपने ऊंगलियो के ऊपरी हिस्से से ज़ुल्फ़ो को चेहरे से ह्टाने की कोशिश करती | उसके चेहरे की मासूमियत उसकी छोटी छोटी हरकते मुझे अपनी तरफ़ आकर्षित कर बैठी थी | रात होने को थी, अब हम घर की ओर लौट रहे थे | रास्ते भर रोशनी बाते करते आ रही थी | कल कहाँ जाना है, क्या करना है, क्या खाएगे सब कुछ वो मुझसे कहते चल रही थी, और मै बस उसकी कोमल आवाज़ मे लिपटे शब्दो को सुनता जा रहा था | मेरे मन मे रोशनी की छवि बनने लगी थी | थोडी मासूम, थोडी शर्मीली, थोडी नटखट | हम अब थोडे सहज हो गए थे | मालूम तो था ही कि कुछ दिनो मे शादी होनी है और फ़िर एक दूसरे के साथ पति पत्नी के रिश्ते मे बंध जाएँगे, पर इससे पहले कहीं न कहीं हम दोनो के बीच एक रिश्ता बन चुका था, दोस्ती का |  

  सात दिन बीत गए |  मधुपूर मे बिताए गए पल काफ़ी सुखद थे | अब मै और मेरा परिवार दिल्ली, अपने घर वापस आ चुका था | मेरी छुट्टीयाँ भी खत्म हो चुकी थी, और ओफ़िस जाना शुरू हो चुका था | मेरी समय सारणी मे कुछ हद तक बदलाव आ चुका था | अब ओफ़िस मे दो पल भी काम से फुरसत मिलती तो रोशनी के साथ बिताए लम्हें याद आ जाते और मेरे चेहरे पे हल्की मुस्कान आ जाती | दिन भर के काम के बाद शाम मे घर पहुंचता तो थक कर सीधे सोने को नही जाता बल्कि अब रात मे अक्सर रोशनी से फ़ोन पर बाते करता था | हम सोने से पहले फ़ोन पर लंबी बाते किया करते थे | बातो मे एक-दूसरे का हाल चाल पूछते, घर परिवार की खेर खबर लेते, दिन भर गुजारे गए लम्हो को बांटते | आलम ऐसा हो चुका था कि कभी फ़ोन न करती तो मै बेचैनी मेहसूस करता और जब बेचैनी हद पार कर जाती तो खुद ही फ़ोन कर देता | वक्त गुजर रहा था, शादी का दिन भी नजदीक आ रहा था | ऐसा नही था कि मुझे अपने गुज़रे कल की याद न आती थी, ऐसा नही था कि मै गुज़रे बुरे लम्हे और अधुरे प्यार को भूला पाया था पर ये ज़रूर था कि अब बीती यादे मुझे तकलिफ़ देना बंद कर रही थी, शायद इसलिए क्योकि अब मै तन्हा नही था |

शादी का दिन आ चुका था | आज मेरी रोशनी के साथ शादी थी | लोगो की भीड जमी हुई थी | सारे लोग खुश थे, नाच गा रहे थे, खुशी से झूम रहे थे  | पूरे रीति रिवाज के साथ एक एक कार्य संपन्न किए जा रहे थे | पवित्र मंत्रो के साथ मै और रोशनी पवित्र बंधन मे बंध रहे थे और आखिरकार सात फ़ेरो की समाप्ती और बड़ों के आशीर्वाद के साथ हमारा विवाह मंगलमय तरीके से संपन्न हुआ |

जब मै कमरे मे गया रोशनी बिस्तर पर बैठी थी घुंघट मे अपनी नज़रे छिपाए | मै उसके नज़दीक जाकर सामने बैठ गया | फ़िर मैने थोडी हिम्मत कर अपनी झिझक को लागंते हुए नज़ाकत से उसके घुंघट को धीरे धीरे हटाया | उसकी पलकें लहज़े मे झुकी हुई थी, मैने उसके चेहरे को निहारा | मुझे ऐसा लग रहा था मानो कोई अप्सरा मेरे सामने बैठी हो | शादी के लाल जोडे मे भारी और मोटे मोटे झुम्को-गहनो से सज़ी ये भारतीय नारी मन को मोह रही थी | मैने कमरे को ज्यादा रोशन करने वाले बत्तियों को मोन कर कम रोशन करने वाली बत्ती को उज़ागर कर दिया | बाल्कनी पर चाँद की चांदनी बिखरती हुई वक्त और नज़ारे को हसीन बना रही थी | मैने रोशनी का हाथ थामा और उसे बाल्कनी की ओर ले आया | चाँद की चाँदनी उसके चेहरे पे पडी तो उसकी चमक चार गुणा बढ गई | मै रोशनी को प्यार से निहार रहा था, वो शर्माकर हल्की मुस्कान के साथ खडी थी | मै रोशनी के नज़दीक गया उसके चेहरे को ऊपर उठा कर पूछा, तुम खुश हो न इस शादी से? उसने हल्की मुस्कान के साथ हामी भर दी | उसकी हामी मुझे एक अज़ीब सा सुकून दे गई | मै मन से खुशी मह्सूस कर रहा था | मेरी धडकन कुछ कह रही थी, प्यार से हारकर अधूरा हुआ मै आज खुद को पूरा महसूस कर रहा था |  मै अपनी धडकनो को समझाते हुए उसके करीब गया और उसके लबो को अपने लबो से मिला दिया | मेरी सारी परेशानिया, मेरे सारे गम, सारी तन्हाईयाँ आज रोशनी को पाकर खत्म हो चुकी थी | रोश्नी के साथ बिताए पल, उसकी मासूमियत, खिलखिलाहट , मिलनसार स्वाभाव, और शालिनता ने शायद मेरे दिल मे काफ़ी पह्ले ही अपनी जगह बना ली थी बस मैने इस बात को कबूल नही किया था, पर आज इस बात पे यकीन कर चुका था कि मुझे मोहब्बत हो गई है हाँ मोहब्ब्त फ़िर से |

                                                                                                                                            


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