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वरद हस्त

वरद हस्त

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जगतनाथ सिंह का राजनैतिक कद ऊँचाइयां छू रहा था। उनके भीतर अवसर का सही आंकलन करने और उसके अनुसार अपनी बात करने की गजब की प्रतिभा थी। तभी तो पार्टी के साधारण कार्यकर्ता से अपनी शुरुआत करने वाले जगतनाथ कुछ ही वर्षों में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर पहुँच गए थे। 

उनकी इस सफलता में उनकी सूझबूझ और योग्यता के साथ साथ उनके भतीजे बिपिन का अथक परिश्रम भी शामिल था। वह उनका दाहिना हाथ था। उनका आदेश जिस काम के लिए होता ‌था उसे सही तरह से खत्म करके ही दम लेता था। 

बिपिन जगतनाथ के बड़े भाई का बेटा था।‌ उनके बड़े भाई फौज में सिपाही थे। एक आतंकवादी मुटभेड़ में शहीद हो गए थे। बिपिन की माँ पढ़ी लिखी नहीं थी। उसने अपने देवर को ही बेटे की ज़िम्मेदारी सौंप दी। 

बिपिन स्कूल तो जाता था। पर उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। बड़ी मुश्किल से उसने बारहवीं कक्षा पास की। वह अपने चाचा के इर्द गिर्द रहता था। इसलिए छुटपन से ही उसकी राजनीति में दिलचस्पी पैदा हो गई थी। युवा होते होते वह अपने चाचा के सभी दांव-पेंच समझने लगा था। 

जगतनाथ ने भी अपने भतीजे की प्रतिभा को पहचान लिया। उन्होंने उसे अपने सहायक के तौर पर रख लिया। जगतनाथ के साथ रहते हुए बिपिन राजनीति का पक्का खिलाड़ी बन गया। 

लोग जगतनाथ के साथ साथ अब उसकी भी बातें करने लगे थे। चर्चा थी कि वही जगतनाथ का राजनैतिक उत्तराधिकारी होगा। 

जगतनाथ की एक ही बेटी थी। उन्होंने उसका विवाह कुंदन सिंह से करवा दिया था। जगतनाथ की बेटी को राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। पर कुंदन एक महत्वाकांक्षी युवक था। वह अपने ससुर के माध्यम से राजनीति में प्रवेश करने का इच्छुक था।

बिपिन के मन में भी अब राजनीति के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने की चाह पैदा हो गई थी। उसे पूरा यकीन था कि उसके चाचा उसकी योग्यता को जानते हुए, उसे प्रोत्साहित करेंगे।

पार्षद के चुनाव होने वाले थे। बिपिन ने जगतनाथ के सामने चुनाव में खड़े होने की इच्छा जताई। पर जगतनाथ अपने दामाद को इस चुनाव में खड़ा करने के बारे में सोंच रहे थे। उन्होंने कहा कि अच्छी बात है। मैं देखता हूँ कि क्या मदद हो सकती है। 

दो दिन बाद उन्होंने बिपिन को बुला कर कहा कि वह पार्षद का चुनाव लड़ना चाहता है। वह उसे रोकेंगे नहीं। पर उसकी योग्यता को देखते हुए उनके मन में बिपिन के राजनैतिक भविष्य को लेकर बड़ी योजना है। अगर वह उन पर यकीन करें तो जल्दबाजी ना करे। 

बिपिन अपने चाचा की बात मान गया। पार्षद के चुनाव के लिए कुंदन ने अपना पर्चा भर दिया। जगतनाथ के संरक्षण में वह चुनाव जीत भी गया। 

विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज़ हो गई थीं। बिपिन को उम्मीद थी कि जगतनाथ उसके नाम की सिफारिश करेंगे। पर बाद में उसे पता चला कि चुनाव का टिकट उसके चाचा को मिला है। वह जगतनाथ के पास जाकर बोला कि कोशिश कर उसे भी किसी और सीट से टिकट दिलवा दें। जगतनाथ ने कहा कि वह उसके लिए प्रयास कर रहे हैं। 

पर बिपिन को टिकट नहीं मिला। जगतनाथ ने उसे बुला कर समझाया कि वह दिल छोटा ना करे। बस उनके चुनाव प्रचार में कोई कसर ना रखे। विधायक बनने के बाद वह उसके लिए पार्टी में किसी अच्छे पद का जुगाड़ कर देंगे। 

जगतनाथ विधायक बन गए। उन्हें मंत्रिमंडल में भी जगह मिल गई। बिपिन धैर्य रख कर अपनी बारी की राह देख रहा था। लेकिन अब जगतनाथ ने उसकी तरफ ध्यान देना छोड़ दिया था।

बिपिन समझ गया कि उसके‌ सर पर चाचा का वरद हस्त बरगद की छांव की तरह है। जिसके नीचे संरक्षण तो मिल सकती है। पर अगर उसे अपनी पहचान बनानी है तो इस छांव से निकल कर चिलचिलाती धूप का सामना करना होगा।


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