ख़ूनी गुड़िया भाग 2
ख़ूनी गुड़िया भाग 2
ख़ूनी गुड़िया
भाग 2
आखिर ये गुड़िया चल कैसे रही है? स्नेहा सोच में पड़ गई। वह विज्ञान की स्नातक थी। बिना किसी ऊर्जा के स्त्रोत के कोई खिलौना नहीं चल सकता यह बात वह जानती थी। वह उस गुड़िया को हाथ में लेकर ध्यान से उसका चेहरा देखने लगी। उसकी गोल गोल आँखें जल्दी जल्दी चालू बंद हो रही थी। स्नेहा को उस गुड़िया की ध्वनि काफी परेशान कर रही थी तो उसने उसे कमरे के कोने में जोर से फेंक दिया। जोर की आवाज़ के साथ कड़े प्लास्टिक की बनी गुड़िया एक करवट जा गिरी और उसका एक हाथ शरीर से अलग हो गया। लेकिन उसकी आवाज़ बंद नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई। परेशान होकर स्नेहा ने जाकर उस गुड़िया को उठाया तो उसका चेहरा देखकर हैरान रह गई। उस चेहरे पर किसी सजीव इंसान की तरह पीड़ा के भाव थे और उसके टूटे हुए हाथ से रक्त चू रहा था। स्नेहा के हाथ पांव फूल गए उसने घबराहट में गुड़िया खिड़की के बाहर उछाल दी। उसके देखते-देखते वह प्लास्टिक की गुड़िया चार मंजिल नीचे जा गिरी और तुरंत बाद एक बड़ा ट्रक उसपर से गुज़र गया। स्नेहा ने झाँककर देखा तो उस गुड़िया के अवशेष छिन्न-भिन्न से नीचे छितराये हुए थे। उसने चैन की सांस ली और उसका टूटा हुआ हाथ भी उठाकर नीचे फेंक दिया। फिर स्नेहा ने मोबाइल से हर किसी को फोन करके पूछा कि उसे गिफ्ट में गुड़िया किसने दी थी, पर किसी ने हामी नहीं भरी। स्नेहा हैरान होती हुई अपने बैड पर गई और थोड़ी देर में ही नींद के आगोश में समा गई। आधी रात को किर्र-किर्र की आवाज़ से स्नेहा की नींद उड़ गई। उसने कुछ देर अनसुना करने की कोशिश की लेकिन जब आवाज़ बढ़ती ही गई और बर्दाश्त से बाहर हो गई तो उसकी गहरी नींद टूट गई। और जब उसे वस्तुस्थिति का आभास हुआ तो उसकी आँखें आतंक से फट पड़ी। वही शैतान गुड़िया उसके बिस्तर में पड़ी किर्र-किर्र कर रही थी जिसका क्रियाकर्म कल ही ट्रक द्वारा किया जा चुका था।