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चलो चलें गगन की ओर...!

चलो चलें गगन की ओर...!

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'चलो, चलें गगन की ओर,
जहां पंछियों का कलरव होगा।
 
नीले आकाश में फैले सितारे होंगे,
न जाति न धर्म का बंधन होगा।
 
सूर्य देता एक सुंदर संदेश होगा,
जगमग चमकता ध्रुव तारा होगा।
 
बच्चों का प्यारा चंदामामा होगा।
और कविता पाठ समाप्त होते ही पूरा हॉल ‍तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंज उठा। 
 
लोगों के बोल सुनाई दे रहे थे- 'वेलडन रवि, बहुत ही सुंदर कविता और अनंत बधाई आपको।'
 
पीछे सीट पर बैठी हुई एक गौर वर्ण की तीखे नाक-नक्शे वाली लड़की बड़ी तेजी से तालियां बजाती हुई अपनी सीट पर खड़ी हो-हो जा रही थी। उसका नाम था रेशमा। वह भी रवि को बधाई देने आगे आ पहुंची। 
 
रवि भीड़ को चीरता हुआ उसके पास पहुंचा और पूछा- रेशमा कविताओं का पाठ कैसा रहा?
 
रेशमा का जवाब- जी, हमेशा की तरह अद्वितीय व अनुपम। 
 
रवि विवेकानंद महाविद्यालय के एमए हिन्दी के द्वितीय वर्ष का छात्र है और रेशमा उसकी सहपाठिनी है। रवि को वाद-विवाद व कविता लेखन में महारथ हासिल है। उसको यह प्रति अन्य छात्रों से अलग और अग्रणी करती है। पूरे महाविद्यालय में रवि का व्यक्तित्व रवि के समान दैदीप्यमान है, वहीं रेशमा के रूप-रंग की चर्चा पूरे महाविद्यालय में है। वह एक मेधावी छात्रा होने के साथ ही एक कुशल चित्रकार भी है। उनकी पेंटिंग्स की चर्चा महाविद्यालय में ही नहीं, अपितु पूरे शहर में है। पेंटिंग्स ऐसी सजीव लगती है, जैसे अभी बोल देगी।
 
रवि और रेशमा की मित्रता की कहानी के चर्चे पूरे महाविद्यालय में होते रहते हैं। ऐसा लगता है कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। शहर का सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्‍थान है विवेकानंद महाविद्यालय। प्रांगण में दूर-दूर तक फैले पलाश के पेड़ एक अलग ही स्वरूप इसे प्रदान करते हैं। जून के महीने में पलाश पर खिले पीले फूल और रात में पूरे कैम्पस में लगी रातरानी की खुशबू हर व्यक्ति को आनंदित करती है।
 
पलाश के पेड़ के नीचे अनेक प्रेमी युगल बैठे हुए दिखाई देते हैं। इन्हीं पलाश के पेड़ के नीचे घंटों रेशमा और रवि बैठकर अपने सुख-दु:ख बांटा करते थे। उनकी तमाम प्रेमभरी बातों को सुनकर पेड़ों पर लगे पीले फूल जैसे मुस्कराने लगते हैं और उन्हें रात होने का एहसास तब होता था, जब रातरानी की खुशबू समस्त वातावरण में मनमोहक संगीत की तरह थिरकने लगती थी।
 
रवि का एमए का परीक्षाफल आ गया था। वे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गए थे। एक ने एमए कर नेट क्वालीफाई कर शोधार्थी के रूप में दाखिला ले लिया था। रवि और रेशमा फिर पलाश के पेड़ के नीचे बैठे हैं। फरवरी का अंतिम सप्ताह। गुलाबी ठंड जैसे अलविदा कहने के मूड में है। आम के पेड़ों पर बोर लगे हुए हैं। भौंरे फूलों पर मंडरा रहे हैं। रातरानी की सुगंध पूरे वातावरण में मद्धिम-मद्धिम ढंग से गुनगुना रही है।
 
रेशमा ने पूछा- रवि कभी तुम सोचते हों कि तितलियां फूलों पर घूमते हुए कभी क्यों नहीं सोचती कि फूल किसी हिन्दू के घर में खिला है या मुस्लिम के? परिंदे भी अपना नीड़ बनाते समय ये नहीं देखते। उनका भी कोई धर्म व जाति नहीं है। पशु भी किसी धर्म-जाति में बंधा नहीं है, तो फिर बुद्धिमान मानव की यह विवशता किसलिए? 
 
ऐसा लग रहा था कि रेशमा बोल नहीं रही है, कैनवास पर कोई चित्र बना रही है। ओंस की बूंद की तरह निर्दोष रवि धीरे से बुदबुदाए- रेशमा, तुम चित्र बनाती हों, कलाकार हों, चित्रों में भावनाओं को जीवंतता प्रदान करती हों। जिसमें जीवन देने की ताकत होती है, वो बंटवारा नहीं कर सकता है। वह हमेशा दुआएं देगा, खुशियां बांटेगा एक सूफी फकीर की तरह। 
 
अरे नहीं, तुम्हारी आंखों में लिखी हुई कविता को पढ़ने की कोशिश कर हूं, जो अभी कैनवस पर नहीं उतरी है। आज की रात कविता की रात होगी, रेशमा ने मु्स्कुराकर कहा।
 
और समय किस तरह बीत गया कि रवि और रेशमा ने घड़ी पर जब निगाह दौड़ाई तो शाम के 7 बज चुके थे। 
 
रेशमा ने कहा कि रवि, अब इजाजत दो, चलती हूं। डैडी इंतजार कर रहे होंगे। 
 
ठीक है चलो रेशमा। रवि ने कहा और दोनों गंतव्य की ओर रवाना हो गए।
 
रेशमा के पिता आसिफ का लकड़ी का व्यवसाय था। तीन लड़कियां थीं‍ जिनमें से दो के निकाह हो चुके थे। रेशमा सबसे छोटी और सबसे दुलारी लड़की थी। हाजी साहब ने पिछले साल ही हज किया था। स्टेशन पर उन्हें छोड़ने इतने लोग आए थे कि ऐसा लगा, जैसेकिसी नेता को बिदाई देने आए हैं लोग। और हज से लौटने के बाद पूरे मुहल्ले में हलुआ बंटा था। उनकी मोहल्ले में अपनी अलग ही पहचान थी। पुराने खानदानी आदमी हैं आसिफ साहब। उनके वालिद साहब का भी शहर में अच्‍छा रसूख था।
 
आसिफ साहब के घर के सामने इस्मत बी का मकान था। पूरे मोहल्ले में वो इस्मत आपा के नाम से जानी जाती थी। मोहल्ले के किस घर में मियां-बीवी के बीच कब लड़ाई हुई, इसका पूरा हिसाब इस्मत आपा के पास रहता था। यही नहीं, मोहल्ले की कौन लड़की कितने बजे, किसके साथ और क्या पहनकर निकली है, इसका भी हिसाब-किताब इ्स्मत आपा के पास रहता है। मतलब स्पष्ट है कि कोई लड़की खुद की डायरी मेंटेन करती हो या नहीं, लेकिन इस्मत आपा उसकी डायरी जरूर मेंटेन करती है।
 
वो अक्सर पान की मोटी गिलौरी मुंह में रखे कहती सुनाई देती- 'मियां, फलाने की लड़की सुबह आठ बजे की निकली है और रात के दस बजे वापस लौटी है। क्या जमाना आ गया है।'
 
इधर रवि के रिश्ते की भी बात चल रही है। रवि के पिता रघुवीरसिंह सप्लाई विभाग में इंस्पेक्टर हैं। रघुवीर सिंह ने रवि को बुलाकर कहा कि रवि, दिवाकरसिंहजी के यहां से तुम्हारे लिए रिश्ता आया है। खानदानी ठाकुर परिवार है जिसका जिले की राजनीति में अच्‍छा दखल है। मैं कितने दिल से ऑफिस में अटैच हूं। तुम्हारा विवाह वहां होने से मुझे फील्ड की पोस्टिंग मिल जाएगी, फिर इनका खानदान ठाकुरों का माना हुआ खानदान है। हां, लड़की थोड़ी मोटी, सांवली और छोटे कद की है, पर अच्छे खानदान में ये सब नहीं देखते। भगवान पांचों उंगली भी बराबर नहीं बनाते। 
 
'जी पिताजी' कहता रवि सिर झुकाकर नाराज होकर बातें सुनता रहा और मन ही मन भुनभुना रहा था।
 
इधर आसिफ साहब भी रेशमा के लिए लड़के देखने में व्यस्त हैं। लो पैगाम भी आ गया, वो भी सलमान साहब के यहां से। आसिफ साहब ने रेशमा की अम्मी से कहा, अरे सलमान साहब के यहां से पैगाम आया है। जी, खुदा का शुक्र है। रिश्ता आया भी और इतने बड़े खानदान से। सलमान साहब शहर के माने हुए बिल्डर हैं। आधे शहर में उनके रसूख की चर्चा है। हां, उनकी उम्र जरूर पचास के आसपास है, लेकिन बालों में खिजाब लगाकर शेरवानी-कुर्ते में वे निकलते हैं तो कोई भी उन्हें चालीस वर्ष से ऊपर का नहीं कह सकता है। सलमान साहब की बीवी माइग्रेन और आर्थ्रराइटिस की बामीरी से पीड़ित है अत: सलमान साहब को शादी का निर्णय लेना पड़ा। सलमान साहब के एक लड़की और एक लड़का है। लड़की रेशमा से एक क्लास जूनियर है।
 
रिश्ता सलमान साहब के यहां से आया है, यह बात मोहल्ले में आग की तरह फैल गई। पान की गिलौरी चबाती हुई इस्मत आपा आई, अरे आसिफ मियां, तुम्हारे भाग्य खुल गए। तुम्हारे यहां पैगाम सलमान साहब के यहां से आया है। तुम्हारा नसीब जाग गया है। 
रेशमा की अम्मी ने कहा, लेकिन सलमान मियां तो रेशमा से दुगनी उम्र से भी ज्यादा के हैं?
 
अरे, पुराने जमाने के नवाब भी कई निकाह करते थे और फिर सलमान मियां में किस बात की कमी है। इस्मत आपा ने पानी की गिलौरी चबाते हुए जवाब दिया।
 
उड़ते-उड़ते खबर रेशमा तक भी पहुंची। क्या रिश्ता सलमान साहब का? अरे नहीं, सलमान साहब तो वालिद की उम्र के हैं और उनकी लड़की तो मेरे साथ पढ़ती है। इस पर घर में इतना जश्न?
 
उसने तुरंत अपनी मित्र गीता को मोबाइल पर फोन मिलाया। गीता मैं तुमसे मिलना चाहती हूं। ठीक है 10 बजे मिलते हैं लाइब्रेरी में। ठीक 10 बजे रेशमा और गीता आमने-सामने हैं।
 
गीता, मेरे अब्बा मेरी मर्जी के खिलाफ मेरा निकाह सलमान से करना चाहते हैं। अरे, उनकी लड़की तो हम लोगों के साथ पढ़ती है। ये तो सरासर नाइंसाफी है। तुम विरोध करो। हां, तुम्हारा रवि के बारे में क्या ख्‍याल है?
 
गीता ने कहा- रवि? हां, रवि मेरी निगाह में सर्वोत्तम है, लेकिन उसे तो केवल 15 हजार रुपए की स्कॉलरशिप मिलती है और उसका मजहब भी दूसरा है। यह कैसे संभव है? 
 
गीता ने हंसते हुए कहा, तो तुम हेड ऑफ डिपार्टमेंट से इश्क लड़ाओ। उसकी तनख्वाह लाखों में है। नाम भी उसका बहुत है और अपनी गंजी चांद पर जब वह तेल लगाकर निकलता है और सूरज की किरणें जब उस पर गिरती हैं तो परावर्तन का प्रयोग अपने आप ही हो जाता है। किसी प्रयोगशाला में जाने की जरूरत नहीं है। और दोनों सखियां हंसते हुए आपस में लिपट गईं।
 
आज कुछ दिनों से रवि और रेशमा गायब हैं। शहर में तरह-तरह की चर्चाएं हैं। पूरा शहर बेहद तनाव और सन्नाटे में है। हर व्यक्ति एक-दूसरे को संदेह से देख रहा है। इस्मत आपा ने दोहराया- लव जेहाद का मामला है। मैं तो पहले ही समझ गई थी, जब लड़की सलवार सूट व जींस में कॉलेज जाने लगी थीं।
 
इधर रवि के पिता रघुवीरसिंह भी तमाम राजनीतिक नेताओं के साथ पुलिस कप्तान से मिले व कहा, साहब यह लोगों की चाल है। मेरा लड़का निर्दोष है। यह उसको फंसाने की साजिश है। 
 
पुलिस कप्तान मिस्टर गोयल एक नवयुवक है। वे आईआईटी से बी-टेक पास हैं। उन्होंने दरोगा दीवानसिंह को बुलाकर अर्जेंट मीटिंग ली। 
 
उन्होंने फरमाया कि पूरे शहर में जलजले के आने से पहले की खामोशी है। तुरंत धारा 144 लगा दो। यह सांप्रदायिक तत्वों की शहर में दंगे फैलाने की साजिश हो सकती है या फिर लव जेहाद का मामला। हर मामले की पूरी तरह जांच करनी है। 
 
सर, मुझे तो यह प्रेम-प्रसंग का मामला लगता है। दरोगा दीवानसिंह बुदबुदाया। दीवानसिंह, ज्यादा दिमाग मत लड़ाओ। जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। जी, दीवानसिंह बुदबुदाया। आदेश सिर माथे पर साहब। बी-टेक पास हैं तथा हर मामले का अन्वेषण वैज्ञानिक ढंग से करते हैं। दीवानसिंह साहब के आदेश के अनुसार कार्रवाई में जुट गया।
 
शहर के बाहर एक खंडहरनुमा मकान है। मकान गीता के रिश्तेदार का है। मकान में ऊपरी तल पर एक कमरा है जिसमें केवल एक खिड़की है। इसमें रवि और रेशमा चार दिन से हैं। 
 
रवि शहर में तनाव है, रेशमा ने कहा।
 
हां, रवि बुदबुदाया। 
 
रवि रात का तीसरा पहर हो गया है, बादलों की गोद में चांद कितना सुंदर लग रहा है, रेशमा ने कहा। 
 
रवि, तुम क्या देख रहे हो? 
 
मेरी बगल में एक चांद निकला हुआ हूं, मैं उसे देख रहा हूं।
 
हाऽऽऽ-हाऽऽऽ, हाऽऽऽ-हाऽऽऽ रेशमा हंसी और बोली, चलो चलें गगन की ओर...। मैं फिर से सुनना चाहती हूं। आज की रात कविता की रात होगी।
 
कविता सुनते-सुनते रक्तिम वर्ण का सूरज नीले आकाश पर आ गया। 
 
रेशमा लाल रंग का सूरज कितना सुंदर लग रहा है, रवि ने कहा।
 
हां, बहुत सुंदर है, रेशमा ने कहा। 
 
यह रातभर रात्रि के आगोश में रहा है। अब सुबह विदा लेते समय रो-रोकर इसकी आंखें लाल हो गई हैं। ये तुम्हारा उसकी सुंदरता को व्याख्यायित करने का अपना अंदाज है, रवि ने कहा।
 
मध्यरात्रि को दीवानसिंह अपने सिपाहियों के साथ रवि व रेशमा के ठिकाने पर पहुंचा।
 
दीवानसिंह ने अपने सिपाहियों से कहा कि जल्दी से दरवाजे को तोड़ो। यहीं पर दोनों छुपे हैं और दरवाजा तोड़ दिया गया। 
 
दीवानसिंह बोला, ये क्या? दोनों ने आत्महत्या कर ली। दोनों की लाशें रस्सी से लटकी हैं। एक-एक चीज की तलाशी लो, कोई सबूत नहीं छुटना चाहिए। 
 
जी दरोगा सिंह, कांस्टेबल बुदबुदाया। 
 
जी कुछ नहीं मिला। बस रवि की जेब से एक कागज मिला है और वही कागज रेशमा ने पास भी मिला है जिस पर कुछ लिखा है। 
 
लाओ दो, मैं बाहर मोबाइल के टॉर्च से पढ़ता हूं।
 
दीवानसिंह ने कागज को मोबाइल के टॉर्च से पढ़ा। कागज के टुकड़े पर लिखा था- 'चलो चलें गगन की ओर...'
 
दीवानसिंह ने कागज को माथे से लगाया और जेब में रख लिया।
 
उसने ऊपर उठाकर नीले आकाश की तरफ देखा तो दूर गगन में दो तारे दिख रहे थे तथा वे जैसे कविता पाठ कर रहे थे- 'चलो चलें गगन की ओर...'
 
(इस कहानी के सारे पात्र काल्पनिक हैं। इसका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।)
 


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