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Janhavi Mistry

Tragedy Romance

5.0  

Janhavi Mistry

Tragedy Romance

हवाओं में लिपटी हुई मैं

हवाओं में लिपटी हुई मैं

7 mins
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" हवाओं में लिप्टी हुई मैं गुज़र जाऊंगी तुमको छुके "

उपर लिखी हुई लाइन एक लड़की गुनगुना रही थी, हाथों में एक खत पढ़ने के बाद। कोई एक साधारान लड़की नही थी वो, देश की एक बहादूर जवान थी, एक विरांगना थी, जो अपने पति जिसके साथ ग्यारह महीने पहले शादी हुई थी, उनका खत पढ़ रही थी। जी हाँ, ग्यारह महीने पहले आरुषि और सिद्धार्थ की शादी हुई और फिर थोड़े ही दिनों में आरुषि का holiday ख़तम हो गया।

 सिद्धार्थ और आरुषि एक दूसरे को दिलोंजान से मोहबत करते थे। लेकिन , आरुषि को भी अपना फर्ज़ निभाना था। सिद्धार्थ बहोत याद करता था आरुषि को। उसने आरुषि को खत कुछ ऐसे लिखा था,

" Dear Aarushi,        

I really miss you.

तेरे बिन ना मुझे जीना ग़वारा,

बिन तेरे मैं बन गया हुँ आवारा।

तेरे बिना ये ज़िंदगी लगे ज़हर,

जैसे ये वक़्त गया हो ठेहर।

तन्हाइओं में मैं खो जाता हुँ ,

तेरी तस्वीर देखके ख़ुश जाता हुँ।

हाँ, समझता हूँ है हम बहुत दूर,

पता है मुझे, तू भी है मज़बूर।

मत करना मेरी तुम कोई फ़िक्र,

निभाना अपना फ़र्ज तुम दिलबर।

और, हाँ ये कविता मैंने खुद लिखी हैं। तेरी तन्हाई ने मुझे कवि बना दिया। ख़ैर, छोड़ो। तुम अपना ख़्याल रखना और जब भी वापस तुम्हे छुट्टी मिले तो मुझे ख़बर कर देना।

All the best my soldier wife. Love you till the end.

तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा,

सिद्धी                                                      

ख़त पढ़के आरुषि की आँखों मैं आंसू थे, और वो ऊपर वाली लाइन गुनगुना रही थी। आरुषि कॉलेज़ के दिनों से सिद्धार्थ को जानती थी। जब भी सिद्धार्थ उससे पूछता , " अगर तुम आर्मी मैं चली जाओगी , तब तुम्हारी याद आये तो...? " तब हर बार आरुषि यह गाना गुनगुना देती थी।

आरुषि के बाक़ी दोस्त भी यह खत पढ़के आँखों के अश्क़ रोक नहीं पाए।

आरुषि थोड़ी ही देर बाद आँसु साफ़ करके वापिस अपने काम में लग गयी।

( इस बात को दो साल हो गए। आरुषि को वख्त ही नहीं मिला सिद्धार्थ से बात करने का, या ख़त लिखने का। )

दो साल के बाद सिद्धार्थ को ख़बर मिली की , आरुषि आ रही है। उसे 15 दिन का छोटा सा holiday मिला है। यह बात सुनके सिद्धार्थ की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।

जिस दिन आरुषि की ट्रेन आने वाली थी, उसके अगले दिन से ही सिद्धार्थ स्टेशन पे जाके आरुषि का इंतज़ार कर रहा था। दूसरे दिन जब जब ट्रेन आई ,तब वहाँ काफ़ी भीड़ हो चुकी थी। सिद्धार्थ आरुषि को ढूंढ रहा था। आखिर में दोनों ने एक दूसरे को ढूंढ ही लिया।

 आरुषि एक दम से दौड़ कर आई और तुरंत सिद्धार्थ को गले लगा लिया। 10 मिनिट तक आरुषि सिद्धार्थ के गुंगराले बालों में प्यार से आँखों में हाथ फेरती रही और सिद्धार्थ की आँखों से अश्क़ मल्हार की तरह बहते रहे। ऐसा लग रहा था जैसे एक सूखे खेत को बारिश मिल गयी हो।

थोडी देर के बाद जब दोनों अलग हुए तब भी सिद्धार्थ आँखे बंध करके खड़ा था। तब आरुषि बोली

आरुषि :- Sid, तुम अपनी आँखें बंध करके क्यों खड़े हो? नाराज़ हो मुझसे ?

सिद्धार्थ :- नहीं , आरुषि। मेरे साथ ऐसा रोज़ होता है। मैं रोज़ तुम्हे गले से लगाए खड़ा होता हुँ, पर जब आँखे खुलती तब पता चलता है कि , वो तो एक सपना था। आज आँखे खोलने में भी मुझे ड़र लग रहा है , आरुषि। तुम सच में हो ना.....?

(ये बोलते बोलते सिद्धार्थ रो पड़ता है।)

आरुषि :- (प्यार से उसके गालों पे हाथ रखते हुए)               

Sidi, आँखे खोलो , तुम्हारी आरुषि सच में तुम्हारे सामने खड़ी है।

(सिद्धार्थ अपनी आँखे खोलता है और आरुषि की आँखों में देखता है।)

सिद्धार्थ :- कब से इस दिन का इंतज़ार कर रहा था मैं। चलो , अब अपने घर चलते है।

आरुषि :- चलो।

दोनों घर जाते हैं। दोनों की एक दूसरे से मिलने की ख्वाइश पूरी हो जाती है। दोनों दिन के 24 घंटे एक दूसरे के साथ ही बिताते थे। सुबह एक साथ जॉगिंग पे जाते थे , फ़िर घर आकर एक साथ घर आके साथ में चाय की चुस्की लगाते थे। फ़िर पूरा दिन घूमते थे और रात को जब सोते थे , तब सिद्धार्थ के सीने पे सर रखके आरुषि सो जाती थी और सिद्धार्थ उसके बालों में हाथ फेरता रहता था।

दिन पानी की तरह बह गये। आख़िर वो रात आ ही गयी , जो छुट्टिओं की आख़िरी रात थी। आरुषि को उस दिन पता नहीं क्या सूज़ा , उसने अपने Phillips के छोटे से रेड़ियो पे गाना रखा, मैं रहूँ या न रहूँ..।

सिद्धार्थ भलीभाँति जानता था कि उसने यह गाना क्यों रखा।

वो बोला

सिद्धार्थ :- आरुषि, दुनिया की कोई ताक़त हमें जुदा नहीं कर सकती। We are made for each other.

आरुषि :- (सिद्धार्थ के सर पर हाथ फेरते हुए) अच्छा sidi , अगर मैं ना रहूँ तो .....

सिद्धार्थ :- (आरुषि के होठों पे ऊँगली रखते हुए) shhhh !!! ऐसा बोलना भी मत। मैंने कहाँ ना , we are made for each other.

आरुषि :- फिर भी यार ,मेरे साथ कुछ बुरा हो जाए तो.....तो तुम दूसरी......(थोड़ा थरथराते हुए) दूसरी शादी....(थोड़ा सा हकलाते हुए ) शादी कर.....कर लेना।

सिद्धार्थ :- तुम इस सोच भी कैसे सकती हो। तुम्हारे आलावा न मेरी ज़िन्दगी में कोई था या ना होगा। समझ गयी तुम।

(उसका चेहरा एक दम से उतर गया)

आरुषि:- तुम्हे मेरी क़सम। अगर तुम्हें मुझसे प्यार है तो ये बात तुम्हे माननी होगी।

सिद्धार्थ :- तुम बोहोत ज़िद्दी हो। लेकिन , ऐसी नोबत आएगी ही नहीं , हम.........तुम..........साथ जियेंगे और साथ में मरेंगे।

आरुषि सिद्धार्थ को चिढ़ाने के लिए रेड़ियो का volume बढ़ा दिया और उस time उसकी favorite line जो आ रही थी। " हवाओं में लिपटी हुई मैं......"।

सिद्धार्थ तुरंत उठा और रेड़ियो बन्ध कर दिया।

आरुषि :- (गुस्से से) siiiiiiiiiidddddd ,what's your problem?

it's my favourite song.

सिद्धार्थ :- छोड़ो यह सब, चलो सो जाते है। तुम्हारे साथ बेहज़् करना मेरे बस की बात नहीं है।

दोनों रूम में जाते हैं और सारी रात बातें करते रहे, प्यारी सी तक़रार भी हुई , थोड़ी हँसी मज़ाक भी हुई। आख़िर, ये रात दोनों की एक दूसरे के साथ आख़री रात थी और दोनों जानते थे , यह हसीन रात शायद ही आएगी। एक दूसरे को दोनों जी भरके देख लेना चाहते थे।

देखते देखते यह रात भी बीत गयी और एक ऐसी सुबह आई जो, काली रात के बराबर थी।

आज सिद्धार्थ ने अपने हाथों से आरुषि से तैयार किया। चाहता तो वो था कि , वो आरुषि को दुल्हन की तरह सँवारें, पर क्या करता वो.....

सिद्धार्थ आरुषि को स्टेशन पे छोड़ने गया और आरुषि के जाने के बाद ,घर आकर कूट कूट कर रोया। क़सम से उस दिन वो पहली बार इतना रोया था।

फ़िर बीतते हुए दिन के साथ वो संभल गया।

थोड़े दिनों बाद फ़ोन की घंटी बजी। सिद्धार्थ ने फ़ोन उठाया। फ़ोन करने वाला व्यक्ति बोला...

I am sorry to say that your wife is no longer in this world. She died in bomb attack. and sir, शरीर का एक भी हिस्सा नहीं मिला उनका। बड़ी मुश्किल से हम उन्हें पहचान पाए हैं।

ये सुनने के बाद फ़ोन उसके हाथ से छूट गया। उसका सब कुछ मिट गया था। उसकी दुनिया जैसे ख़तम ही हो गयी थी। वो टूट गया था।

जब आरुषि के नाम की कॉफिन उसके सामने रखी, तो वो उस कॉफिन से लिपट गया और रोते हुए बोला,

काश.....!!!.....काश.......मेरी आँखे खुल जाए, काश ये सपना हो......काश यह सपना हो......काश....। अपने आँसु पोछते हुए बोला, I'm proud of you Aarushi, I'm proud of you. Love you till the end. I love you Aarushi ....... I love you.

वहाँ खड़े सब लोगों की आँखे आँसू से भर गई। सिद्धार्थ ने अपने दिलों पे पत्थर रखके आरुषि का अंतिमसंस्कार किया। ज़रा सोचो , कितना मुश्किल हुआ होगा सिद्धार्थ के लिए।

सिद्धार्थ घर आया ,तो घर उसे सुना सुना सा लगा। घरमें पहले भी वह अकेला था, पर एक आशा ,एक उम्मीद थी ,आरुषि की वापसी की। पर अब...

सिद्धार्थ गुमसुम सा रहने लगा। पता नहीं क्यों , उसको एक दिन रेड़ियो ऑन करने का मन हुआ। उसने जब रेड़ियो की स्विच ऑन की तब वही गाना बजा जो आरुषि अक्सर सुना करती थी। मैं रहूँ या न रहूँ... पता नहीं ये एक इक्ताफ़ाक था, या ख़ुदा का एक पैग़ाम।

ये गाना सुनके सिद्धार्थ पुरे 7 दिन बाद सो गया। जब वो सुबह उठा तब उसके चेहरे पे एक नूर था। उसने आरुषि की आर्मी वाली कैप पहने आरुषि के फोटो के सामने आके बोला,

"मैं तुम्हें दिया हुआ वादा पूरा करने जा रहा हूँ। आरुषि मैं आर्मी में भर्ती होने जा रहा हूँ। अब से मेरी दूसरी पत्नी ये आर्मी की वर्दी है और और ये देश की जनता मेरे बच्चे।"

जब आर्मी में भर्ती होने के लिए सिद्धार्थ जा रहा था, तब .....एक प्यारी सी हवा की लहर आई और सिद्धार्थ के चेहरे की मुस्कान बन के चली गयी।

क्यों ? अरे ! ज़रा उस गाने की लाइन तो याद करो। जवाब मिल जाएगा।

दो साल बीत गए। आज सिद्धार्थ दिलोंजान से देश की रक्षा कर रहा है। जब सूरज की हलकी सी किरण आतब तब उसके ती है, जब जब हलकी सी बारिश उसके चेहरे पे गिरती है, जब हवा की हलकी सी लहरें उसके पुरे बदन को छू के निकलती है, चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान आती है। तब तब आरुषि की उसे याद आती है।


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