मैंने जीवन से क्या चाहा था ?
मैंने जीवन से क्या चाहा था ?
मैंने जीवन से क्या चाहा था ?
कुछ सपने ..कुछ अपने.. और कुछ मुट्ठी भर तरक्की
लेकिन मिला क्या ?
छोटी आहें ...बिखरी बाहें.. और दम तोड़ती उम्मीदें
जब तुम मिले थे तो मेने तुमसे क्या चाहा था ?
तुम्हारा मधुर यौवन ,, सुर्ख होठों पर मुस्कान ..और दिल को सुकून देने वाली पप्पी
लेकिन क्या इतना काफी था ? या अगर था तो मिला क्यों नहीं ?
शायद... हर चीज़ चाहने भर से नहीं मिल जाती
मेने उस रात तुम्हे भी तो चाहा था ,, जब में घोर नशे में था
बाद इसके में तुम्हे देख रहा था... जैसे में जीवन को देख रहा हूँ ,, अभी
में तब भी नशे में था और अब भी हूँ
तब तुम्हारी चली थी ...अब इसकी चल रही है
लेकिन देखना, मैं पा लूंगा,, जैसे तुम्हें पाया है
सच कहूँ , तो मैंने कुछ भी चाहने से पहले ... मैने यही चाहा था