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परफॉर्मेंस बोनस

परफॉर्मेंस बोनस

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गांव के जमींदार के पास हजार एकड़ से ज्यादा की जमीन थी, जिसपर कई सौ मजदूर काम करते थे। धनिया भी उन्हीं मजदूरों में एक था। परिवार में इसकी लुगाई 'पुतली' और दो बच्चे हैं। यूँ तो धनिया बीस बरस का है पर गरीबी ने इसे ऐसा बना रखा है मानो चालीस का हो। शरीर पर मांस भी बस उतना की हाड़ ढकने भर। लेकिन मेहनत करने में ऐसा की दो तीन हट्टे-कट्टे भी उसके सामने पानी मांगने लगे। आज जैसे ही धनिया काम से लौटा पुतली को गले लगा कर बोला - अब हमारे बच्चे भी स्कूल जाएंगे। तुम्हारे सपने अब आंसू बन कर बहेंगे नहीं, बल्कि पूरे होंगे। पुतली ने हैरानी से पूछा - बउरा गए हो का जी। कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो। तुम्हारी कमाई से घर तो मुश्किल से चलता है, बच्चों की पढ़ाई...। बोलते बोलते पुतली का गला भर आया। अरे सुनो तो - इस बार मालिक ने कहा है कि अच्छा काम करने वाले छोटे बड़े सब मजदूरों को 'परफॉर्मेंस बोनस' मिलेगा-धनिया ने पुचकारते हुए कहा। साल भर धनिया ने कमर तोड़ मेहनत की। फसल भी खूब हुई। फसल कटाई के बाद मुंशी ने कहा- इस साल जिन्हें बोनस मिलेगा उनके नाम है शंभू और धनिया।

 

धनिया को तो जैसे इसी पल का इंतजार था। शंभू के साथ धनिया का नाम। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हो भी क्यों न, शंभू एक संपन्न घर से था। खुद की थोड़ी जमीन भी थी, उसके बच्चे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने जाते थे। शरीर से भी बलिष्ठ, सौ किलो से ऊपर। धनिया खड़े खड़े सपने संजोने लगा, 'पुतली का चमकता चेहरा, बच्चों का सुनहरा भविष्य'  तभी मोटर की आवाज से उसकी नींद खुल गई। मालिक आए, सबको मजदूरी देने के बाद वो पल भी आ गया जब मुंशी ने मालिक का फैसला सुनाया - साल भर के मेहनत के हिसाब से मालिक की नजर में शंभू और धनिया दोनों बराबर है। इसलिए दोनों को 'परफॉर्मेंस बोनस ' के तौर पर उनके वजन के हिसाब से पांच गुना अनाज दिया जाता है।

 

इनाम सुन कर धनिया का दिल बैठ गया। ये कैसा न्याय है मालिक - शंभू तो वजन में मुझसे तीन गुना अधिक है। जब हमने काम बराबरी का करा है, और ये इनाम साल भर के काम पर है तो इनाम की राशि बराबर मिलना चाहिए। मगर मुंशी ने धनिया की एक न सुनी। पुतली ने धनिया को संभाला। वजन के हिसाब से दोनों को बोनस दिया गया। शंभू ने अपनी बैलगाड़ी मंगाई और अपना इनाम लाद कर हंसता हुआ निकल गया। धनिया अपनी कमाई अपनी पीठ पर लेकर बुझे हुए मन से घर की ओर चला। पुतली लड़खड़ाते हुए धनिया को सहारा देने लगी लेकिन कब तक। टूटे हुए अधूरे ख्वाब का बोझ कितना होता है वो बखूबी जानती थी। कुछ ख्वाब उसके भी थे। पर एक सवाल जो धनिया ने उठाया था उसका भार सब पर भारी था। "साल भर काम करने के बाद अगर मालिक की नजर में दोनों का परफॉर्मेंस एक है तब परफॉर्मेंस बोनस एक क्यों नहीं।"

 


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