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दिल तो बच्चा है जी

दिल तो बच्चा है जी

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"ये केक किसके लिए है, आज तो किसी का जन्मदिन नहीं है?" गीता के लाये हुए केक को देखकर माया जी ने कहा।


"माँ आज पापा का जन्मदिन है।” गीता ने हंसते हुए कहा।


"अच्छा मुझे तो आज ही पता चला, इस बुढ़ापे में जन्मदिन मनाया जा रहा हैं, उन्हें याद भी हैं की उनका जन्मदिन कब है। उन्हें छोड़ उनकी माँ को भी याद नहीं था।" माया जी ने तंज कसते हुए कहा।


"अरे मां! मुझे तो आज पता चला की पापा को जन्मदिन मनाने का कितना शौक है, आज जब फेसबुक पर देखा पापा बड़ी ही खुशी से सबकी शुभकामनाओं का उत्तर दे रहे थे। पहले तो उन्होंने अपनी खुशी जाहिर नहीं की क्योंकि वो हमारी इच्छाओं की पूर्ति करने में लगे रहे, अब हम बड़े हो गए तो हमारा फर्ज बनता है कि हम उन्हें खुशी दे सके। इसलिए मैंने सोचा की आज उन्हें सरप्राइज दे दिया जाए।”


"माँ मेरी बात मानो तो तुम भी पापा को बर्थडे विश कर देना वो बहुत खुश हो जाएंगे।”


“मैं ये बर्थडे विश नहीं करुंगी”, माया जी ने कहा, “पता नहीं बुढ़ापे में नया-नया शौक चढ़ रहा हैं। कल जबरदस्ती तूने और तेरे पापा ने मुझे वो लहंगा पहनवाकर फोटो खिंचवा डाली, लोग क्या कहेंगे की बुढ़ापे में जवानी चढ़ रही है। पैंसठ साल की हो गई हूं और ये सत्तर साल के, ये कोई उम्र हैं ये सब करने की। अब मैं तेरे घर नहीं आऊंगी अगर मुझसे ये सब करवाया तो..... समझी।”


"अरे मेरी भोली और शर्मीली माँ नहीं करूंगी ठीक हैं अब तो खुश हो जाओ। माँ प्लीज, आज अपने हाथ की कड़ी खिला दो तो मजा आ जाए। ये भी कोई कहने की बात हैं, चल बनाती हूं।”


दरअसल मेहता जी बहुत ही जिंदादिल इंसान थे, अपने स्वास्थ्य पर ध्यान रखना, अपने आपको मेंटेन रखना, नयी-नयी टेक्नोलॉजी के बारे में सीखना ये सब उन्हें बहुत पसंद था, कुल मिलाकर कहें तो वो अपने आपको अपडेट रखते थे चाहे कोई भी क्षेत्र हो सबकी जानकारी रखते तभी तो मोहल्ले के बच्चे उन्हें गूगल दादाजी कहते थे। जबकि माया जी चिढ़तीं और कहतीं बुढ़ापे में जवानी चढ़ रही हैं तो इस पर मेहता जी उन्हें छेड़ते हुए कहते दिल तो बच्चा है जी। ऐसे ही मीठी नोंक-झोंक चलती रहती दोनों के बीच में, जैसे हर पति-पत्नी के बीच होती है।


कुछ दिनों से माया जी बीमार चल रही थीं तो डाॅक्टर ने आबो-हवा बदलने की सलाह दी थी इसलिए दोनों बेटी के घर आए थे। गीता शिमला में रहती थी। मेहता जी माया जी को चिढ़ाते भी कि देखो मैं अपने आपको फिट रखता हूं इसलिए मुझे ना बीपी है और ना शुगर। तुम्हें कहता हूं कि थोड़ी वाॅक करो तो तुम चिढ़ जाती हो।


तभी मेहता जी ईवनिंग वाॅक करके आए, तो सबने मिलकर उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं दी और गीता केक ले आई। मेहता जी बड़े खुश हुए उन्होंने केक काटा और रोहन ने नाना जी के लिए तैयार किए गाने पर डांस किया और साथ में मेहता जी भी डांस करने लगे।


गीता को अकेले में बुलाकर माया जी ने कहा- "गीता तू बेटी है तो सब समझती है लेकिन वंदना इन बातों से चिढ़ती है, तेरे पापा को तो तू जानती हैं वो हर बात में वंदना को सलाह देने लगते हैं जो कि वो पसंद नहीं करती है। वो आजकल की लड़की है उसे स्पेस चाहिए होता है। ये बात मैं इन्हें समझाती हूं लेकिन ये हैं कि समझना ही नहीं चाहते हैं। तुझे इनका नकली बर्थडे मनाकर अच्छा लगा, क्योंकि तुम अपने पापा की खुशी जानती हो। लेकिन ये सब बातें वंदना नहीं करती है। दिनभर टीवी से चिपके रहते हैं। इतना ही समझ नहीं आता की बहू ऑफिस से आई है तो वहां से हट जाए, उन लोगों को भी टीवी देखने दे, लेकिन नहीं। बेटा लिहाज के मारे कुछ नहीं कहता लेकिन बहू चिढ़ती है और क्या कहूँ छोटी-छोटी बातें हैं जो इन्हें समझ नहीं आती हैं।”


"मां मुझे लगता था की पापा तुमसे अधिक समझदार हैं लेकिन तुम तो पापा से कहीं ज्यादा समझदार हो। काश, तुम्हारी तरह हर सास सोचने लगे तो हर बहू अपने सास-ससुर के साथ रहने से कतराएंगी नहीं। मां वंदना बहुत समझदार है, वो इन छोटी-छोटी बातों का बुरा नहीं मानती होगी। अगर ऐसा कुछ होता तो वो मुझे जरूर बताती। मैं उसकी ननद बाद में पहले उसकी अच्छी दोस्त हूं और ये बात वो भी जानती है।”


एक सप्ताह के बाद रवि और वंदना भी शिमला आ गए, सबने मिलकर खुब एन्जाॅय किया। सुबह गीता ने सबको बेड टी देकर लाॅन में आई।


”हल्की और गुनगुनी धूप में चाय पीने का मजा है। तभी वंदना भी वहां आ गई, वाह कितना खुशनुमा मौसम हैं यहां का, दिल करता हैं इन वादियों में खो जाऊं।”


“हां वंदना, बहुत ही सुहाना मौसम है यहां इसलिए मैं तो यहां से कहीं नहीं जाना चाहती।”


गीता को मौका मिल गया वंदना से बात करने का...


”वो देखो पापा कैसे रोहन के साथ बच्चे बन गए हैं। वंदना एक समय ऐसा आता है जब बूढ़े भी बच्चे बन जाते हैं और उन्हें भी बच्चों की तरह.. दीदी आप पापा की बात कर रही हैं ... शायद माँ ने आपसे कुछ कहा होगा, माँ को मेरा बहुत ख्याल रहता हैं लेकिन पता नहीं उन्हें ऐसा क्यों लगता है। मैं पापा की बातों का बुरा नहीं मानती क्योंकि मैं भी यह बात समझती हूं मैंने अपने दादाजी को देखा है... वो भी बिलकुल बच्चों जैसे जिद करते थे। मेरी माँ कहती थीं कि बच्चे और बूढ़े एक जैसे होते हैं। आप चिंता ना किजिए मुझे कोई तकलीफ नहीं, मैं तो हर बात आपसे शेयर करती हूं।”


"दीदी आपको एक बात बतानी थी, मैं और रवि मम्मी-पापा की शादी की पचासवीं वर्षगांठ पर सरप्राइज पार्टी प्लान कर रहे हैं। कैसा रहेगा? पापा तो बहुत खुश हो जाएंगे, है ना।”


"बहुत ही सुन्दर विचार हैं वंदना, पापा तो सही में बहुत खुश हो जाएंगे। पापा शुरू से ही बहुत शौकीन हैं लेकिन माँ बिल्कुल भी नहीं। उन्होंने अपने लिए कभी सोचा नहीं, हमारी ख्वाहिशें पूरी करते रहीं। अब इस उम्र में वो बिलकुल बच्चे बन गए हैं। अब अपने सारे शौक पूरा करना चाहते हैं और हम बच्चों का फर्ज बनता हैं उनकी इच्छा पूरी करें।” कुछ दिन बाद मेहता जी परिवार समेत वापस आ गए।


अगले महीनें रवि और वंदना ने शादी की पचासवीं सालगिरह बड़ी ही धूमधाम से मनाई और बहुत ही शानदार पार्टी दी, उस दिन मेहता जी के चेहरे की खुशी देखते ही बन रही थी और माया जी... फिर कहने लगी हमारी उम्र हैं क्या ये सब करने की.....।


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