आओ जी लें
आओ जी लें
शहर के सबसे बड़े अस्पताल में वो अपने एक घायल मित्र का हाल चाल लेने आया है। अस्पताल के आई.सी.यू वार्ड में लोगों की हालत वाकई चौकाने वाली थी और डराने वाली भी। यह वो जगह थी जहाँ आदमी और मशीनो के बीच भेद करना मुश्किल हो रहा था। खाना पीना सब पाइप के द्वारा, साँसे ऑक्सीजन के सिलेंडर पर निर्भर, हृदय गति का कम्पन मरीजों के सिरहाने रखी एक स्क्रीन पर चलता हुआ। उसकी बेहोशी में भी जीवित होने का एकमात्र प्रमाण। उसका मन व्यथित हो रहा था। उसे बार बार इस भौतिक जीवन और इससे जुडी लालसाओं के लिए पैदा होते झग़डे, कलेश और मारा मारी व्यर्थ से महसूस हुए। आज तक उसने संपन्न होते हुए भी हर बात में कंजूसी दिखाई है पर आज उसके मन में जीवन के प्रति उदारता और भौतिक वस्तुओ के प्रति निस्सारता महसूस हो रही है और वो किसी परमानुभूति की खोज में बुद्ध तरह महसूस कर रहा है। कुछ क्षण बाद वो अस्पताल से बाहर आ जाता है। उसे लगा जैसे वो एक अलग ही दुनिया में खो गया था।
बाहर कंक्रीट की सड़क उसे बहुत धुली धुली सी लगती है। आसपास खूबसूरत चेहरों, दुकानों और रंग बिरंगे विज्ञापन उसे बहुत अच्छे लग रहे है। कितना जीवन भरा है इन सब में।
अब वो सहज महसूस कर रहा है। एक खूबसूरत नौजवान जोड़ा उसकी निस्सार कलपनाओं पर हसीन रंग बिखेर गया है। इन रंगो ने उसे उत्साहित कर दिया। वो इन रंगों में खो जाना चाहता है। मुस्कुराते हुए वो ऑटो वाले को रुकने का इशारा करता है। वो ऑटो वाले से कहता है, "जहाँ अच्छे शॉपिंग मॉल हो वहाँ चलो".