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माफ करना बाबूजी

माफ करना बाबूजी

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बाबूजी की मौत का अंदाज़ा हो गया था , हम तीनो उदास उनकी गिरती हालत को देख रहे थे।  पिछले चौदह दिनों में ईश्वर ने हमें यह कहने पर मजबूर कर दिया था कि अब बाबूजी की तकलीफ देखी नहीं जाती ,हे प्रभु कष्ट मिटाओ।  जिसका एक ही विकल्प था शरीर से प्राणों की मुक्ति  
निम्मो जीजी और जीजा जी भी कल पहुँच गए थे। 
निम्मो जीजी मायके में अपने ठाठ बाट की छाप के बिना कभी नहीं रहीं ,हर बात पर अपनी आधुनिकता और रईसी के किस्से सुना कर अप्रत्यक्ष रूप से मायके वालों को खातिरदारी के लिए मजबूर करना मायके की चीजों को गुज़रे ज़माने की बता कर अपनी पसंद के महंगे कपड़े और उपहार लेकर जाने की उनमे कला थी ,जीजा जी को यह सब पसंद नहीं आएगा यही सोच कर आजतक परिवार के सब लोग उनकी पसंद का करते और देते आए।  भैया भी बाबू जी और अम्मा की तरह दामाद की खातिरदारी, उनके स्तर की ही करते थे।  शादी के तेईस सालों में भी जीजा जी ने कभी ये नहीं कहा कि बस अब रहने दो , इतना ही नहीं जीजी तक कभी मायके पर तरस न खा सकीं | हम दोनों बहनों में सोच और स्तर का इतना बड़ा फासला था कि हम अब बस रिश्तेदारी निभा रहे थे |
मैं अन्दर ही अन्दर इन बातों को गलत समझ कर जब भी मायके आती खुद ही हर महंगे उपहार को ठुकराती और खातिरदारी को नकार कर कामकाज में जुटी रहती इसीलिए बाबूजी की बीमारी पर भाभी ने मुझे बुला भेजा था।  मैं, भैया –भाभी के साथ आसानी से अस्पतालों के चक्कर और घर बाहर के काम संभाल रही थी। 
रात भर मैं भैया के साथ बाबूजी के कमरे में डटी रही , रात को डेढ़ दो बजे गृहस्थी के तमाम काम समेट कर भाभी आई तो हमने उन्हें सोने भेज दिया और कहा पैठिया तुम आकर बैठ जाना पर बेचारी को भैया जल्दी ही बुला लाए |
कुछ बातें थीं जो करनी पड़ीं मसलन बाबू जी को नीचे कब उतारें ? जीजी को बुलाएँ या सोने दें ? आखिर भाभी ऊपर के कमरे तक गईं , ठोका बजाया आवाजें दीं पर कोई बाहर नहीं आया तो भैया ने उन्हें वापस बुला लिया बहुत कष्ट उठा कर बाबू जी ने भोर में प्राण त्याग दिए।  कुछ ही घंटों में घर का सारा माहौल बदल गया। भाग दौड़ ,बाबूजी का दुःख और यादों के तूफ़ान थे ,लोगों के हुजूम घर के अन्दर बाहर जमे थे। मिलने जुलने वालों से घिरी भाभी ने मुझे  धीरे से बुला कर कान में कहा “शायद कोई पड़ोसी  चाय लाए हैं आप ज़रा जीजा जी को एक कप भिजवा दो "
उसकी चिंता जायज़ थी | मैंने उसे वहां से उठाया और एक कोने में ले जाकर बोली “तुम्हें उल्टियाँ हो रही हैं तुम ने कुछ खाया ?”भाई को शुगर है उसको पूछा ?” देर तक दरवाज़ा ठोका तो वो दोनों बाहर नहीं आए मेरे हल्के  रुदन से उनकी नींद कैसे खुल गई ?” सुनो अब अम्मा बाबूजी दोनों नहीं रहे अब हम तीनो भाई – बहन बराबर हैं उन्हें चाय पीनी होगी तो खुद हाथ पैर मारेंगे "
फिर भाभी को वापस दरी पर बैठने का हुक्म  दे दिया,अपने ससुर की मौत पर उसकी भीगी आँखें मुझे प्रश्न सूचक दृष्टी से देख रही थीं।  वो भी जानती थी कि मैं सही कह रही हूँ। थोड़ी ही देर में जीजी दो कप चाय का जुगाड़ कर जीजा जी को बुला लायीं। मैंने भैया के एक दोस्त को भैया की शुगर का हवाला दे कर उनकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी सौंप दी और बाबूजी की मृत देह के पास आकर उनसे बोली "माफ़ करना बाबूजी आप लोगों ने तो झेल लिया पर अगली पीढ़ी को मैं इस कथित खातिरदारी और दमाद गिरी के बोझ तले दबा नहीं देख सकती इस लिए भाभी को ऐसा कदम उठाने पर मजबूर कर रही हूँ ” 
काश बाबूजी मुझसे हंस कर कुछ कह देते। 


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