परावर्तन
परावर्तन
"कैसी लगी पेटिंग ? बताओ, रंगो का संयोजन कैसा है ? बताओ ना " रिया ने रवि से चहकते हुए पूछा " एकदम बेकार, बेरंग, कड़वाहट से भरे हुए" रवि के जबाब से रिया एकदम चौंक गई, जब उसने रवि की आंखो मे पेन्टिंग की ओर कम बल्कि उसे घूरती नज़रों से देखते हुए जबाब मिला। अभी 6 महीनें ही तो हुए थे दोनो के प्रेम विवाह को लेकिन इन 6 महीनों में रिया ने रवि का उसके जीवन को बेरंग करने का हर वार झेल लिया था। बात-बात मे जली कटी सुनाना, बात - बात में झगड़ा लेकिन हर बार अपने घर को बचाने की क़वायद मे रिया जुटी रही। स्वयं की पसंद जो था रवि, अतः सहनशीलता की सीमा अन्य से ज़्यादा रखनी होगी ये बात रिया ने स्वयं को समझा ली थी, लेकिन रवि द्वारा दिए गए मेन्टल टोर्चर से सहनशीलता की सभी सीमाएँ टूटने के कगार पर आ चुकी थी। इस बात का एहसास भी रिया को हो चुका था। आज बहुत दिनो बाद रिया अपनी सखियों को याद करती हुई,अपने पेटिंग के शौक़ को पूरा करने के लिए उनके साथ बिताए मस्ती भरे लम्हों को रंगो से सजा रही थी कि रवि के कडवाहट से भरे शब्दो ने बहुत गहरे से मन को चोट पहुँचाई। " जानते हो रवि, ये पेन्टिंग तुम्हे बेरंग क्यो दिखाई दे रही है ?" रिया ने तल्ख़ स्वर मे रवि से पूछा, तो रवि ने बेरूखी से रिया की तरफ देखा " सुनो रवि, ये पेन्टिंग प्रेम के रंगो से बनी हुई है, कोई भी वस्तु उसी रंग की दिखाई देती है जिस रंग का परावर्तन करती है, और यदि प्रेम का रंग परावर्तित होकर तुम तक नही पहुँच रहा तो शायद तुम्हारे जीवन मे कोई भी रंग ना आ पाएगा तुम्हे तुम्हारी बेरंग ज़िन्दगी मुबारक लेकिन मुझे जीवन के हर रंग से प्रेम है और मुझे उन रंगो के पास ही वापिस लौटना है" कहकर रिया ने पेन्टिंग को सूटकेस में रखा और बाहर की तरफ चल दी। अब चौंकने की बारी रवि की थी।