वचन पूर्ण हुआ
वचन पूर्ण हुआ
स्वतंत्रता सेनानी, विख्यात गणितज्ञ और समाज सेवी स्व. श्री राम नारायण जी (काल्पनिक नाम) के पोते राघवेन्द्र से सभी काफी नाराज़ दिख रहे थे। आज की सुबह तो कुछ अलग ही रूप दिखा रही थी, जिस घर से किसी के जोर से बात करने की आवाज़ भी कभी सुनाई न दी हो उस घर से इतने जोर से होते हुए झगडे, चीखने-चिल्लाने का शोर पिछले २ घंटो से लगत हो रहा था और मुहल्ले वालों के बीच होती हुई चर्चा का मुख्य विषय बनता नज़र आ रहा था।
समस्या क्या थी ? क्यों यह शोर हो रहा है ? क्यों घर के लोग आपस में यूँ झगड रहे हैं ? इस तरह की प्रश्नावली और उत्तरों का सैलाब घर के बाहर जमा लोगों की भीड़ में बहता दिख रहा था। कुछ उम्रदराज़ हो चले श्री राम नारायण जी के साथी अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझते हुए घर में दाखिल हुए और झगडे का कारण जानने की कोशिश की। राघवेन्द्र ने ऐसा किया ?
अपना पुश्तैनी मकान दादी के हाथों बिकवा दिया, अब उस खुली ज़मीन पर विशाल भवन बनेगा वो भी आधा किसी और का? नारायण जी ने तो यह सोच कर सारी संपत्ति का दरामदार राघवेन्द्र को सौंपा था कि वो इसे संभालेगा, अपनी बूढी दादी का आसरा बनेगा। उससे यह उम्मीद तो ना थी? राघवेन्द्र बड़ी देर से चुप-चाप सब कुछ सुन रहा था लेकिन अब उसका सब्र का पैमाना छलक गया था।
अपने से बड़ों पर सीधा निशाना साधते हुए उसने अपनी बात रखी, ताउजी ने दादाजी का साथ काफी पहले ही छोड़ अपनी अलग राह ले ली थी। चाचाजी ने शादी कर सीधे नए घर में चाचीजी का गृहप्रवेश कराया। जब में बहुत छोटा था तब मेरे पिताजी ने संपत्ति पाने का औचित्य लिए अपने प्यार से वंचित कर मुझे अपने पास नहीं रखा अपितु दादा-दादी के पास भेज दिया इस आस से कि शायद दादाजी सारी संपत्ति उनके नाम कर देंगे।
जब दादाजी अंतिम सांसे ले रहे थे तब उनके पास कोई नहीं पहुंचा सभी ने सीधे चौथे में दर्शन दिए। आज जब सब कुछ आप लोगों को अपने हाथों से जाता दिखा तो में बुरा हो गया हूँ ? दादीजी की सहमति से अब आधी ज़मीन पर एक आलीशान बंगला बनेगा, बेचीं गई संपत्ति से मिली रकम को बैंक में रखकर वे अपनी गुजर-बसर शान से करेंगी और उनके जाने के बाद सब कुछ दान कर दिया जाएगा। दादीजी को आजीवन कोई कष्ट न हों ऐसा दादाजी को दिया गया मेरा वचन आज पूर्ण हुआ।