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Twinckle Adwani

Crime Drama

0.4  

Twinckle Adwani

Crime Drama

विरोध

विरोध

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आज दुकान में इतने दिनों बाद सौम्या के आने पर हैरानी हुई दीदी आप इतने दिनों से नहीं आ रही उसने बड़ी दुखी स्वर में कहा मत पूछो जीवन में कब क्या हो जाए कब लोग विश्वासघात करें पता ही नहीं चलता उसकी दुखती आत्मा को मैं और दुखाना नहीं चाहती चाय मंगा दि फोन बजते ही मैं अपने काम में लग गई मगर मन में बार-बार लग रहा था क्या हुआ सौम्या के साथ ,लंच टाइम हो गया मैं उसको कुछ सामान दिखा रही थी और धीरे से कहा कैसी लग रही हो कुछ खा लो बार-बार नहीं कहती रही उसके लिए डोसा व जूस मंगा दिया अक्सर सौम्या पार्लर का सामान लेने मेरी दुकान आती थी और मेरी उससे दोस्ती गहरी हो गई मुझे कहती है एक तुम हो पराई होकर भी अपनी लगती हो और वहीं कुछ लोग अपने होकर भी.....

बातों का सिलसिला चलता रहा वह बार-बार बेटी को फोन करने लगी और फोन नहीं लगा तो परेशान होकर जाने की जाने ही वाली थी कि जेठानी का फोन आ गया मैं घर में हूं तुम चिंता मत करो बेटी ने खाना खा लिया अभी पढ़ाई कर रही है साौम्या आराम से बैठ गई शादी के 20 साल बाद जेठानी ने तलाक लिया मैं सुनकर हैरान हो गई 20 साल अगर खुश नहीं थी तो क्यों विरोध नहीं किया 20 साल अपनी जिंदगी क्यों खराब की साौम्या कहने लगी उन्हें तो सही गलत का फासला भी शायद नजर नहीं आता वो इतना ढल चुकी थी खुद अपनी मर्जी से कुछ नहीं करती आज भी देश की कितनी महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में जानती ही नहीं केवल अपने कर्तव्य ही जानती हैं मेरी तो लव मैरिज थी इस खानदान में केवल समर्थ ही पढ़े लिखे हैं बाकी तो महिलाओं की इज्जत क्या भावनाएं भी नहीं समझते मैंने देखा कि लोग औरतों पर हाथ उठाते हैं जानवरों की तरह सारा दिन घर में रखते है मगर जेठानी बहुत अच्छी मैंने उनके लिए बहुत कुछ करना चाहा मगर उनकी चुप्पी ही उनकी परेशानी है बच्चों को ना पढ़ाते हैं ना उन्हें अच्छे संस्कार देते हैं हमारे आसपास

के लोग छोटी उम्र में ही बच्चे नशे करते हैं छोटों की कहां गलती बड़े घर में....

जेठानी व देवरानी के लड़के अक्सर किसी से लड़ाई करके आते हैं तो कभी किसी लड़की को छेड़ते थे मैंने बहुत कोशिश की बदलाव की मगर किसी में कोई बदलाव नहीं आया मैं हारकर अलग होना चाहती थी ताकि इस गंदे माहौल का असर मेरी बेटी पर नहीं हो मगर अब क्या कहूं मैंने अपनी बेटी को बुरी नजरों से बचा कर रखा था मगर क्या पता था कि एक बुरी नजर अपनों की भी होगी हम अक्सर बाजार दुकान का सामान लेने का मकान के काम से जाया करते थे ऊपर हम रहते हैं नीचे जेठानी रहती थी अपना घर फिर भी मैं कभी उसे अकेला नहीं छोड़ा मगर उस दिन उसकी तबीयत ठीक नहीं थी उसे छोड़ कर हम शहर गए थे और वापसी में हमारी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया उसके घर में आने में बहुत देर हो गई वह घर में अकेली थी और वह पहली बार अकेली थी 12 साल की मासूम उस दिन कुछ लड़के नशे में घर में घुस गए हवस के अंधो ने अपनों को भी नहीं छोड़ा

शराबियों ने अपनी बहन को भी नहीं छोड़ा इतना कहक सौम्या रोने लगी वह बच्ची इतना डर गई कि कई दिनों तक घर से ही नहीं निकली और ना खाती ना बात करती मैं हैरान हूं क्या कोई इतना गिर सकता है कभी-कभी लगता है आधी गलती घरों में रहकर घुंघट में लाज रखने वाली औरतों की भी है जो गलत देख कर भी विरोध नहीं करती कोई भी बच्चा कोई भी इंसान 1 दिन में गलत नहीं बनता हजारों गलतियां करके एक बड़ी गलती करता है तो हम उसका विरोध नहीं करते गलत राह पर चलते हुए देखकर भी मां-बाप ने कुछ नहीं किया ध्यान नहीं दिया मन में हजारों सवाल जवाब है मैं सोम्या को शांत करा रही थी तो क्या उसी जेठानी का फोन था हां वह मेरे साथ रहती है मैं समझी नहीं ,नशे में केवल दोस्त ही नहीं उनका बेटा भी था क्या तुमने केस किया हां किया ,पांचों को 10 साल की सजा हुई और जेठानी ने पहली बार हिम्मत की, गलत का विरोध किया और हमारे पक्ष में गवाही दे उनके बेटे को सजा हुई मगर उन्होंने पति से भी रिश्ता तोड़ दिया वह इस घटना का दोषी खुद को मानती हैं क्योंकि उन्होंने कभी मुंह नहीं खोला उनका बेटा बचपन में कुछ गलत करता कभी नहीं मारा हमेशा पिता उसका साथ देते उस की करतूतों को नकार देते काश मां-बाप बचपन से उसे महिलाओं की इज्जत करना सिखाते वैसे तो उनके पापा ही गलत है वह क्या संस्कार देंगे शादी के इतने सालों में केवल पति की गाली मार ही जेठानी को मिली जब खुद के होने का भी एहसास हुआ तो बहुत देर हो चुकी थी इतने सालों से डरी रहती थी और जब विरोध किया तो ऐसा कि सब को हिला दिया आज वह मेरे साथ है मेरी बड़ी बहन की तरह

साैम्या शांत हो गए मगर हजारों सवाल , मन आंखों में थे वास्तव में पुरुष तो केवल अपना वर्चस्व कायम करने में लगे हैं सही गलत तो हमें खुद ही फैसले लेने चाहिए हो अगर हम औरत एक हो जाएं तो पुरुष समाज अपाहिज हो जाएगा झुक जाएगा शक्ति के आगे झुक जाएगा सामान पैक हो चुका था गाड़ी में रखवा दूं बातों-बातों में उसका दिल हल्का होगा और मेरी जेब भारी हो गई मन में बार बार ख्याल आया कि क्यों हम समानता के लिए लड़ती नही क्यों गलत का विरोध नहीं करती आखिर क्यो ?

अगले दिन सौम्या का फोन आया उसने बताया कि उसकी बेटी ने स्कूल में टॉप किया है और वह उसे पढ़ने के लिए बाहर भेज रही है मगर मन मेरे मन में न जाने क्यों एक अंजाना सा डर था क्या वहां भी कोई बैठी है जो गलत का विरोध करें किन-किन नजरों से हम अपने आप को बचाएगी ईश्वर से उसकी सलामती की प्रार्थना करने लगी जिस दिन हम महिलाएं विरोध करना छोड़ दें यह दुनिया पूरी तरह कैसे खराब हो जाएगी इसलिए हमेशा गलत का विरोध करो शुरुआत अपने घर से ही होती है !


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